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WHO की ‘क्लीनचिट’ के बाद भी चीन पर शक, 18 अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की मांग, Wuhan Lab से Coronavirus लीक की हो जांच

ब्रिटेन और अमेरिका के प्रमुख वैज्ञानिकों के एक समूह का कहना है कि COVID -19 महामारी कहां से पैदा हुई, इसका पता लगाने के लिए और अधिक जांच की जरूरत है। समूह का कहना है कि इस जांच में चीन के वुहान की वायरॉलजी लैब से वायरस के ‘ऐक्सिडेंटल लीक’ से आने की धारणा भी शामिल हो। इन वैज्ञानिकों में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रतिरक्षाविज्ञान और संक्रामक रोग विशेषज्ञ भारतीय मूल के रवींद्र गुप्ता शामिल हैं।
‘साइंस’ पत्रिका में प्रकाशित एक पत्र में हार्वर्ड, स्टैनफोर्ड और एमआईटी जैसे दुनिया के प्रमुख विश्वविद्यालयों के 18 विशेषज्ञों ने कहा कि भविष्य के प्रकोपों के जोखिम को कम करने के लिए वैश्विक रणनीतियों बनाने के वास्ते यह जानना जरूरी है कि COVID-19 कैसे उभरा। इन विशेषज्ञों ने आगाह किया कि जब तक पर्याप्त आंकड़े न हों तब तक प्राकृतिक तरीके से और लैब से वायरस के फैलने के बारे में थिअरीज को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
उन्होंने लिखा है, ‘हम WHO के महानिदेशक, अमेरिका और 13 अन्य देशों और यूरोपीय संघ से सहमत हैं कि इस महामारी की उत्पत्ति के बारे में अधिक स्पष्टता प्राप्त करना आवश्यक और संभव है। जब तक पर्याप्त आंकड़े न हों तब तक प्राकृतिक तरीके से और लैब से वायरस के फैलने के बारे में थिअरीज को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।’
अमेरिकी विदेश मंत्रालय को मिले दस्तावेज में दावा किया गया है कि ऐसे युद्ध में जीत के लिए जैव हथियार अहम होंगे। इसमें इनके इस्तेमाल का सही समय भी बताया गया है और ‘दुश्मन के मेडिकल सिस्टम’ पर असर की चर्चा भी की गई है। दि ऑस्ट्रेलियन की रिपोर्ट में पीपल्स लिबरेशन आर्मी के वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य अधिकारियों के डोजियर पर बात की गई है और हथियार बनाने के लिए बीमारियों के इस्तेमाल की बात कही गई है। विश्वेषकों के मुताबिक कम से कम 18 वैज्ञानिक हाई-रिस्क लैब में इस पर काम कर रहे थे।
इस दस्तावेज के लेखकों के मुताबिक तीसरा विश्व युद्ध ‘जैव’ होगा। पहले विश्व युद्ध को केमिकल और दूसरे को परमाणु कहा जाता है। इसमें कहा गया है कि जैसे दूसरे विश्व में जीत परमाणु बम ने दिलाई थी और जापान ने हमले के बाद आत्मसमर्पण कर दिया था, वैसे ही तीसरे विश्व युद्ध में जैव हथियार जीत दिलाएंगे। अमेरिकी एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह रिपोर्ट सामने आने से इस बात को लेकर सवाल और चिंता खड़ी हो गई है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के करीबी आखिर किस मकसद से काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि बहुत ज्यादा नियंत्रण के बावजूद ऐसे हथियार घातक साबित हो सकते हैं।
New Species of Man-Made Viruses as Genetic Bioweapons नाम के दस्तावेज में हथियार के सही समय पर इस्तेमाल से ज्यादा से ज्यादा नुकसान पर चर्चा की गई है। इसमें कहा गया है कि ऐसे हमले दिन के वक्त साफ मौसम में नहीं करने चाहिए। इन पर सूरज, पानी और बर्फ का असर हो सकता है। इन्हें तड़के सुबह, शाम या बदली के दौरान इस्तेमाल करना चाहिए। रिसर्च में कहा गया है कि इस हमले से दुश्मन की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा जाएगी। ऑस्ट्रेलियन स्ट्रटीजिक पॉलिसी इंस्टिट्यूट के एग्जिक्युटिव डायरेक्टर पीटर जेनिंग्स के मुताबिक यह हथियार भले ही आत्मरक्षा के लिए तैयार किए गए हों, लेकिन इनके इस्तेमाल का फैसला वैज्ञानिकों के हाथ में नहीं होगा।
चीन ने दी थी SARS-CoV-2 की जानकारी : महामारी के इतिहास का जिक्र करते हुए वैज्ञानिकों ने याद किया कि किस तरह 30 दिसंबर, 2019 को प्रोग्राम फॉर मॉनिटरिंग इमर्जिंग डिजीज ने दुनिया को चीन के वुहान में अज्ञात कारणों से होने वाले निमोनिया के बारे में सूचित किया था। इससे कारक प्रेरक एजेंट सीवीयर एक्यूट रेसपीरेटरी सिंड्रोम कोरोना वायरस 2 (SARS-CoV-2) की पहचान हुई थी।
मई 2020 में, विश्व स्वास्थ्य सभा ने अनुरोध किया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक SARS-CoV-2 की उत्पत्ति का पता लगाने के लिए भागीदारों के साथ काम करें। नवंबर 2020 में, चीन-डब्ल्यूएचओ के संयुक्त अध्ययन के लिए संदर्भ की शर्तें जारी की गईं। अध्ययन के पहले चरण के लिए जानकारी, आंकड़े और नमूने एकत्र किए गए थे और टीम द्वारा संक्षेप में प्रस्तुत किए गए थे।