
भाग्य बदलना बड़ा काम है, लेकिन शुरुआत एक छोटी-सी सीख से भी हो सकती है। जीवन में छोटा परिवर्तन, एक छोटी-सी सीख, भी अन्तर्मन का दोष दूरकर भाग्य परिवर्तन की शुरुआत कर सकती है।
एक सेठ के यहां एक महात्मा आए। सेठ ने बड़े आदर-भाव से उनका सत्कार किया। जब महात्मा जी विदा होने लगे तो सेठ ने विनम्र होकर कहा, “महात्मा जी, जाते-जाते ऐसा कुछ बताऐं, कि मेरी इच्छाएं और मनोकामनाऐं पूरी हो जाऐं।’ महात्मा जी बोले, “आज नहीं, सातवें दिन मैं फिर आऊंगा, तब तुम्हारी इच्छा पूरी कर दूंगा।”
सातवें दिन महात्मा जी फिर आए, उनके हाथ में एक पात्र था। सेठ ने खीर बनवाई थी, जैसे ही सेठ उस पात्र में खीर डालने लगे, उनकी निगाह पात्र के भीतर भरे कूड़े-कचरे पर पड़ी। सेठ बोले, “महात्मा जी, इसमें कैसे खीर डालूं? इसमें तो गंदगी भरी है, खीर खराब हो जाएगी।” महात्मा मुस्कुराए और बोले, “तो क्या किया जाए?” सेठ ने कहा, “इसे साफ करना पड़ेगा।”
महात्मा जी ने स्वयं ही पात्र की सारी गंदगी बाहर फेंकी, उसे अच्छी तरह साफ किया, और तब उसमें खीर डलवाई। खीर खाकर महात्मा जी जाने लगे तो सेठ ने याद दिलाया, “महात्मा जी, आज से सात दिन पहले आपने मनोाकामना पूरी करने का उपाय देने का वादा किया था। क्या आप भूल रहे हैं?” महात्मा जी शांत स्वर में बोले, “क्या तुम नहीं समझे?” चकित सेठ ने पूछा, “जी नहीं”।
महात्मा बोले, “मेरे पात्र में गंदगी भरी थी, उसमें तुमने खाने की चीज नहीं डाली। पहले उसे साफ करवाया, तब उसमें खीर डाली। तुम्हारे अन्दर सब तरह की गंदगी भरी है, पहले उसे निकालकर बाहर करो, ऐसा करने पर प्रत्येक उपाय तुम्हें फायदा करेगा, तुम्हारी मनोकामना पूरी होगी।’ बुरी आदतें और नकारात्मक विचार ही जीवन में रुकावटें बनते हैं।
धर्म, अध्यात्म और ज्योतिष, सभी आंतरिक परिवर्तन को प्राथमिकता देते हैं – यह कथानक केवल नैतिक शिक्षा न देकर धर्म, अध्यात्म और ज्योतिष, तीनों का मूल सार बताता है। ग्रह दशाएं कुछ प्रतिशत प्रभाव डालती हैं, बाकी मनुष्य की अपनी चित्त-वृत्तियां और कर्म निर्णय लेते हैं। अध्यात्म के अनुसार आंतरिक शुद्धि से ही बाहरी परिस्थितियां बदलती हैं। इसलिए कहा जाता है कि “पहले मन को सुधारो, कर्म और भाग्य अपने-आप सुधर जाएंगे।”
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