अमेरिका में इस समय राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया पूरे जोरों पर हैं, रिपब्लिकन दावेदार डोनाल्ड ट्रंप लगातार अपने बयानों के कारण चर्चा में बने हुए हैं तो डेमोक्रेटिक हिलेरी क्लिंटन भी अपनी दावेदार मजबूती से सामने रखे हुए हैं।
बाहर से देखने वालों के लिए अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव एक अजूबे की तरह ही है, जिसमें प्राइमरी कॉकस और इलेक्टर्स जैसे शब्द सुनकर लोग सोचते रह जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया के सबसे ताकतवर राष्ट्राध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया छह महीने से ज्यादा चलती है और प्रचार आदि को भी जोड़ लिया जाए तो यह कभी कभी दो साल तक खिंच जाती है।
हालांकि यहां दो बार से ज्यादा कोई राष्ट्रपति के पद पर नहीं रह सकता लेकिन पूर्व राष्ट्रपतियों की छाप इन चुनावों पर पूरी तरह दिखती है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की सबसे मजेदार बात ये है कि यहां मतदाताओं को हर उम्मीदवार को परखने का पूरा मौका मिलता है।
हर कसौटी पर कसने के बाद ही मतदाता अपने राष्ट्रपति को देश की कमान सौंपते हैं। अप्रत्यक्ष कहा जाने वाला यह चुनाव एक तरह से पूरी तरह प्रत्यक्ष ही होता है। तो आइए समझने की कोशिश करते हैं कि क्या है अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया।
अमेरिका में अनुच्छेद दो में राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया के बारे में जिक्र है। राष्ट्रपति का चुनाव मोटे मोटे तौर पर दो चरणों में होता है, प्राइमरी और इलेक्ट्रल। प्राइमरी वह प्रक्रिया है जिसमें राजनीतिक दलों के डेलीगेट अपनी पार्टी के उम्मीदवार का चयन करते हैं।
इसके बाद राज्यों के मतदाता इलेक्टर्स का चयन करते हैं ये इलेक्टर्स मतदान के द्वारा देश के राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। चुनाव प्रक्रिया को समझने से पहले यह जानना जरूरी है कि दुनिया के इस सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका में दो ही मुख्य पार्टियां हैं डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन।
मौजूदा राष्ट्रपति बराक ओबामा डेमोक्रेटिक पार्टी से आते हैं उन्हीं की पार्टी की हिलेरी क्लिंटन रिपब्लिक उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप को कड़ी टक्कर दे रही हैं। खैर वापस लौटते हैं चुनाव प्रक्रिया पर, जिसकी शुरूआत होती है फरवरी में अमेरिका के 50 राज्यों में प्राइमरी चुनाव से।
प्राइमरी चुनाव भी दो स्तर पर होता है प्राइमरी और कॉकस। 50 में से 40 राज्यों में प्राइमरी चुनाव होता है और दस राज्यों में कॉकस। इन 40 राज्यों में प्राइमरी चुनावों में मतदाता दोनों पार्टियों के लिए डेलीगेट्स का चुनाव करते हैं। यह चुनाव मार्च के पहले मंगलवार जिसे सुपर ट्यूसडे भी कहा जाता है के दिन ही होता है। इस दिन चुने जाने वाले डेलीगेट्स ही बाद में अपनी पार्टी के लिए मुख्य उम्मीदवारों का चयन करते हैं।
दूसरी ओर दस राज्यों में कॉकस चुनाव प्रक्रिया का प्रयोग होता है। इनमें आयोवा, अलास्का, कोलार्डो, हवाई, कन्सास, मैनी, नेवाडा, नार्थ डैकोटा, मिनीसोटा, वायोमिंग मुख्य हैं। इनमें ज्यादातर पार्टी के पारंपरिक वोटर और कार्यकर्ता ही हिस्सा लेते हैं। ये राज्य भी अपने स्तर पर डेलीगेट का चुनाव करते हैं।
इसके बाद प्र्राइमरी और कॉकस राज्यों के डेलीगेट जुलाई के आसपास होने वाले अपनी अपनी पार्टियों के नेशनल कन्वेंशन में भाग लेते हैं जहां ये डेलीगेट अपनी अपनी पार्टी के उम्मीदवारों का चयन करते हैं।
यहां यह बताना जरूरी है कि डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवारी हासिल करने के लिए प्रत्याशी को 4763 डेलिगेट्स में से 2382 का समर्थन हासिल करना होता है जबकि, रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवारी हासिल करने के लिए 2472 में से 1236 डेलिगेट्स का समर्थन हासिल करना होता है। दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों की घोषणा के बाद चुनाव का यह चरण यहीं समाप्त हो जाता है।
पार्टी की ओर से अधिकृत प्रत्याशी का चयन होने के बाद प्रत्याशी चुनाव प्रचार में जुट जाते हैं, जो नवंबर तक चलता है। अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव आमतौर पर नवंबर के पहले सप्ताह में मंगलवार को ही होता है, जिसे इलेक्शन डे कहते हैं।
इलेक्शन डे पर मतदाताओं द्वारा चुने गए इलेक्टर्स का समूह जिसे इलेक्टर्स कोलाज भी कहा जाता है वह राष्ट्रपति को चुनता है। इसे कुछ इस तरह समझने की जरूरत है कि अमेरिकी इलेक्टर्स कोलाज में 538 इलेक्टर्स होते हैं। ये संख्या होती है हाउस ऑफ रिप्रसंटेटिव और सीनेट के सदस्यों के बराबर।
प्रत्येक राज्य से उतने ही इलेक्टर्स चुने जाते हैं जितने उस राज्य से हाउस ऑफ रिप्रसंटेटिव और सीनेट के सदस्य होते हैं। प्रतिनिधि सभा यानि हाउस ऑफ रिप्रसंटेटिव में 435 सदस्य हैं तो सीनेट के 100 सदस्य हैं। तीन सदस्य अमेरिका के कोलंबिया राज्य से आते हैं।
कुल मिलाकर अमेरिकी कांग्रेस के 538 सदस्यों के बराबर ही इलेक्टर्स चुने जाते हैं, बाद में यही इलेक्टर्स राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। राष्ट्रपति के चयन के लिए किसी उम्मीदवार को 270 सदस्यों का समर्थन होना जरूरी है। इस जादूई आंकडे को छूते ही देश के नए राष्ट्रपति का चेहरा सामने आ जाता है। जो जनवरी में शपथ ग्रहण कर देश की बागडोर संभालता है।