
अमेरिका ने उड़ने वाले ग्रेनेड के फील्ड ट्रायल को पूरा कर लिया है। यह ग्रेनेड 20 किलोमीटर की दूरी तक अपने हेलिकॉप्टर जैसे पंखों की मदद से उड़ान भर सकता है। आमतौर पर सैनिक ग्रेनेड के सेफ्टी पिन को निकालकर हाथ से फेकते हैं। जिसके कुछ सेकेंड बाद यह फटकर आसपास भारी तबाही मचाता है। जानकारों का मानना है कि अमेरिका का यह ग्रेनेड भविष्य में होने वाले युद्धों का भूगोल बदल सकता है।
20 किमी तक उड़ सकता है यह ड्रोन : इस ग्रेनेड के ऊपरी हिस्से में चार रोटर ब्लेड जुड़े हुए हैं। जब इस ग्रेनेड को हवा में उड़ाना हो तब किसी सैनिक को इसे हाथ में पकड़कर इसके रोटरों के घूमने का इंतजार करना होगा। एक बार जब रोटर पूरी स्पीड में घूमने लगें तो इसे हवा में उछालकर रिमोट से कंट्रोल किया जा सकता है। इसके अलावा इसे हवा में उछालकर भी उड़ाया जा सकता है। अगर इस ग्रेनेड को अपना लक्ष्य नहीं मिलता है तो यह वापस उड़ाए गए स्थान तक आ सकता है, जहां इसे जाल की मदद से पकड़कर भविष्य में इस्तेमाल करने के लिए रखा जा सकता है।
ड्रोन 40 के नीचे लगाया गया है ग्रेनेड : 7 जुलाई को अमेरिकी सेना ने उत्तरी कैरोलिना के कैंप लेज्यून में एक प्रशिक्षण अभ्यास के दौरान इस फ्लाइंग ग्रेनेड को टेस्ट किया। फ्लाइंग ग्रेनेड एक ड्रोन 40 मॉड्यूलर क्वाडकॉप्टर है। ड्रोन 40 अपने परिवार के दूसरे सदस्यों की तरह चौड़ा न होकर लंबा है। जिसके निचले हिस्से पर ग्रेनेड को अटैच किया गया है। इस ग्रेनेड के ट्रिगर को भी रिमोट से कंट्रोल किया जा सकता है। कैंप लेज्यून में अमेरिकी सेना की इंफ्रेंट्री यूनिट ने इस ग्रेनेड का इस्तेमाल करना सीखा।
कैसे आया ड्रोन 40 ग्रेनेड बनाने का विचार : ड्रोन 40 को बनाने की आइडिया ऑस्ट्रेलियाई सेना के सामने आई एक विशिष्ट समस्या से मिली थी। ड्रोन 40 को बनाने वाली कंपनी डिफेंडटेक्स ने 2019 में इसका कारण समझाते हुए बताया था कि अफगानिस्तान और इराक में तैनात ऑस्ट्रेलिआई सैनिकों के पास 1600 फीट तक सटीक निशाना लगाने वाली रायफलें थीं। जबकि, उनका दुश्मन अमूमन 2500 से 3000 फीट की दूरी तक बैठा होता था। इसी दूरी को पाटने के लिए ड्रोन 40 ग्रेनेड को बनाया गया है।
अमेरिकी सेना बना रही हाईटेक चश्मा, ‘दीवार’ के पार भी आसानी से देख सकेंगे सैनिक : चूंकि, ये चश्मे बख्तरबंद वाहनों के बाहर लगे ऑम्निडायरेक्शनल कैमरों से फीड लेते हैं। इसलिए, ब्रेडली या स्ट्राइकर इन्फैंट्री वाहन में चलने वाले छह सैनिकों का दस्ता दीवार के पार भी देख सकने में सक्षम होगा। इसस सैनिकों के अंदर घटनास्थल की समझ तेजी से बढ़ेगी। जिसके बार सही निर्णय और घातक हमले के जरिए दुश्मनों को आसानी से खत्म किया जा सकेगा। अमेरिकी सेना के 1-2 स्ट्राइकर ब्रिगेड कॉम्बैट टीम के सार्जेंट फिलिप बार्टेल ने बताया कि इस चश्मे को पहनने के बाद कोई भी सैनिक दुश्मनों के इलाके में गाड़ी या बख्तरबंद वाहन के बाहर खतरनाक स्थिति में भी लटका नहीं रहेगा। हमें अंदर बैठे-बैठे ही बाहर की हर हरकत और परिस्थिति का पता चल जाएगा। इससे हमारी लड़ाई करने की क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी। इससे गाड़ी के अंदर बैठा कमांडर अपने साइट को चारों तरफ घुमाकर बख्तरबंद वाहनों की सुरक्षा से बाहर निकलने बिना चारों तरफ की स्थिति के बारे में रियल टाइम में अपडेट पा सकता है। इस तरह की जानकारी से युद्ध या किसी मुठभेड़ के दौरान होने वाले नुकसान या सैनिकों के हताहत होने की संख्या को कम करेगा।
