Wednesday , December 24 2025 2:21 AM
Home / News / चीन कैसे बनाता है इतना सस्ता सामान? जानवरों जैसे हालात में काम करते हैं कैदी, तब बनते हैं कपड़े और कॉस्मेटिक्स

चीन कैसे बनाता है इतना सस्ता सामान? जानवरों जैसे हालात में काम करते हैं कैदी, तब बनते हैं कपड़े और कॉस्मेटिक्स

दुनियाभर में चीन हर तरीके के उत्पाद कम दाम पर बेचता है लेकिन इन सामान को बनाने वाले मजदूर कैसी हालत में रहते हैं, यह जानकर किसी के भी होश उड़ सकते हैं। चीन की जेलों में जो कैदी ये सामान बनाते हैं, उन्हें कोई पैसे नहीं मिलते और तय संख्या से कम सामान बनाने पर जेलगार्डों से सजा भी मिलती है। वहां काम कर चुकीं ली दियान्की ने The Epoch Times को बताया है कि शेन्यान्ग स्थित Liaoning Women’s Prison इंसानों के रहने लायक जगह नहीं है। ली बताती हैं कि गिरफ्तार करने के बाद जानवरों की तरह काम कराते हैं और उनके जैसा ही खाना भी खाने को देते हैं।

खाना-बाथरूम ब्रेक नहीं
यहां सस्ती ब्रा और पैजामे बनाए जाते हैं। कपड़ों के अलावा यहां एक्सपोर्ट के लिए नकली फूल से लेकर कॉस्मेटिक्स और हैलोवीन के आइटम बनाए जाते हैं। एक बार 60 वर्कर्स की एक टीम अपना काम पूरा नहीं कर पाई तो उन्हें तीन दिन लगातार बिना खाए, यहां तक कि बिना बाथरूम जाए लगातार काम कराया गया। झपकी आने पर गार्ड इलेक्ट्रिक बैटन से कैदियों को झटके तक दे दिया करते थे।

‘चीन की सप्लाई चेन इन्फेक्टेड’
अमेरिका के पूर्व डिप्लोमैट फ्रेड रोकाफोर्ट जो अब अंतरराष्ट्रीय लॉ फर्म हैरिस ब्रिकेन में काम करते हैं, उनका कहना है कि जेल और जबरन मजदूरी ने चीन की सप्लाई चेन को इनफेक्ट कर दिया है। फ्रेड 10 साल से ज्यादा चीन में कमर्शल वकील के तौर पर काम कर चुके हैं। इस दौरान वह फॉरन ब्रैंड्स की इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी की रक्षा और जबरन मजदूरी को लेकर 100 से ज्यादा ऑडिट कर चुके हैं।

‘विदेशी ब्रैंड के लिए काम करते हैं मजदूर’
उनका कहना है कि यह समस्या शिन्जिंयांग में जारी मानवाधिकार संकट से ज्यादा पुरानी है। उन्होंने बताया कि विदेशी कंपनियां चीन के सप्लायर्स को काम देती हैं जो जेल के कैदियों से काम कराने वाली कंपनियों या जेलों से ही कॉन्ट्रैक्ट करते हैं। जेलों के वॉर्डन कम दामों पर मजदूर उपलब्ध कराते हैं। विदेशी ब्रैंड आमतौर पर इसकी स्क्रूटिनी नहीं करते हैं कि कहीं जबरन मजदूरी तो नहीं कराई जा रही लेकिन हाल में इसे लेकर जागरूकता बढ़ी है।
‘सारी रात करना पड़ता है काम’
ली ने बताया कि विमिन्स प्रिजन में सैकड़ों कैदियों से कई यूनिट होते हैं जिनमें काम बांटा जाता है। ली जिस यूनिट में थीं वहां हर दिन 14 घंटे कपड़े बनवाए जाते थे। इसके बाद हर कैदी को 10-15 नकली फूलों के स्टेम बनाने होते थे। ये काम करते-करते आधी रात हो जाती थी और धीरे काम करने वाले लोग सारी रात जागते थे।

