
चीन और रूस के बीच दोस्ती जगजाहिर है और अब चीन की सैन्य तैयारी में भी रूस की झलक दिखने लगी है। चीन के सैन्य उपकरणों ही नहीं, रणनीति और ऐक्शन भी रूस से प्रेरित है। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में एयरफोर्स ऑफिसर के हवाले से दावा किया गया है कि चीन अगर हमला करता है तो वह हथियारों और रॉकेट के बैराज के नीचे बड़ी संख्या में सैनिकों के साथ आगे बढ़ेगा।
उसकी सतह से हवा में मारने वाली मिसाइल बैट्रियों की मदद से भारतीय वायुसेना के हथियारों से भी बचाव करेगी। ऑफिसर का कहना है कि ऐसे ही सोवियत जंग लड़ा करते थे जहां सैनिक गहराई वाले इलाकों में रहकर एयर-डिफेंस को कवर देते थे।
तेज होगा भारत का जवाब
एक्सपर्ट्स का मानना है कि जंग के हालात में भारतीय लड़ाकों को जमीन पर डटे रहने के लिए मजबूर करने की कोशिश होगी। हालांकि, भारतीय वायुसेना कई बार इसे फेल कर चुकी है। अधिकारी का कहना है कि भारतीय सेना का किसी भी हमले को जवाब PLA से तेज होगा क्योंकि LAC (वास्तविक नियंत्रण रेखा) भारतीय बेस से करीब है।
ऐंटी-सैटेलाइट (ASAT) वेपंस वो हथियार होते हैं जिनका इस्तेमाल सैटेलाइट्स को नष्ट करने के लिए किया जाता है। भारत के अलावा अमेरिका, रूस और चीन ने ही ASAT मिसाइल के सफल टेस्ट किए हैं। भारत ने पिछले साल ‘मिशन शक्ति’ के तहत ASAT का टेस्ट किया था। आमतौर पर ASAT मिसाइल में एक ‘किल वेहिकल’ होता है जिसका अपना गाइडेंस सिस्टम होता है। मिसाइल जैसे ही वायुमंडल से बाहर निकलती है, किल वेहिकल अलग हो जाता है और टारगेट की तरफ बढ़ता है। किसी विस्फोटक की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि उसकी रफ्तार ही सैटेलाइट्स के टुकड़े-टुकड़े करने के लिए काफी है। अभी तक किसी देश ने दूसरे देश के सैटेलाइट को नष्ट नहीं किया है। अगर किसी देश ने ऐसा किया तो शायद दुनिया पहली बार अंतरिक्ष में युद्ध होता हुआ देखे।
दुनिया के कई देशों के बीच में प्रतिस्पर्धा ऐसी है कि वे हैकर्स के इस्तेमाल कर सैटेलाइट्स को अपने हिसाब से चलाने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा स्वतंत्र हैकर्स का खतरा अलग है। इसमें हैक कहां से हुआ, यह पता लगा पाना बेहद मुश्किल होता है। हैकिंग के बाद सैटेलाइट्स को बंद किया जा सकता है, सिग्नल जैम किए जा सकते हैं। कुछ सैटेलाइट्स में स्पीड कम-ज्यादा करने के लिए थ्रस्टर्स होते हैं। अगर हैकर्स ऐसे किसी सैटेलाइट को कंट्रोल कर लें तो भयंकर नतीजे हो सकते हैं। फिर उस सैटेलाइट को किसी दूसरे देश के सैटेलाइट से टकराकर युद्ध की भूमिका बनाई जा सकती है। हैकर्स उसे धरती की तरफ भी मोड़ सकते हैं या इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन को भी निशाना बना सकते हैं।
1998 में अमेरिकी-जर्मन ROSAT एक्स-रे सैटेलाइट पर हैकर्स ने कंट्रोल कर लिया था। उन्होने गोड्डार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के कम्प्यूटर्स हैक किए। फिर सैटेलाइट को निर्देश दिया कि वह अपने सोलर पैनल सीधे सूरज की तरफ कर दे। नतीजा ये हुआ कि सैटेलाइट की बैटरियां राख हो गईं और सैटेलाइट बेकार हो गया। वही सैटेलाइट 2011 में धरती पर क्रैश हुआ। अमेरिका के ही स्काईनेट सैटेलाइट को हैकर्स ने फिरौती के लिए हैक कर लिया था। 2008 में नासा के दो सैटेलाइट्स पर हैकर्स ने कंट्रोल हासिल कर लिया था। उसमें चीन की भूमिका की खबरें थीं मगर पुष्टि नहीं हुई। 2018 में चीन समर्थित हैकर्स ने सैटेलाइट ऑपरेटर्स और डिफेंस कॉन्ट्रैक्टर्स को निशाना बनाना शुरू किया था।
किसी देश के प्रमुख सैटेलाइट्स को उड़ाने या कंट्रोल करने से उसकी पूरी व्यवस्था को पंगु किया जा सकता है। फोन, इंटरनेट, टीवी, रेडियो हर तरह के इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन के लिए सैटेलाइट्स यूज होते हैं। सेनाएं भी सैटेलाइट्स के डेटा पर बहुत निर्भर होती हैं। यानी अगर किसी देश के सैटेलाइट्स को टारगेट किया जाए तो उसकी पूरी संचार व्यवस्था ध्वस्त की जा सकती है। अगर एक देश के सैटेलाइट को हैक कर दूसरे देश के सैटेलाइट से टकरा दिया जाए तो उन दो देशों के बीच युद्ध की भारी संभावना बन सकती है।
चीन को पड़ सकता है भारी
इसके अलावा PLA की सतह से हवा पर मारने वाली मिसाइल साइट हवा से सतह में मार करने वाली भारतीय मिसाइलों के निशाने पर आ सकती है। एयर-डिफेंस मिसाइल सिस्टम के खत्म होने के बाद हथियारों, रॉकेट और सैनिक तिब्बती रेगिस्तान में खुले में आ जाएंगे। अधिकारी ने बताया कि PLA ने गहराई के इलाकों में सैनिक तैनात कर रखे हैं। हालांकि, भारतीय सेना के खिलाफ हमला आसान नहीं होगा।
भारत को इसलिए होगा फायदा
भारतीय सेना ने पैंगॉन्ग झील के उत्तर और दक्षिण में ऊंचाई पर कब्जा कायम कर रखा है। चीन के लिए भारतीय ठिकानों को ढूंढना मुश्किल होगा। वहीं, उनका दावा है कि भारतीय सेना चीन के हमले का जवाब दे सकेगी। जानकारी के मुताबिक 2016 के उरी और 2019 के बालाकोट स्ट्राइक के बाद सेना को अपना जखीरा बढ़ाने के लिए इजाजत दी गई थी और सेना अब कम से कम 10 दिन तक व्यापक जंग के लिए तैयार है।
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