
जैसा कि हम सब जानते हैं परमजोत परमात्मा ने सारी सृष्टि की रचना पांच तत्वों से ही की है। इसमें सारी प्रकृति, जीव-जंतु, पेड़-पौधे और परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ कृति मनुष्य भी शामिल हैं। ये पांच तत्व इस प्रकार हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। जब हमारा शरीर इन पांच तत्वों से बना है तो हमें इनके बारे में तथा इनके गुणों के बारे में जानना चाहिए और यहां तक कि इनसे मित्रता भी करनी चाहिए। यह तो हम सभी जानते हैं कि दो जीवों की मित्रता तभी हो सकती है जब दोनों के गुण आपस में मिलते हों। अब इन तत्वों के गुणों के बारे में विचार करते हैं और देखते हैं कि हम इनसे मित्रता किस प्रकार कर सकते हैं, या अन्य शब्दों में कहें, तो इनसे क्या सीख सकते हैं।
पृथ्वी- पृथ्वी के दो गुण हैं, एक तो सहनशीलता और दूसरा दाता (देने वाली) पृथ्वी पर कोई कुछ भी करता है, कोई उसे खोदता है, कोई उस पर मकान बनाता है, कोई अपनी मर्जी के अनुसार कोई भी कर्म करता है, पृथ्वी चुपचाप सब कुछ सहन करती है।
दूसरा गुण है- देने का। हम पृथ्वी में एक बीज बोते हैं तो वह लाख गुणा करके लौटाती है। इसलिए पृथ्वी से हमें सहनशीलता और देने का गुण सीखना चाहिए। हमारे पास जो कोई भी आए अथवा हम जिससे भी मिलें, हमें उसे कुछ न कुछ अवश्य देना चाहिए। देने के लिए धन ही जरूरी नहीं, हम एक मीठी मुस्कान, शुभ कामनाएं, आशीर्वाद और सच्चे प्रेम का व्यवहार भी दे सकते हैं।
जल- प्रकृति का दूसरा तत्व है- जल। जल हम सभी के लिए अति आवश्यक है। इतना आवश्यक कि उसके बिना जीवन ही संभव नहीं है। जल का गुण है शीतलता और परिवर्तनशीलता। जल को जिस भी बर्तन में रखें, वह उसी का आकार ले लेता है। इस प्रकार जल से हमें सीखना चाहिए कि हम अपना दिमाग हमेशा ठंडा रखें और हमारे विचारों में लचीलापन होना चाहिए ताकि हम हरेक के साथ एडजस्ट कर सकें और दूसरों के साथ व्यवहार करते समय हमें कठोर नहीं होना चाहिए।
अग्नि- प्रकृति का तीसरा तत्व है- अग्नि। अग्नि का सबसे बड़ा गुण है जलाना और रूप परिवर्तन करना जिस प्रकार अग्नि में हम लकडिय़ां डालते हैं तो कोयला बन जाता है। हमें अग्नि से यह सीखना चाहिए कि हम अपने विकारों को जलाएं तथा हमारे पास यदि कोई रोता हुआ आए तो हम उसे खुश कर दें, कोई दुखी आए तो उसको सकारात्मक सोच देकर या जैसे भी संभव हो सके, उसका दुख दूर कर सकें।
वायु- वायु का गुण है- हल्कापन। वायु से हमें सीखना चाहिए कि हम अपना मन हल्का रखें, अच्छा सोचें और अच्छा काम करें। इससे मन निर्मल भी होगा और हल्का भी। हल्का मन ही ध्यान में सहायक हो सकता है।
आकाश- प्रकृति का पांचवां तत्व है- आकाश। आकाश का गुण है- विशालता। हमें भी अपना हृदय आकाश की तरह विशाल बनाना चाहिए। हृदय को विशाल बनाने के लिए हमें प्रेम अपनाना होगा। परमात्मा से प्रेम, हर आत्मा के प्रति प्रेम, सब जीवों के प्रति प्रेम, वनस्पति के प्रति प्रेम। हृदय में प्रेम आने से हमारा घर-परिवार भी स्वर्ग बन जाएगा। इस प्रकार जब हम प्रकृति के पांचों तत्वों के गुणों को अपनाएंगे तो वे तत्व हमारे मित्र बन जाएंगे। इससे हमारा स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा और हमारा जीवन खुशहाल बन जाएगा। एक बात और भी है, प्रकृति में कभी भी आकस्मिक आपदा आ सकती है, उस समय भी ये तत्व हमारी रक्षा करेंगे। अर्थात हमें नुक्सान नहीं पहुंचाएंगे, क्योंकि एक मित्र दूसरे मित्र का कभी बुरा नहीं करता।
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