
बीजिंगः चीन की नजरें पाकिस्तान के बाद अब म्यांमार पर हैं। चीन यहां पाकिस्तान की तर्ज पर आर्थिक गलियारा बनाने के लिए म्यांमार से समझौते के काफी करीब है। इस डील पर हस्ताक्षर होने के बाद यहां पाकिस्तान की तर्ज पर चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारा (सीएमईसी) बनाया जाएगा जिससे भारत की टैंशन बढ़ जाएगी। एक बार यह प्रोजेक्ट लॉंच हो जाएगा तो म्यांमार में बहुत बड़ी मात्रा में चीनी फंड पहुंचने लगेगा जिससे भारत का अपने पूर्वी पड़ोसी देश पर प्रभाव कमजोर हो सकता है।
म्यांमार के निवेश और कंपनी प्रशासन महानिदेशक के वरिष्ठ अधिकारी यू आंग नैंग ओ ने कहा, ‘दोनों देश जल्द ही आर्थिक गलियारे को बनाने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करेंगे। यह कदम पिछले व्यापक समझौते पर आधारित होगा जिसमें म्यांमार में बुनियादी ढांचे का निर्माण, संचार सुविधा को सुधारने और परिवहन-कृषि की स्थिति सुधारना शामिल है।’ जहां एक तरफ दोनों सरकारें इस प्रोजेक्ट को लेकर काफी उत्सुक हैं वहीं कई ऐसी कई चुनौतियां हैं जो इसकी प्रगति को रोक सकती हैं।
सूत्रों का कहना है कि म्यांमार के कई हिस्सों में जातीय संघर्ष और बर्मा के नागरिकों के एक धड़े में चीन-विरोधी भावनाएं इन बाधाओं में शामिल हैं। इसके अलावा म्यांमार को डर है कि वह चीन के कर्ज में डूब जाएगा। इसी वजह से उसने पूर्व में चीन की आर्थिक मदद से बनने वाले बांध के निर्माण को रद्द कर दिया था। म्यांमार के वाणिज्य मंडल संघ के उपाध्यक्ष यू मौंग मौंग ले ने कहा, ‘म्यांमार वन बेल्ट वन रोड परियोजना को कर्ज में डूबने के खतरे के चलते नजरअंदाज नहीं कर सकता है।’
प्रस्तावित गलियारा चीनी प्रांत यूनान और म्यांमार के तीन महत्वपूर्ण केंद्रों- मंडालय, यांगोन न्यू सिटी और क्यॉपू स्पेशल इकनॉमिक जोन (एसईजेड) को जोड़ेगा। इस गलियारे के जरिए म्यांमार के यंगून और हिंसाग्रस्त रखाइन राज्य के बीच आवागमन को भी सुधारा जाएगा। एक चीनी विशेषज्ञ पेंग नियान ने कहा कि इस समझौते से पता चलता है कि चीनी निवेश को लेकर जारी संदेह खत्म हो रहा है।
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