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Coronavirus के इलाज के लिए खास गायों में बनाई जा रहीं Antibodies, क्लिनिकल ट्रायल की तैयारी


Coronavirus Latest Update: अमेरिका की बायोटेक कंपनी SAb Biotherapeutics गायों में ऐसी ऐंटीबॉडीज (Antibodies in cows) तैयार कर रही है जिनसे कोरोना वायरस का इलाज (Coronavirus Treatment) मुमकिन है। ये खास गायें Genetically modified होती हैं और इनमें ऐसे DNA बनता है जिससे ऐंटीबॉडीज बनती हैं।
कोरोना वायरस के इलाज या उसे फैलने से रोकने के तरीके खोजने में पूरी दुनिया के रिसर्चर्स जुटे हैं। इसी बीच अमेरिका की बायोटेक कंपनी SAb Biotherapeutics ने गायों के शरीर में ऐसी ऐंटीबॉडी विकसित करने में सफलता पाई है जो SARS-CoV-2 के खिलाफ कारगर साबित हो सकती हैं। खास बात यह है कि ये आम गायें नहीं हैं बल्कि इन्हें जेनेटिकली मॉडिफाईड किया जाता है। कंपनी अब इस तरीके का क्लिनिकल ट्रायल करने की तैयारी में है। कंपनी का दावा है कि एक गाय हर महीने इतनी ऐंटीबॉडी बना सकती है जिससे सैकड़ों लोगों का इलाज हो सकता है। इसे प्लाज्मा ट्रीटमेंट से भी चार गुना बेहतर बताया गया है।
साइंस मैगजीन की रिपोर्ट के मुताबिक इन मॉडिफाइड गायों की ऐंटीबॉडी से वायरस इन्फेक्शन को रोका जा सकता है या इन्फेक्शन होने के बाद इलाज किया जा सकता है। SAb Biotherapeutics मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (MERS) के बाद से इस तरीके पर काम कर रही थी और SARS-CoV-2 से इन्फेक्शन के बाद गायें एक हफ्ते में ही ऐंटीबॉडी बनाने लगीं क्योंकि अब तक रिसर्चर्स को पता था कि कैसे वायरस को टार्गेट करना है।
ऐसे बनती हैं ऐंटीबॉडीज
ऐंटीबॉडीज को यूं तो कल्चर सेल्स (Culture cells) के जरिए लैब में या तंबाकू के पौधों में तैयार किया जाता है लेकिन 20 साल से रिसर्चर्स गायों के पैरों के निचले हिस्से में इन्हें विकसित कर रहे हैं। इसी रिसर्च पर अब SAb Biotherapeutics काम कर रही है। यह कंपनी डेरी वाली गायों में जेनेटिक बदलाव करती है। खून में ऐंटीबॉडी के रिलीज होने से पहले गायों को वायरस के जीनोम पर आधारित DNA वैक्सीन दी जाती है जिससे उनका इम्यून सिस्टम तैयार हो जाता है। इसके बाद SARS-CoV-2 के स्पाइक प्रोटीन को इन्जेक्ट किया जाता है जिससे लड़ने के लिए ये ऐंटीबॉडीज बनने लगती हैं।
जनवरी में ऑक्‍सफर्ड वैक्‍सीन ग्रुप और जेनर इंस्‍टीट्यूट ने वैक्‍सीन पर रिसर्च शुरू की थी। शुरू में 160 स्‍वस्‍थ लोगों पर टेस्‍ट हुआ। अब यह वैक्‍सीन फेज 3 में हैं। इसे आम सर्दी-जुकाम देने वाले वायरस से बनाया गया है। यह शरीर में स्‍पाइक प्रोटीन के प्रति इम्‍यून रेस्‍पांस पैदा करेगी और इन्‍फेक्‍शन को फैलने से रोकेगी। वैक्‍सीन का वैक्‍सीन का मास प्रॉडक्‍शन शुरू हो चुका है।
Moderna की वैक्‍सीन भी रेस में आगे
अमेरिकन कंपनी Moderna की mRNA वैक्‍सीन भी इम्‍यून सिस्‍टम को कोरोना के स्‍पाइक प्रोटीन को पहचानने की ट्रेनिंग देने की कोशिश करती है। यह वैक्‍सीन फिलहाल फेज 2 ट्रायल में है। कोरोना वायरस का जेनेटिक सीक्‍वेंस पता चलने के 66 दिन के भीतर ही इस वैक्‍सीन का ह्यूमन ट्रायल शुरू हो गया था।
फेज 2 में हैं कई वैक्‍सीन के ट्रायल
कोरोना वैक्‍सीन बनाने में दुनिया की दिग्‍गज यूनिवर्सिटीज से लेकर फार्मा कंपनियां जुटी हुई हैं। BioNTech, Novavax, Sinovac, Pfizer के अलावा कई वैक्‍सीन ट्रायल के पहले या दूसरे दौर में हैं।
सवाल बरकरार, कब तक आएगी वैक्‍सीन?
आमतौर पर वैक्‍सीन बनाने में 10 साल का समय लगता है। मगर कोरोना ने जैसे हालात पैदा किए हैं, उसे देखकर जल्‍द से जल्‍द इसका टीका खोजने की कोशिश है। कई एक्‍सपर्ट्स को उम्‍मीद है कि साल के आखिर तक वैक्‍सीन मिल जाएगी। मगर फिर उसके प्रॉडक्‍शन और डिस्‍ट्रीब्‍यूशन से जुड़ी चुनौतियां सामने होंगी।
…तो कभी नहीं मिलेगी कोविड-19 की वैक्‍सीन?
महामारीविदों का एक धड़ा ऐसा भी है जो चेतावनी दे रहा है कि शायद हमें कोरोना की वैक्‍सीन कभी नहीं मिलेगी। उनका दावा है कि हमें इस वायरस के साथ ही जीना होगा। हालांकि बहुत सारे साइंटिस्‍ट्स उम्‍मीद से लबरेज दिखते हैं और साल के आखिर या अगले साल की शुरुआत तक वैक्‍सीन डेवलप हो जाने का दावा कर रहे हैं।
इसलिए खास होती हैं ये गायें
SAb Biotherapeutics के प्रेजिडेंट और CEO एडी सुलिवन का कहना है कि गायें ऐंटीबॉडी की फैक्ट्री की तरह का करती हैं क्योंकि इंजिनियर किए गए बाकी छोटी जानवरों की तुलना में इनमें ज्यादा खून होता है। इनके खून में इंसानों की तुलना में दोगुना ज्यादा ऐंटीबॉडी होती हैं। इसके अलावा गायों में कई तरह की पॉलिक्लोनल ऐंटीबॉडी बनती हैं जो वायरस के अलग-अलग हिस्सों पर अटैक कर सकती हैं।