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दलाई लामा के घर पहुंचे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, अगले लामा पर तिब्बतियों को साधने की कोशिश?


चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का महासचिव बनने के बाद पहली बार तिब्बत का दौरा किया है। इस दौरान जिनपिंग ने राजधानी ल्हासा में डेपुंग मठ, बरखोर स्ट्रीट और पोटाला पैलेस जैसे प्रसिद्ध बौद्ध मठों का दौरा भी किया। ल्हासा के पोटाला पैलेस को बौद्ध धर्म के सबसे बड़े धर्म गुरू दलाई लामा का घर कहा जाता है। ऐसे में माना जा रहा है कि शी जिनपिंग अपने इस दौरे से अगले दलाई लामा के चयन के लिए तिब्बतियों को साधने की कोशिश कर रहे हैं।
तिब्बत में संस्कृति को खत्म कर रहा चीन : शी जिनपिंग का तिब्बत दौरा पहले से निर्धारित नहीं था। चीन ने हाल के वर्षों में तिब्बत के बौद्ध मठों पर नियंत्रण बढ़ा दिया है। चीनी सरकार पूरी प्लानिंग के तहत बौद्ध धर्म को कमजोर करने के लिए स्कूलों में तिब्बती भाषा के बजाय चीन की मंडारिन भाषा में पढ़ाई करवा रही है। इतना ही नहीं, तिब्बत में चीनी सरकार की इन नीतियों के आलोचकों को गिरफ्तार कर कड़ी से कड़ी सजा भी दी जा रही है। अगर किसी का दलाई लामा के साथ संबंध पाया जाता है तो उसको भी कड़ी सजा दी जाती है।
ब्रह्मपुत्र नदी के विवादित बांध का किया निरीक्षण : चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी शिन्हुआ ने बताया कि शी जिनपिंग ने ल्हासा में प्राचीन शहर के संरक्षण के साथ-साथ तिब्बती संस्कृति की विरासत और संरक्षण के बारे में जानने की कोशिश की। इससे एक दिन पहले उन्होंने यारलुंग जांगबो नदी के बेसिन पर पारिस्थितिक संरक्षण कार्य का निरीक्षण करने के लिए न्यिंगची शहर का दौरा किया। यारलुंग जांगबो को भारत में ब्रह्मपुत्र नदी के नाम से जाना जाता है। चीन इसपर एक विवादित बांध बना रहा है, जिससे नदी के प्रवाह को खतरा पैदा हो सकता है।
पंचेम लामा को मोहरा बनाना चाहता है चीन : तिब्बत पर कब्जे के 70 साल बाद भी चीन की पकड़ उतनी मजबूत नहीं हो पाई है, जितना चीनी कम्युनिस्ट पार्टी चाहती है। इसी कारण जिनपिंग प्रशासन अब तिब्बत में धर्म का कार्ड खेलने की तैयारी कर रहा है। चीन अगले दलाई लामा के चयन में तिब्बती लोगों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहा है। इसलिए, यहां के लोगों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए चीन अब पंचेन लामा का सहारा लेने की तैयारी कर रहा है।
कौन हैं पंचेन लामा : तिब्बती बौद्ध धर्म में दलाई लामा के बाद दूसरा सबसे अहम व्यक्ति पंचेन लामा को माना जाता है। उनका पद भी दलाई लामा की तरह पुनर्जन्म की आस्था पर आधारित है। कहा जाता है कि आज से 26 साल पहले चीनी अधिकारियों ने पंचेन लामा का अपहरण कर लिया था। अपहरण के समय पंचेन लामा की उम्र सिर्फ छह साल की थी। वे अब 32 साल के हो चुके हैं। चीन उन्हें दलाई लामा की जगह बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा नेता बनाने की कोशिश में जुटा है।
दलाई लामा के उत्तराधिकारी को चुनना क्यों जरूरी? : तेनजिन ग्यात्सो, जिन्हें हम 14वें दलाई लामा के नाम से जानते हैं, वे इस साल जुलाई में 86 साल के हो गए हैं। उनकी बढ़ती उम्र और खराब होती सेहत के बीच अगले दलाई लामा के चुनाव को लेकर भी घमासान मचा हुआ है। तिब्बती बौद्ध धर्म में दलाई लामा को एक जीवित बुद्ध माना जाता है जो उनकी मृत्यु के बाद पुनर्जन्म लेते हैं। परंपरागत रूप से जब किसी बच्चे को दलाई लामा के पुनर्जन्म के रूप में चुन लिया जाता है, तब वह अपनी भूमिका को निभाने के लिए धर्म का विधिवत अध्ययन करता है। वर्तमान दलाई लामा की पहचान उनके दो साल के उम्र में की गई थी।