डिजाइन ब्यूरो ने IVAS चश्मे को किसी फाइटर पायलट के हेड-अप डिस्प्ले जैसे समान तरीके से कार्य करने के के लिए बनाया है। फाइटर पायलट अपने हेड-अप डिस्प्ले की सहायता से विमान का सभी डेटा अपने हेलमेट के स्क्रीन पर ही प्राप्त करता है। जिसके जरिए वह कम समय में न केवल विमान को उड़ाने के संबंधित जानकारियां पा जाता है, बल्कि आसानी से दुश्मनों को निशाना भी बना सकता है। ठीक वैसे ही आईवीएएस के ये चश्में भी काम करने वाले हैं। जिसमें इस पहनने वाले सैनिक को उस इलाके के मैप्स, वीडियो और नाइट विजन सहित सभी जरूरी जानकारी हेलमेट के स्क्रीन पर ही मिल जाएगी। सैनिकों को युद्धक्षेत्र में काम करने के लिए बहुत सारे डेटा की जरुरत होती है, हालांकि अपने साजोसामान, गोला-बारूद और अन्य जरूरी उपकरणों के कारण वे डेटा को सीमित मात्रा में ही रखते हैं। अब इस नए हेडअप डिस्प्ले की सहायता से वे युद्धक्षेत्र में आधुनिक, ज्यादा सटीक और जल्दी ही कई तरह के डेटा का एक्सेस कर पाएंगे। युद्ध के क्षेत्र में सैनिक अपने पॉकेट में रखे प्लास्टिक लेमिनेटेड मैप की जगह डिजिटल मैप का इस्तेमाल कर प्रभावी कार्रवाई को अंजाम दे सकते हैं।
बड़ी बात यह है कि अगर दुश्मन आंखों के सामने हो तो ये उससे नजर हटाए बिना किसी भी डेटा को एक्सेस कर सकते हैं। यह चश्मा अपने सैनिक को चारों तरफ की स्थिति को बताने के लिए राइफल-माउंटेड थर्मल इमेजिंग नाइट विजन स्कोप का भी उपयोग कर सकता है। यह स्कोप राइफल के ऊपर लगा होता है, जिसकी मदद से सैनिक अपना निशाना बेहतर बनाता है। इस तकनीकी से कोई भी सैनिक युद्ध के क्षेत्र में एक सुरक्षित आड़ में अपने राइफल को चारों तरफ घुमाकर वहां की परिस्थिति की आसानी से निगरानी कर सकता है। इसके लिए उसे अपना कवर छोड़ने की जरुरत भी नहीं पड़ती है। इससे सैनिक को उस समय की स्थिति की जानकारी भी मिल जाती है और वह दुश्मन के निशाने से भी बचा रह सकता है। इसके अलावा इस चश्में को माइक्रो ड्रोन कैमरे से भी जोड़ा जा सकता है। जिसे युद्धक्षेत्र में उड़ाकर सैनिक वहां की स्थिति के बारे में बिना पहुंचे ही जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
आईवीएएस सिस्टम पर 2020 की एक रिपोर्ट बताती है कि सैनिक इस नई तकनीक के साथ कैसे ट्रेंड होते हैं। अमेरिकी सेना के ऑपरेशनल टेस्ट एंड एनवायरनमेंट डॉयरेक्टर के अनुसार, इस चश्में को लगाए हुए सैनिक युद्ध के दौरान उस क्षेत्र की हर एक जानकारी को तुरंत पा सकते हैं। मैकेनाइज्ड इंफ्रैंट्री, कैवेलरी और इंजिनियर्स सभी युद्ध के मैदान में आर्मर्ड वीकल के जरिए जाते हैं। वे जानते हैं कि उन्हें कहां ले जाया जा रहा है, उन्हें यह भी पता होता है कि उतरने के बाद उन्हें करना क्या है, लेकिन ये सभी सैनिक अक्सर एक स्क्रीन या वीकल को चलाने वाले ड्राइवर पर भरोसा करते हैं ताकि उन्हें पता चल सके कि वे वास्तविक समय में कहां हैं। जब वीकल युद्धक्षेत्र में रुकता है तो रैंप के खुलते ही सैनिक बिना आसपास के बारे में जाने की दौड़कर किसी सुरक्षित ठिकाने की ओर जाते हैं। वहां से वे निर्धारित करते हैं कि दुश्मन कहां है और उसके खिलाफ क्या रणनीति अपनाई जानी चाहिए। लेकिन, इस चश्मे की बदौलत अब गाड़ी में बैठे हुए सैनिक आसानी से स्टील और लोहे के आर्मर के बाहर भी देख सकेंगे। जिससे उन्हें उस समय की परिस्थिति का बेहतर अंदाजा होगा।
कीमत भी ज्यादा नहीं, पेलोड भी बदला जा सकता है : इस ग्रेनेड को एक स्थान से लॉन्च कर दूर बैठे दुश्मनों के पास फेंका जा सकता है। जिसके विस्फोट की चपेट में आने से दुश्मनों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। यह ड्रोन विस्फोट में नष्ट हो जाने वाला एक खर्च करने योग्य हथियार बन जाता है, क्योंकि इसकी कीमत और लागत भी बहुत ज्यादा नहीं है। ड्रोन 40 के पेलोड को आसानी से बदला भी जा सकता है। इसमें ग्रेनेड की जगह खुफिया, निगरानी और टोही मिशन के लिए एक आईएसआर पेलोड को लगाया जा सकता है।
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