
बतौर माता-पिता, आपकी जिम्मेदारी है कि बच्चों में हेल्थ से जुड़े किसी भी संकेत या समस्या को हल्के में न लें, क्योंकि यह किसी दुर्लभ बीमारी का भी लक्षण हो सकता है। इसीलिए सतर्क रहें।
जब भी बच्चों की बीमारी की बात होती है, तो सबसे पहले हमारे दिमाग में सर्दी-खांसी, बुखार या फिर इंफेक्शन का ख्याल आता है। हम सोचते हैं कि खेलते-कूदते बच्चे गंदगी और कीटाणुओं के संपर्क में आकर इंफेक्शन का शिकार हो गए होंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन बीमारियों से इतर, बच्चों को ऐसी दुर्लभ बीमारियां भी होती हैं, जिनमें से कुछ जानलेवा साबित होती हैं।
किसी में यह बीमारी दूसरे जन्मदिन से पहले ही जान ले लेती है, तो किसी में 30 साल की उम्र तक मौत का कारण बन जाती है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि ज्यादातर रेयर डिजीज आनुवंशिक यानी माता-पिता से बच्चों को मिलती हैं।
इसीलिए आइए मधुकर रेनबो चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल की सीनियर पीडियाट्रिक कंसल्टेंट डॉ. अनामिका दुबे से जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर कौन-कौन सी बीमारियां हैं, जो जेनेटिक होती हैं। साथ ही यह भी समझेंगे कि बच्चे की जिंदगी पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है। साथ ही कौन सी बीमारियां जानलेवा होती है।
किसे कहते हैं दुर्लभ बीमारी ? – डॉक्टर अनामिका बताती हैं कि दुर्लभ रोग वह बीमारी होती है जो जनसंख्या के बेहद छोटे हिस्से को प्रभावित करती है। भारत में किसी रोग को ‘दुर्लभ’ तब माना जाता है, जब वह 2,500 लोगों में से 1 से भी कम व्यक्ति में पाया जाए। ज्यादातर दुर्लभ बीमारियां आनुवंशिक होती हैं, यानी यह बच्चों को माता-पिता से विरासत में मिलती हैं।
क्या है रेयर डिजीज के नाम ? – वे आगे बताती हैं कि अगर रेयर डिजीज की बात करें, तो इसमें ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी, Gaucher रोग और कई तरह के मेटाबोलिक या एंजाइम संबंधी डिसऑर्डर शामिल हैं। भले ही हर दुर्लभ रोग की स्थिति अलग होती है, लेकिन अक्सर इनमें कुछ सामान्य लक्षण दिखाई देते हैं, जो बच्चे की ग्रोथ और विकास को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
डेवलपमेंट में होती है देरी – एक्सपर्ट कहती हैं कि इन डिजीज के चलते बच्चों में डेवलपमेंट सामान्य बच्चों की तुलना में थोड़ा देर से होता है। अब जैसे बच्चे देर से बैठना, चलना या बोलना शुरू कर सकते हैं। दरअसल, न्यूरोलॉजिक या मस्कुलर डिसऑर्डर बच्चे के लिए इन बेसिक डेवलपमेंट को मुश्किल बना देते हैं।
पढ़ाई पर पड़ता है असर – पढ़ाई पर पड़ता<u></u> है असर
एक्सपर्ट कहती हैं कि इन दुर्लभ बीमारियां अंगों के चलते माता-पिता को बार-बार अस्पताल जाना पड़ सकता है। वहीं बच्चा भी स्वास्थ्य समस्याओं और इलाज के चलते स्कूल मिस कर सकता है। वहीं, न तो उसे ढंग से डाइट मिल पाती है और न ही खेल-कूद सकता है। इसके चलते बच्चे की ओवरऑल ग्रोथ पर असर पड़ता है।
दूसरे बच्चों से नहीं घुल-मिल पाते हैं – डॉक्टर अनामिका कहती हैं कि रेयर डिजीज के कारण बच्चों को बार-बार डॉक्टर के पास जाना या अस्पताल में एडमिट तक होना पड़ता हैं। इसी वजह से वे दूसरे बच्चों के साथ साथ घुल-मिल नहीं पाते। वे अलग-थलग पड़ जाते हैं।
बच्चे के जन्म के वक्त ही हो जाती है मौत – Cleveland Clinic के अनुसार स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) के पांच प्रकार होते हैं। इनमें सबसे दुर्लभ SMA टाइप 0 है, जो गर्भ में ही भ्रूण को प्रभावित करता है। इस स्थिति में बच्चे का जन्म होते ही या पहले महीने के अंदर ही मौत हो जाती है।
इसके अलावा, SMA टाइप 1 भी बहुत गंभीर माना जाता है। इसमें शिशु को निगलने और सांस लेने में परेशानी होती है। अगर समय पर सांस लेने में मदद (respiratory support) न मिलने पर, ऐसे बच्चों की दूसरे जन्मदिन के पहले ही मौत हो जाती है।
IndianZ Xpress NZ's first and only Hindi news website