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हिमालय से चीन के परमाणु बम पर नजर रखना चाहता था अमेरिका, 26000 फुट पर भेजी खतरनाक डिवाइस, आज तक लापता


1965 के भारत और पाकिस्तान के युद्ध के समय चीन के परमाणु कार्यक्रम शुरू करने की जानकारी अमेरिका के हाथ लगी थी। अमेरिका चाहता था कि चीन के कार्यक्रम पर नजर रखी जाए। अमेरिका ने इसके लिए भारत से मदद मांगी और हिमायल की चोटी पर एक उपकरण लगाना तय हुआ।
अमेरिका और भारत ने 60 के दशक में चीन के परमाणु कार्यक्रम पर नजर रखने के लिए एक खास प्लान बनाया था। दोनों देशों के जासूसों ने चीन के खिलाफ सीक्रेट मिशन को अंजाम देने के लिए पर्वतारोहियों की मदद ली थी। चीन पर नजर रखने के लिए एक प्रमुख पर्वत शिखर पर परमाणु ऊर्जा से चलने वाला निगरानी डिवाइस लगाया जाना तय किया गया। तिब्बती पठार के उत्तर में चीन के झिंजियांग प्रांत के नमक के रेगिस्तान थे। यहीं पर चीन सरकार ने अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम के लिए परीक्षण रेंज बनाए थे। इसी पर अमेरिका नजर रखना चाहता था। साल 1965 में ये प्लान जमीन पर उतारा जाना था।
यूरेशियन टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी वायु सेना के उस समय के चीफ ऑफ स्टाफ कर्टिस लेमे ने चीन के परमाणु परीक्षणों पर नजर रखने का प्लान तैयार किया था। अमेरिका ने भारत की मदद से चीन के परमाणु कार्यक्रम के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए हिमालय पर्वत के ऊपर निगरानी उपकरण की योजना बनाई। इस मिशन के लिए एक विशिष्ट भारतीय पर्वतारोही मनमोहन ‘मोहन’ सिंह कोहली को भर्ती किया गया था। कोहली को 1962 के चीन युद्ध के दौरान उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सलाहकार के तौर पर नियुक्त किया गया था। कोहली के साथ 14 अमेरिकी और चार भारतीय पर्वतारोहियों का एक समूह था।
27 हजार फुट पर लगानी थी डिवाइस – अमेरिका की केंद्रीय खुफिया एजेंसी चाहती थी कि निगरानी डिवाइस को 27,500 फुट की ऊंचाई पर रखा जाए। कोहली ने पाया कि इसके लिए दुनिया का तीसरा सबसे ऊंचा पर्वत कंचनजंगा सही जगह थी। यह नेपाल और सिक्किम के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित है और निगरानी उपकरण लेकर चलना पर्वतारोहियों के लिए बहुत मुश्किल था। कोहली ने तत्कालीन भारतीय जासूस आर एन काओ से अपनी चिंता बताई। आखिर में तय हुआ कि पर्वतारोहियों का ये ग्रुप नंदा देवी पर चढ़ें। ये 25,645 फुट की ऊंचाई पर है और मध्य हिमालय में सुरक्षित जगह है।

परमाणु संचालित निगरानी सेंसर के चार प्रमुख घटक थे, जो सभी तारों और केबलों से जुड़े थे। दो टुकड़े धातु के बक्से थे जो उन्हें बर्फ और बर्फ से दूर रखते थे। इनमें ट्रांसीवर थे, जो जानकारी को भारत में एक बेस स्टेशन पर रिले करते। तीसरा घटक संग्रह एंटीना था जो चीनी मिसाइलों से टेलीमेट्री डेटा हासिल करता। चौथे घटक को SNAP 19C कहा जाता था, यह एक थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर था जो दो साल तक चालीस वाट का आउटपुट दे सकता था