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कराची से ग्वादर तक, अरब सागर बन जाएगा पाकिस्तानी नौसेना का कब्रगाह… INS Vikrant से पीएम मोदी के संदेश के मतलब समझिए


सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला था कि मई महीने में संघर्ष के दौरान पाकिस्तान नौसेना ने कराची और ओरमारा में अपने पारंपरिक नौसेना अड्डे खाली कर दिए थे। इस दौरान उसने अपने युद्धपोतों को नागरिक बंदरगाहों और चीन की तरफ से ऑपरेट किए जाने वाले ग्वादर पोर्ट पर भेज दिया था।
साल 1971 की लड़ाई में भारतीय नौसेना ने जब कराची पोर्ट पर बमबारी की थी तो कम से कम एक हफ्ते कर आग जलती रही थी। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान ने अपने कुछ युद्धपोत को भारतीय नौसेना से बचाने के लिए ईरान की सीमा के करीब और कुछ युद्धपोत को ग्वादर पोर्ट भेज दिया था। भारतीय नौसेना की अरब सागर में मजबूत मौजूदगी से पाकिस्तान हमेशा डरा रहता है। लेकिन इस बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिवाली भारतीय नौसेना के साथ समुद्र में मनाई है। यह उनका सशस्त्र बलों के साथ 12वां दिवाली उत्सव था, लेकिन नौसेना के साथ पहला। इसीलिए पाकिस्तान को कुछ खास संदेश भेजा गया है।
प्रधानमंत्री मोदी का INS Vikrant पर जाना और नौसेना के साथ दिवाली मनाना कोई प्रतीकात्मक कदम नहीं था। बल्कि पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित जनरल हेडक्वार्टर (GHQ) को भेजा गया एक सशक्त राजनीतिक संदेश था। इंडिया टुडे में लिखते हुए प्रसिद्ध डिफेंस जर्नलिस्ट संदीप उन्नीनाथन ने इसे पाकिस्तान के लिए खास रणनीतिक संदेश माना है। समुद्र में तैनात आईएनएस विक्रांत पर मौजूद जवानों से संवाद करते हुए मोदी ने कहा, कि “कुछ महीने पहले ही हमने देखा कि कैसे INS Vikrant का नाम पाकिस्तान में डर की लहरें पैदा कर गया। यही उसकी शक्ति है, एक ऐसा नाम जो दुश्मन का साहस तोड़ देता है।”
INS Vikrant से क्यों डरता है पाकिस्तान? – दरअसल, सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला था कि मई महीने में संघर्ष के दौरान पाकिस्तान नौसेना ने कराची और ओरमारा में अपने पारंपरिक नौसेना अड्डे खाली कर दिए थे। इस दौरान उसने अपने युद्धपोतों को नागरिक बंदरगाहों और चीन की तरफ से ऑपरेट किए जाने वाले ग्वादर पोर्ट पर भेज दिया था। ऐसा इसलिए, क्योंकि समुद्र में 300 नॉटिकल मील दक्षिण दिशा में भारत का विक्रांत कैरियर बैटल ग्रुप ऑपरेट हो रहा था, जिसके चार एस्कॉर्ट जहाजों पर ब्रह्मोस मिसाइलें लक्ष्य साधने को तैयार थीं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अगर 10 मई को युद्धविराम लागू नहीं होता और युद्ध थोड़ा और लंबा होता तो कराची बंदरगाह पर हमला तय हो गया था, बस आदेश मिलने का इंतजार था।