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टीनएज उम्र में भी बच्‍चों को नहीं देना चाहिए अलग कमरा, मां-बाप के साथ ही सोना रहता है सही


भारत में परिवारों का कुछ ऐसा सेटअप है कि बच्‍चे अपने मां-बाप के साथ एक ही कमरे या बिस्‍तर पर सोते हैं लेकिन जब बच्‍चे थोड़े बड़े होते हैं या टीनएज उम्र में आते हैं, तो उन्‍हें अलग कमरा दिया जाता है। यही कहा जाता है कि बच्‍चों को बड़े होने पर अलग सुलाना चाहिए लेकिन हर मामले में इस नियम को लागू करना सही नहीं होता है। कुछ मामलों में टीनएज बच्‍चों को अपने पैरेंट्स के साथ सोने में फायदा होता है। यहां हम आपको कुछ ऐसे फायदों के बारे में बता रहे हैं, जो टीनएज बच्‍चों को अपने पैरेंट्स के साथ सोने में मिल सकते हैं।
ओपन कम्‍यूनिकेशन रखें – टीनएज उम्र में भावनात्‍मक रूप से बहुत उतार-चढ़ाव आते हैं और पैरेंट्स के साथ सोने पर बच्‍चों को सहज महसूस हो सकता है। इससे बच्‍चों को ओपन कम्‍यूनिकेशन के लिए सुरक्षित जगह मिल पाती है और टीनएजर बच्‍चा अपने विचारों और चिंताओं को सोने से पहले ही अपने पैरेंट्स से डिस्‍कस कर ले। इससे पैरेंट्स अपने बच्‍चों के करीब रहते हैं। इससे बच्‍चे को अपने जीवन की चुनौतियों से लड़ने के लिए सही दिशा मिलती है।
सुरक्षा का एहसास होता है – पैरेंट्स के पास सोने से बच्‍चों में सुरक्षा का एहसास आता है। किशोरावस्‍था में अक्‍सर बच्‍चे असुरक्षा और अनिश्चितताओं जैसी भावनाओं से घिर जाते हैं और अगर परिवार में से कोई उनके पास हो, जिस पर वो भरोसा कर सकते हैं, तो इससे बच्‍चे को रात के समय एंग्‍जायटी नहीं होती है। डेवलपमेंट के इस मुश्किल फेज में आपका सपोर्ट बच्‍चे के काफी काम आता है। कई बार ऐसा होता है कि बाहरी दुनिया बच्‍चे को अलग-थलग कर देती है, ऐसे में पैरेंट्स का साथ बच्‍चे को मजबूत बनाने का काम करता है।
हेल्‍दी स्‍लीप पैटर्न बनता है – टीनएज बच्‍चों के साथ पैरेंट्स के सोने से बच्‍चों में स्‍लीपिंग पैटर्न दुरुस्‍त रहता है। अक्‍सर देखा जाता है कि इस उम्र के बच्‍चों का स्‍लीप शेड्यूल ठीक नहीं होता है और वो पढ़ाई के दबाव, सोशल एक्टिविटीज और डिजाइटल डिवाइसों में उलझे रहते हैं। पैरेंट्स के साथ सोने पर बच्‍चे का बेडटाइम रूटीन अच्‍छा रहता है और स्‍लीप हाइजीन को बढ़ावा मिलता है। इससे बच्‍चे को बुरे सपने आने या अनिद्रा जैसी परेशानियां भी नहीं होती हैं।
हालांकि, इस बात में भी कोई शक नहीं है कि हर परिवार में टीनएज बच्‍चों के साथ एक ही कमरे में सोना उपयुक्त नहीं हो सकता है। व्यक्तिगत प्राथमिकताएं और हर परिवार की के अलग डायनेमिक्‍स यह निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है कि कौन सी व्यवस्था आपके और आपके बच्चे के लिए सबसे अच्छा काम करती है। कुछ किशोर बच्‍चों को अपनी आजादी चाहिए होती है और वे अपनी खुद की जगह पसंद कर सकते हैं। माता-पिता के लिए यह आवश्यक है कि वे अपने किशोरों के साथ खुलकर बात करें, उनकी स्वायत्तता और प्राथमिकताओं का सम्मान करते हुए सोने की व्यवस्था पर एक बार उनसे बात जरूर करें।