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चीनी मेट्रो पाकिस्तान में लाई गरीबी, ‘भीख’ मांगने को मजबूर हुई जनता


“नया पाकिस्तान” के सपने दिखा कर सत्ता में आई इमरान खान सरकार अपने हर वायदे पर झूठी साबित हो रही है। कर्ज के बोझ तले दबा देश बुरी तरह कंगाल हो चुका है और जमता रोजी -रोटी को मोहताज। चीन की खैरात और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वकांशी योजनाओं के बल पर दुनिया में इतराने वाले पाकिस्तान की हालत इतनी खऱाब है कि लोग चीन और अपनी इमरान सरकार को जम कर कोस रहे हैं। चीन की मदद से पाक में शुरू हुई मैट्रो परियोजना भी पाकिस्तानियों के लिए मुसीबत ही साबित हो रही है।
लाहौर के अनारकली इलाके में जब बुलडोजर चला तो कुछ लोगों ने जाकर पास के एक धर्मस्थल में शरण ली। जाहिर है कि उन्हें अपनी संपत्ति और जमीन को खोने से नुकसान हुआ। उन्हें अपना घर पंजाब की प्रांतीय सरकार को बाजार से कम कीमत में बेचने पर विवश किया गया। ये सारी कवायद इसलिए हुई ताकि चीन के पैसे से पाकिस्तान के दूसरे सबसे बड़े शहर में मेट्रो रेल चलाई जा सके। ऐसे में जहां मेट्रो आने से उनको तमाम तरह की सुविधाएं मिलने की बात कही गई लेकिन कुछ लोगों को मेट्रो के काम ने अपने घर से निकालकर सड़क पर ला दिया ।
अच्छा खासा जीवन जी रहे इन लोगों की गिनती अब बेघर और गरीबों में होने लगी है। करीब 1.8 अरब अमेरकी डॉलर की इस परियोजना का पहला चरण अक्टूबर में शुरू हो गया। दक्षिण एशिया के सबसे प्रदूषित शहरों में एक लाहौर के लिए यह खुशी की बात है लेकिन इसकी वजह से सैकड़ों लोगों का भविष्य अंधकारमय हो गया है। कुछ लोगों का का कहना है कि वह कहीं और नहीं जाना चाहते क्योंकि पूरी जिंदगी सिर्फ इसी जगह को जाना है। चीनी रेलवे नोरिंको इंटरनेशनल और उसके पाकिस्तानी साझीदारों की चलाई ऑरेंज लाइन चीन की उन दो दर्जन परियोजनाओं में शामिल है जिसे खरबों डॉलर के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत दुनिया के कई देशों में शुरू किया गया है।

 

हर दिन अढाई लाख लोग इस रेल सेवा का इस्तेमाल करते हैं। डीडब्लयू की रिपोर्ट के मुताबिक बेहद सस्ती कही जाने वाली रेल सेवा का किराया 40 पाकिस्तानी रुपए है। सस्ती होने के साथ ही इसमें यात्रियों को आरामदायक और आधुनिक तकनीक से लैस यात्रा का मजा मिलता है। लेकिन सच तो यह भी है कि मैट्रों की मार आम जनता को झेलनी पड़ रही है। यहां भी पाक सरकार भेदभाव कर रही है । चीनी अधिकारी जहां मोटा वेतन और सुविधाएं ले रहे हैं वहीं पाकिस्तानी कर्मी मामूली वेतन पर काम करने को मजबूर हैं। मैट्रो स्थल से उजाड़े गए लोग बदहाली का जीवन जी रहे हैं और कई लोग तो भीख मांगने को मजबूर हो चुके हैं।