‘सांस में खींचने को मजबूर धुआं-प्लास्टिक’
दक्षिण कोरिया के लिए कॉस्मेटिक्स बनाने वाली यूनिट से निकलने वाले धुएं और महक से लोगों को सांस से जुड़ी परेशानियां होती थीं लेकिन गार्ड्स से कहने पर उन्हें सजा मिलती थी। यहां तक कि प्लास्टिस के सामान से निकलने वाले डस्ट से बचने के लिए गार्ड खुद मास्क पहनते थे लेकिन कैदियों को उसे सांस के साथ खींचना पड़ता था। इसके अलावा हैलोवीन (Halloween) की सजावट में लगने वाला सामान भी यहां बनाया जात था जिसे बाद में ली ने न्यूयॉर्क में इस्तेमाल होता था देखा।
संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि चीन में उइगर मुस्लिम समुदाय को बड़े पैमाने पर हिरासत में रखने की रिपोर्ट से वह चिंतित है और आतंकवाद से निपटने के बहाने हिरासत में रखे गए इन लोगों को रिहा करने का आह्वान किया है। ऐसे में जानना जरूरी है कि आखिर उइगुर मुस्लिम कौन हैं, उनका इतिहास क्या है और चीन को उनसे क्या डर है…

उइगुर मध्य एशिया में रहने वाले तुर्क समुदाय के लोग हैं जिनकी भाषा उइगुर भी तुर्क भाषा से काफी मिलती-जुलती है। उइगुर तारिम, जंगार और तरपान बेसिन के हिस्से में आबाद हैं।
उइगुर खुद इन सभी इलाकों को उर्गिस्तान, पूर्वी तुर्किस्तान और कभी-कभी चीनी तुर्किस्तान के नाम से पुकारते हैं। इस इलाके की सीमा मंगोलिया, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के साथ-साथ चीन के गांसू एवं चिंघाई प्रांत एवं तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र से मिलती है। चीन में इसे शिंजियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र (एक्सयुएआर) के नाम से जाना जाता है और यह इलाका चीन के क्षेत्रफल का करीब छठा हिस्सा है।

करीब दो हजार साल तक आज के शिनजियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र पर एक के बाद एक खानाबदोश तुर्क साम्राज्य ने शासन किया। उनमें उइगुर खागानत प्रमुख है जिसने आठवीं और नौवीं सदी में शासन किया। उइगुरों ने अपने अलग साम्राज्य की स्थापना की। मध्यकालीन उइगुर पांडुलिपि में उइगुर अली का उल्लेख है जिसका मतलब होता है उइगुरों का देश।

उइगुर का चीनी इतिहास 1884 में शुरू होता है। चिंग वंश के दौरान इस क्षेत्र पर चीन की मांचू सरकार ने हमला किया और इस इलाके पर अपना दावा किया। फिर इस क्षेत्र को शिंजियांग नाम दिया गया जिसका मैंड्रीन में ‘नई सीमा’ या ‘नया क्षेत्र’ मतलब होता है।

उइगुर समुदाय ने शुरू से उइगुर को एक साहित्यिक भाषा के तौर पर इस्तेमाल किया है। प्राचीन उइगुर भाषा जिसका इस्तेमाल उइगुर खागानत के दौरान 8वीं सदी में किया गया, प्राचीन तुर्की भाषा से मिलती-जुलती है। आधुनिक उइगुर भाषा का युराल अल्टाइग लैंगवेज फैमिली से संबंध है जो तुर्की भाषा की ही पूर्वी शाखा है और उज्बेक, कजाक एवं तुर्क भाषा जैसी है। समय के साथ उइगुर भाषा की स्क्रिप्ट में भी बदलाव होता रहा। अब तक सात अलग-अलग स्क्रिप्ट का उइगुर लिखने में इस्तेमाल किया जा चुका है। मौजूदा समय में यह अरबी स्क्रिप्ट पर आधारित है।

चूंकि उइगुर मध्य एशिया के निवासी हैं इसलिए सांस्कृतिक तौर पर वे चीन के बहुसंख्यक हान चीनी समुदाय के मुकाबले मध्य एशिया के लोगों के ज्यादा करीब हैं। उनलोगों ने अनोखी संस्कृति विकसित की है और एशियाई साहित्य, औषधि, आर्किटेक्चर, संगीत, गीत, नृत्य एवं फाइन आर्ट्स में बड़ा योगदान दिया है। उइगुर अर्थव्यवस्था हल्के उद्योग पर आधारित है। उइगुरों ने करीब 2,000 साल पहले सिंचाई की एक प्रणाली का आविष्कार किया था जिससे इस शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र में भी फल, कपास, गेहूं और चावल की खेती संभव हो सकी। इसके अलावा उइगुर इलाके में तेल और खनिज संपदा प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

