
चीन में कोरोना वायरस का केंद्र बने शहर वुहान में लॉकडाउन खुलने के बाद लोग जहां फिर से अपनी जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं वहीं मृतकों के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। यहां 25 जनवरी को अंतिम संस्कार पर रोक लगाते हुए सभी कब्रिस्तान बंद कर दिए गए थे। कोरोना को फैलने से रोकने के लिए सभी मृतकों के शव अस्पताल से सीधे शवगृह ले जाए जाते थे। जिनकी मौत कोरोना से होती थी, उनका शवदाह कर अस्थियां पृथक रख दी जाती थीं। कोरोना मृतकों के परिजनों को अपनों के अंतिम दर्शन करने तक की इजाजत नहीं दी जाती थी। अस्थियां भी कम से कम दो हफ्ते बाद ही सौंपी जाती थीं।
लोगों को न सिर्फ साधारण रूप से अपनों को दफनाने, बल्कि शवदाहगृह में रखी गई अस्थियों को भी ले जाने की इजाजत दी जा रही है। हालांकि, वुहान ने झांग लिफांग जैसे प्रवासियों को ऐसा जख्म दिया है कि वे शहर का मुंह तक नहीं देखना चाहते। वहीं कब्रिस्तानों के बाहर लंबी लाइन लगी हैं और परिजनों को विलाप की इजाजत नहीं है। यात्रा प्रतिबंध हटते ही शेनजेन लौटने वाले लिफांग कहते हैं, ‘वुहान में मेरा दिल टूटा था। कभी सोचा भी नहीं था कि जिस पिता को ऑपरेशन के लिए वुहान ले गया था, उनके बिना ही घर लौटना पड़ेगा। अगर पिता की अस्थियां न लेनी हों तो मैं कभी वुहान में कदम रखने की सोचूं तक नहीं।’
दरअसल, झांग के पिता वुहान में सेवानिवृत्त हुए थे। उन्हें शहर में मुफ्त चिकित्सकीय सेवा हासिल थी। हालांकि, ऑपरेशन के कुछ ही दिनों बाद वह कोरोना से संक्रमित हो गए और एक फरवरी को दम तोड़ दिया। झांग कहते हैं, ‘मैं नहीं जानता था कि वुहान में वायरस इस कदर फैल गया है। मुफ्त ऑपरेशन के नाम पर मैं अपने पिता को मौत के मुंह में ले गया। यह सोचकर मेरा मन दर्द और पश्चाताप की आग में जल उठता है।’
वहीं, 34 वर्षी पेंग यतिंग कहते हैं, ‘मां की अस्थियां तो मिल गईं पर उसे दफनाने के लिए उचित स्थान तलाशने को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। कब्रिस्तान के बाहर लंबी कतारें लगी हुई हैं। सभी को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए एक-एक कर अंदर जाने दिया जा रहा है। अस्थियां दफनाते समय न तो रोने, न ही विलाप करने की इजाजत है। सालाना ‘टॉम्ब स्वीपिंग’ परंपरा, जिसके तहत पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के लिए लोग उनकी कब्रें साफ करते हैं, भी रोक दी गई है।’
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