चीन खुद चुनना चाहता है अगला दलाई लाम : चीन ने ऐसे संकेत दिए हैं कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन चीन ही करेगा। चीन की इन चालाकियों को देखते हुए दलाई लामा नजदीकियों ने पहले ही बताया है कि परंपरा को तोड़ते हुए वे खुद अपने उत्तराधिकारी का चयन कर सकते हैं। अमेरिका पहले ही इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के सामने रखने की मांग कर चुका है। इस पूरे मामले पर अमेरिका और भारत की पहले से नजर है। पिछले साल US दूत सैम ब्राउनबैक ने धर्मशाला में दलाई लामा से मुलाकात की थी। 84 वर्षीय दलाई लामा से मीटिंग के बाद ब्राउनबैक ने कहा था कि दोनों के बीच उत्तराधिकारी के मामले पर लंबी चर्चा हुई थी।
दलाई लामा के इस बयान से चिढ़ा है चीन : दलाई लामा के 2019 में बयान दिया था कि उनका उत्तराधिकारी कोई भारतीय हो सकता है। इस बात पर चीन को मिर्ची लग गई थी। उसने कहा था कि नए लामा को उनकी सरकार से मान्यता लेनी ही होगी। तिब्बती समुदाय के अनुसार लामा, ‘गुरु’ शब्द का मूल रूप ही है। एक ऐसा गुरु जो सभी का मार्गदर्शन करता है। लेकिन यह गुरु कब और कैसे चुना जाएगा, इन नियमों का पालन आज भी किया जाता है।
1959 में भारत पहुंचे थे दलाई लामा : कहा जाता है कि जब तिब्बत पर चीन ने पूरी तरह से कब्जा कर लिया था, तब 1959 में अमेरिकी खुफिया एजेंटों ने तत्कालीन दलाई लामा को अरुणाचल प्रदेश के जरिए भारत पहुंचा दिया था। आज भी दलाई लामा और तिब्बत की पूरी निर्वासित सरकार हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रहती है। इस बात को लेकर चीन कई बार नाराजगी भी जता चुका है।
धर्मशाला के तिब्बत पॉलिसी इंस्टिट्यूट के रिसर्च फेलो तेनजिन सेतेन का कहना है कि तिब्बत के लोगों और उनकी पहचान और राष्ट्रीयता के लिए दलाई लामा एक अहम प्रतीक हैं। ये लोग चीन के बनाए दलाई लामा को स्वीकार नहीं करेंगे। मौजूदा दलाई लामा के तिब्बत लौटने से पहले अगर उनका निधन होता है, तो क्या होगा, इसे लेकर कोई नियम नहीं है। हालांकि, उन्होंने साल 2011 में कहा था- ‘ऐसा इंसान जिसका दूसरा जन्म होना हो, उसका अधिकार होता है यह तय करना कि वह कब और कहां पैदा होता है।’
14वें दलाई लामा ने कहा था कि अगर वह दूसरा जन्म लेने का फैसला करते हैं, तो 15वें दलाई लामा को ढूंढने की जिम्मेदारी स्विट्जरलैंड के Gaden Phodrang Trust की होगी। इस ट्रस्ट की स्थापना उन्होंने निर्वासन के दौरान की थी ताकि तिब्बती संस्कृति को बढ़ावा दिया जा सके और संरक्षित किया जा सके। उन्होंने कहा था कि वह इसे लेकर लिखित में निर्देश छोड़कर जाएंगे। हालांकि, ट्रस्ट को तिब्बत जाने की इजाजत नहीं है। दलाई लामा ने 2011 में अपने बयान में साफ किया था कि राजनीतिक मतलब के लिए चुने गए उम्मीदवार को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
दूसरी ओर, चीनी सरकार ने साफ किया है कि अगले दलाई लामा तिब्बत से होंगे और पेइचिंग के मुताबिक बनाए जाएंगे। यहां तक कि चीनी सरकार ने एक दस्तावेज जारी कर पुनर्जन्म के प्रबंधन का तरीका तक बता दिया था। इसमें यह लिखा गया था कि तिब्बत की राजनीतिक हस्तियों का पुनर्जन्म चीनी सरकार की मंजूरी पर होगा और जिनका प्रभाव ज्यादा होगा, उन्हें स्टेट काउंसिल से इजाजत लेनी होगी। सेतेन का कहना है कि चीन धार्मिक हस्तियों को खोजने, टेस्ट करने, पहचाने, शिक्षित करने और ट्रेन करने के लिए नियंत्रण रखता है। यहां तक कि उसने कई सीनियर लामा अपने खेमे में कर रखे हैं जो समय आने पर उसका साथ दें। स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
दलाई लामा को लेकर अमेरिका और चीन में विवाद : दलाई लामा को लेकर अमेरिका और चीन में काफी समय से विवाद जारी है। वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन तिब्बत में चीन के मानवाधिकार हनन को लेकर काफी मुखर हैं। तिब्बत और शिनजियांग को लेकर अमेरिका ने चीन पर कई कड़े प्रतिबंध भी लगाए हुए हैं। 2020 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बौद्ध धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु के चयन में चीनी हस्तक्षेप को रोकने के लिए नई तिब्बत नीति (तिब्बती नीति एवं समर्थन कानून 2020) को मंजूरी दी थी। इसमें तिब्बत में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास स्थापित करने और यह सुनिश्चित करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन बनाने की बात की गई है।