
दुनियाभर के महासागरों में घूमने वाली शार्क मछलियां आखिर कैसे सही दिशा खोज पाती हैं? वैज्ञानिकों की एक टीम ने इस सवाल का जवाब खोजा है। उनकी रिसर्च में पाया गया है कि शार्क चुंबकीय क्षेत्र को प्राकृतिक GPS (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) के तौर पर इस्तेमाल करती हैं। रिसर्चर्स ने बताया है कि उनके लैब एक्सपेरिमेंट में छोटी शार्क प्रजातियों पर टेस्ट किया गया जिसमें इस सवाल के जवाब की पुष्टि हुई है। पानी में रहने वाले दूसरे जीव भी ऐसे ही नैविगेशन करते हैं।
इस स्टडी में बताया गया है कि कैसे ये शार्क विशाल सागरों में घूमती हैं, शिकार करती हैं और प्रजनन भी करती हैं। स्टडी के रिसर्चर ब्रायन केलर के मुताबिक अभी तक यह पता था कि शार्क पर चुंबकीय क्षेत्र का असर होता है लेकिन इसका इस्तेमाल वे नैविगेशन के लिए करती हैं, यह अब पुष्ट हुआ है। कई ऐसी शार्क होती हैं जो 12 से भी ज्यादा मील चलती हैं, फिर भी सही पते पर लौट आती हैं।
कहानी यहीं खत्म नहीं होती। रेस्तरां में इनकी मांग बहुत होती है। इनसे बनने वाली काबायाकी नाम की डिश बनाना सीखने में भी किसी को कई साल लग सकते हैं। इसलिए इसकी कीमत भी काफी होती है। जापान में कहा जाता है कि ईल को काटना सीखने में ही पूरा जीवन लग जाता है। ऐसा ही ग्रिलिंग के बारे में भी कहा जाता है। इसे पूरे वक्त देखना होता है। यह ना ज्यादा सख्त हो सकती है और न नरम। इसे चावल के साथ खाया जाता है। इसकी कीमत 91 डॉलर तक जा सकती है।
जापान में गर्मी के मौसम में इनकी खपत ज्यादा होती है। इसके लिए एक खास फेस्टिवल भी होता है जिसमें यह मछली खाई जाती है। इनकी घटती आबादी के कारण 2014 में इन्हें विलुप्तप्राय करार दे दिया गया जिससे जापान में मत्स्यपालकों के लिए परेशानी खड़ी हो गई। यहां तक कि चीन और ताइवान से आयात करना पड़ा। अमेरिका में भी इसे पाला जाता है जहां इसकी कीमत के कारण इसकी तस्करी भी शुरू हो गई। बढ़ती कीमतों, घटती आबादी और मांग को पूरा करने के लिए मत्स्यपालकों के लिए संतुलन बैठाना बड़ी चुनौती बन गया है।
शार्क कैसे लंबी दूरियां तय करती हैं, इस सवाल ने रिसर्चर्स को कई साल से परेशान किया है। महासागरों में कोरल जैसे लैंडमार्क भी नहीं होते हैं जिनकी मदद से वे रास्ता पहचानें। इस स्टडी के लिए वैज्ञानिकों ने 20 बोनेटहेड शार्क चुनीं और उन्हें चुंबकीय कंडीशन्स में रखा। उन्होंने पाया कि जब उन पर चुंबकीय असर हुआ तो शार्क उत्तर की ओर तैरते हुए गईं। अभी यह देखने के लिए और स्टडी की जरूरत है कि शार्क इसका इस्तेमाल कैसे करती हैं।
यह भी देखा जाना है कि क्या बड़ी शार्क मछलियां भी ठीक ऐसे ही अपना रास्ता तलाश करती हैं। केलर का कहना है कि इस स्टडी के नतीजों से शार्क की प्रजातियों के प्रबंधन में मदद मिलेगी क्योंकि इनकी आबादी खतरे में है। इस साल एक स्टडी में पाया गया कि कुछ प्रजातियां 1970-2018 के बीच 70% तक कम हुई हैं।
IndianZ Xpress NZ's first and only Hindi news website