चीन में हुई 2003 की जनगणना में उइगुरों की आबादी करीब 90 लाख बताई गई थी जबकि अनाधिकारिक अनुमान में उनकी आबादी उससे भी ज्यादा है। उइगुर चीन के 55 अल्पसंख्यक समुदायों में से पांचवां सबसे बड़ा समुदाय है। 1949 से पहले तक चीन के शिंजियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र की कुल आबादी का 95 फीसदी उइगुर मुस्लिम थे लेकिन चीन में 60 सालों के कम्यूनिस्ट शासन के बाद अब वे सिर्फ 45 फीसदी रह गए हैं।

इस्लाम से पहले मध्य एशिया के अन्य तुर्क लोगों की तरह उइगुर भी शेमनिजम, मानी धर्म और बौद्ध धर्म को मानते थे। उइगुर ने 934 ईस्वी में सातुक बुगरा खान के शासन के दौरान इस्लाम धर्म को अपनाया। वह पहला तुर्क शासक था जिसने मध्य एशिया में इस्लाम को अपनाया। उस समय मंदिरों के स्थान पर मस्जिदों का निर्माण किया गया।

चीन में उइगुरों की स्थिति काफी खराब है। उन पर कई तरह की पाबंदियां लगाई गई हैं। चीन को डर है कि कहीं इस्लाम के ज्यादा प्रचार-प्रसार से देश में आतंकवाद न पैर फैला ले। इसलिए वहां पर मुस्लिमों की धर्म संबंधित गतिविधियों पर रोक लगा दी गई है। उनके रोजा रखने, खाना, पहनावे आदि पर भी प्रतिबंध है। मानवाधिकार संगठनों ने उइगुर मुस्लिमों पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ चिंता जताई है।

कुछ दिन पहले संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार पैनल की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि इस बात की विश्वसनीय रिपोर्ट्स हैं कि चीन ने 10 लाख उइगर मुसलमानों को खुफिया शिविरों में कैद कर रखा है।
चीन अपनी आर्थिक स्थिति को और मजबूत करने में लगा हुआ है और देश का विभाजन नहीं चाहता है। दूसरी ओर उइगुर मुस्लिमों की एक बड़ी आबादी अलग देश चाहती है। ऐसे में चीन अपना नियंत्रण कायम रखने के लिए हर तरह की कार्रवाई कर रहा है।

इसके अलावा शिनजियांग में बड़ी मात्रा में प्राकृतिक संसाधन पाए जाते हैं और यह इलाका कई देशों से सीमा साझा करता है। चीन को लगता है कि अगर सख्ती नहीं की तो अन्य देश फायदा उठा सकता है।

ऐसे सुनाया दुनिया को दर्द
कहा जाता है कि किसी से अपना दर्द नहीं कह पा रहे कैदियों ने सामान में ही चिट्ठियां छिपानी शुरू कर दीं जो पश्चिमी देशों के ग्राहकों को मिलीं। तब चीन में हो रहे अत्याचार के बारे में दुनिया को पता चला। साल 2019 में चीन की सुपरमार्केट कंपनी टेस्को ने चीन के एक सप्लायर से काम वापस ले लिया। इस केस में कैदियों ने कंपनी के लिए बनाए क्रिसमस कार्ड के अंदर यह बताया था कि उनके ऊपर कैसी ज्यादती हो रही है।

‘वैश्विक आर्थिक ताकत ऐसे बन रहा चीन’
अमेरिका के वर्ल्ड ऑर्गनाइजेशन टू इन्वेस्टिगेट द परसिक्यूशन ऑफ फालुन गॉन्ग के डायरेक्टर वॉन्ग झियुआन ने बताया कि चीन में कैदियों से मजदूरी का काम देश की न्यायपालिका की जानकारी में हो रहा है और आर्थिक रूप से फैलता जा रहा है। पेइचिंग के वैश्विक आर्थिक लक्ष्य को पाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। इस संगठन की रिपोर्ट में 2019 में 681 ऐसी कंपनियों का खुलासा किया गया जो 30 प्रांतों और क्षेत्रों में कैदियों से मजदूरी कराती थीं। इनमें से कई सरकारी और कई सेना के अंतर्गत आती थीं। 2013 में औपचारिक रूप से लेबर कैंप को खत्म कर दिया गया लेकिन काम वहां आज भी जारी है। उन्हें अब जेल सिस्टम नाम दे दिया गया है।