
नारी समाज के लिए आभूषणों का न सिर्फ भौतिक, बल्कि वैज्ञानिक महत्व भी है। विभिन्न आभूषण, गहने व्यक्तित्व को ही नहीं निखारते, बल्कि शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करते हैं। महिलाओं द्वारा आभूषणों को धारण करना मात्र फैशन ही नहीं शोध परक वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक जरूरत भी है। आभूषण नारी का अलंकार-शृंगार ही नहीं हैं, उसके नैसर्गिक नारी-सुलभ व्यवहार को भी प्रतिबिम्बित करने में सहायक होते हैं। महर्षि कश्यप का कहना है कि महिलाओं को किसी न किसी प्रकार, किसी न किसी तरह के सोने-चांदी के आभूषण जरूर पहनने चाहिएं और सौभाग्यवती महिलाओं को लाल-गुलाबी वस्त्र धारण करने चाहिएं।
नाक में आभूषण धारण करने से फेफड़ों में पहुंचने वाली वायु शुद्ध होती है। शुद्ध वायु से अशुद्ध रक्त की पूरी तरह शुद्धि हो जाती है। यह रक्त हृदय के माध्यम से अंग-अंग में पहुंच कर व्यक्तित्व और नारी-सुलभ गुणों को निखारता है। नाक का मस्तिष्क से सीधा संबंध है, इससे ज्ञान-तंतुओं का पोषण होता है।
लौंग और नथ पेट एवं पाचन क्रिया को दुरुस्त करते हैं।
कान में आभूषण धारण करने से वायु कान में प्रवेश होने से श्रवण (सुनने वाली) इंद्रियों को बल मिलता है, श्वासनलिका शुद्ध होती है तथा आंखों की रोशनी सलामत रहती है। कान छेदने से गला व जीभ स्वस्थ रहती है।
हाथों, कलाइयों में आभूषण धारण करने से ये हमेशा आंखों के सामने रहने के कारण आंखों की ज्योति को पुष्ट करते हैं और प्रदाह (जलन) को शांत करके कांति में वृद्धि करते हैं।
शंख की चूड़ियां शरीर में कैल्शियम की कमी व पित्तजन्य बीमारियों को दूर करने में सहायक होती हैं।
मस्तिष्क का टीका मन को शांत, सहज, संतुलित व स्वस्थ रखता है।
भौंह और बालों के बीच में माथे पर बिंदी लगाने से गले की आवाज मधुर बनी रहती है। दोनों भौंहों के बीच बिंदी चिपकने से फेफड़ों को शक्ति मिलती है तथा शरीर की ऊर्जा संतुलित रहती है।
सिंदूर महिलाओं के सौभाग्यवती होने का मांगलिक सूचक आभूषण है। यह नारी के लिए सबसे बड़ा और सबसे कीमती शृंगार है।
सिंदूर मस्तिष्क को शांत एवं शीतल रखता है तथा नारीत्व की गरिमा को बनाए रखता है।
मस्तिष्क पर धारण किए गए आभूषण बालों की वृद्धि व पोषण के लिए विशेष रूप से उपयोगी होते हैं।
आंखों में लगाया गया काजल पैरों की उंगलियों और कमर दर्द में आराम पहुंचाता है। यह आंखों की ज्योति के लिए भी लाभदायी है।
गर्दन में पहने हुए आभूषण स्वेद (पसीना) ग्रंथियों को शुद्ध करते हैं।
पायल एवं पैरों में पहनने वाले कड़े, बिछिया आंख, हृदय, शरीर, पैरों, पिंडलियों के आकार-प्रकार को बनाए रखते हैं, साइटिका के दर्द में आराम पहुंचाते हैं तथा एंजाइना, दमा, जुकाम, मधुमेह में लाभदायी हैं।
गले में पहनी जाने वाली हंसुली के तलवों की जलन दूर करती है और चेहरे के हाव-भाव को निखारकर विशेष चमक पैदा करती है।
बालों में लगाने जाने वाले गजरा, वेणी से शरीर शीतल रहता है, फोड़े-फुंसी परेशान नहीं करते, शरीर पर टॉक्सिन (विष) का प्रभाव कम होता है, मोटापा कम होता है, रक्त विकार दूर होते हैं और मन प्रसन्न रहता है।
उंगलियों में सोने की अंगूठियां पहनने से विषों का प्रभाव शरीर पर जल्दी नहीं होता।
छोटी उंगली में अंगूठी पहनने से शरीर में ऊर्जा पैदा होती है। इससे हृदय, गर्दन, कान, रीढ़ की हड्डियां स्वस्थ रहती हैं।
रिंग फिंगर में अंगूठी पहनने से कान, तंत्रिका तंत्र, पाचन तंत्र, फेफड़ों को शक्ति मिलती है तथा साइटिका में आराम मिलता है।
बीच की उंगली (मध्यमा) में सोने के आभूषण धारण करने से गला, तंत्रिका तंत्र, हृदय, आंखें आदि अंग-अवयव स्वस्थ रहते हैं तथा जुकाम एवं बुखार में लाभ मिलता है।
अंगूठे के बगल वाली उंगली (तर्जनी) में अंगूठी पहनने से सर्दी-जुकाम से बचाव तथा नर्वस सिस्टम स्वस्थ रहता है।
अंगूठे का छल्ला दिमाग, फेफड़ा, गला आदि को स्वस्थ रखता है।
पैरों की उंगलियों में पहने गए आभूषण स्वास्थ्य को सुरक्षित रखते हैं।
पैर की छोटी उंगली में धारण किए गए आभूषण (बिछिया) से रीढ़ की हड्डी, कान, दांत, जबड़े की हड्डी और पिंडलियों के दर्द में आराम मिलता है।
पैर की छोटी उंगली के बराबर की उंगली में पहना आभूषण दांतों के लिए फायदेमंद है।
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