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हार्ट अटैक गन, लिपिस्टिक ट्यूब से पेजर में विस्फोटक तक… रोजमर्रा की चीजों को यूं हथियार में बदलती रही हैं जासूसी एजेंस‍ियां


लेबनान में एक दिन पेजर्स में धमाके हुए तो इसके ठीक एक दिन बाद वॉकी टॉकी में विस्फोट हुए। यह एक बहुत ही सोच समझकर किए गए हमले थे, जिनसे लेबनान में एक अफरातफरी का आलम पैदा हो गया। इस तरह के खुफिया ऑपरेशन का ये पहला मामला नहीं है।
लेबनान में हुए पेजर ब्लास्ट की इस समय दुनियाभर में चर्चा है। लेबनान में हिजबुल्लाह लड़ाके जिस पेजर को सुरक्षित मानकर बातचीत का जरिया बनाए हुए थे, वो अचानक उनके लिए मौत का सामान बन गया। देशभर में पेजर्स में विस्फोट ने जब हजारों लोगों को घायल कर दिया तो उनको पता चला कि ये डिवाइस विस्फोटक से भरी हुई थी। माना जा रहा है कि इजरायल की जासूसी कंपनियां लेबनान में हुई इस तबाही के लिए जिम्मेदार हैं क्योंकि हिजबुल्लाह और इजरायली सेना लंबे समय से एक-दूसरे पर हमलावर हैं। ये पहली बार नहीं है जब जासूसी एजेंटों ने रोजमर्रा की चीजों को जानलेवा हथियार बनाकर दुश्मन के खिलाफ इस्तेमाल किया है।
पूर्व वरिष्ठ ब्रिटिश सैन्य खुफिया अधिकारी फिलिप इनग्राम ने द सन से बात करते हुए बताया कि आम जीवन में इस्तेमाल होने वाले गैजेट खतरनाक साबित होते रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमने अपने कार्यकाल में खिलौनों को विस्फोटकों से लैस देखा है तो लंदन की सड़कों पर जहरीली गोलियों वाले छाते भी देखे हैं। युद्ध में इस तरह के हथियारों का इस्तेमाल असामान्य नहीं है। जासूसी एजेंसी कई बार इस तरह से निशाना बनाती है।
इजरायली एजेंसियां करती रही हैं इस तरह के ऑपरेशन – इजरायल की एजेंसियों को फिलिस्तीन में इस तरह के ऑपरेशन करने के लिए जाना जाता रहा है। इजरायल ने 1996 में हमास के याह्या एयाश को एक बम-जाल डिवाइस की बदौलत मारा था। इजरायल की आंतरिक सुरक्षा एजेंसी शिन बेट ने उस तक मोटोरोला सेल फोन पहुंचाया था और इसमें हुए धमाके में वह मारा गया था। फोन के अंदर 50 ग्राम विस्फोटक था, जो उसके कॉल उठाने के वक्त फटा था। इजरायल ने इसी तरह 2008 में हिजबुल्लाह के इमाद मुगनीह को उसकी सीट के हेडरेस्ट को हाई-एक्सप्लोजिव चार्ज के बदलकर मारा डाला था।
मेरिका की सीआईए अपने गैजेट और डिवाइस के बारे में बहुत गुप्त रहती है। कहा जाता है कि 1975 में सीआईए के पास एक ऐसा हथियार था जो बिना कोई निशान छोड़े किसी को मार सकता था। इसे ‘हार्ट अटैक गन’ कहा गया था क्योंकि इससे मरने वालों की मौत का आधिकारिक कारण हार्ट अटैक होता था जबकि उसकी हत्या होती थी। बंदूक से पानी और शेलफिश टॉक्सिन का एक तीर दागा जाता था। यह जिसके शरीर में जाता तो तीर पिघल जाता और जहर शिकार के शरीर में छोड़ देता था। हालांकि ये साफ नहीं है कि इसका कभी इस्तेमाल हुआ था या नहीं।
किस ऑफ डेथ वाली लिपिस्टिक – 1960 के दशक में एक ओर पूर्व और पश्चिम के बीच तीव्र प्रतिद्वंद्विता और जासूसी चल रही थी तो यह ग्लैमर का दशक भी था। 1965 में पश्चिम बर्लिन की एक चौकी पर अमेरिका ने एक केजीबी एजेंट को लिपस्टिक ट्यूब ले जाते हुए पकड़ा था, जो वास्तव में एक बंदूक थी। इस डिवाइस को लिपस्टिक की ट्यूब के साथ फिट किया जाता थ। यह बैरल को लक्ष्य के किनारे दबाकर काम करता था और सामने वाले की जान ले लेता था। इसे ‘किस ऑफ डेथ’ कहा गया। शीत युद्ध की यह डिवाइस वाशिंगटन डीसी के जासूसी संग्रहालय में रखी है।