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कैसे सूखा लाल ग्रह? नई स्टडीज में दावा, गर्मी और धूल के तूफान अंतरिक्ष में ले जा रहे मंगल ग्रह का पानी


दो अलग-अलग स्टडीज में पाया गया है कि मंगल पर मौसम के बदलने और तूफानों के उफनाने के साथ वायुमंडल से पानी लीक हो रहा है। मंगल पर पानी बर्फीली चोटियों तक सीमित माना जाता है। इसके अलावा यह पतले वायुमंडल में गैस के रूप में मौजूद है। पानी इस ग्रह से अरबों साल से जा रहा है, जब से इसका चुंबकीय क्षेत्र खत्म हुआ है। ताजा स्टडीज में पाया गया है कि ऐसा कैसे हो रहा है। यूरोपियन स्पेस एजेंसी के बयान में कहा गया है कि वायुमंडल सतह और अंतरिक्ष के बीच का लिंक होता है और इससे पता चल सकता है कि मंगल का पानी कैसे गायब हुआ।
इन स्टडीज में टीम ने ExoMars’ के SPICAM से डेटा लिया। जमीन से 62 मील ऊपर तक वायुमंडल में भाप को कई साल तक स्टडी किया गया। उन्हें पता चला कि जब मंगल ग्रह सूरज से दूर होता है, करीब 40 करोड़ किमी दूर, तब भाप मंगल के वायुमंडल में सतह से सिर्फ 60 किमी ऊपर तक रह सकती है। हालांकि, जब यह सूरज के करीब जाता है तो भाप 90 किमी तक पाई जा सकती है।
नासा ने बताया कि Jezero Crater में एक स्थान को इस हेलिकॉप्टर के लिए हेलिपैड के रूप में चिन्हित किया गया है। Perseverance रोवर अगले कुछ दिन चलने के बाद उस स्थान पर पहुंच जाएगा। जिसके बाद Ingenuity हेलिकॉप्टर के उड़ान को सफलतापूर्वक आयोजित करने की कोशिश की जाएगी। नासा ने बताया है कि इस हेलिकॉप्टर का टेस्ट 7 अप्रैल के पहले होने की संभावना नहीं है। इस पॉइंट पर रोवर के पहुंचने के बाद हमारे पास टेस्ट को पूरा करने के लिए करीब 30 दिन का समय होगा। जिसके अंदर कभी भी ट्रायल शुरू किया जा सकता है। नासा ने बताया कि उड़ान से पहले आसपास की जगह की जांच की जाएगी, क्योंकि मलबे का एक छोटा सा टुकड़ा भी हमारे मिशन को फेल कर सकता है। इसके लिए मंगल का मौसम भी सही होना चाहिए। धरती की अपेक्षा मंगल के मौसम का पूर्वानुमान लगाना बहुत मुश्किल होता है। अगर वहां अचानक मौसम बदल जाए तो हम अपना हेलिकॉप्टर खो सकते हैं। अंतरिक्ष का मौसम सूर्य से आने वाले विकिरण से जुड़ा हुआ है और नासा के अनुसार, यह पल पल बदलता रहता है।
रोवर से निकलने के बाद मंगल के 30 दिन (धरती के 31 दिन) इसकी एक्सपेरिमेंटल फ्लाइट की कोशिश होगी। अगर यह मंगल की सर्द रातों में सही-सलामत रहा तो टीम पहली फ्लाइट की कोशिश करेगी। मंगल पर रात का तापमान -90 डिग्री सेल्सियस तक जा सकता है। NASA के मुताबिक अगर हेलिकॉप्टर टेक ऑफ और कुछ दूर घूमने में सफल रहा तो मिशन का 90% सफल रहेगा। अगर यह सफलता से लैंड होने के बाद भी काम करता रहा तो चार और फ्लाइट्स टेस्ट की जाएंगी। यह पहली बार किया जा रहा टेस्ट है इसलिए वैज्ञानिक इसे लेकर बेहद उत्साहित हैं और हर पल कुछ नया सीखने की उम्मीद में हैं।
मंगल पर रोटरक्राफ्ट की जरूरत इसलिए है क्योंकि वहां की अनदेखी-अनजानी सतह बेहद ऊबड़-खाबड़ है। मंगल की कक्षा में चक्कर लगा रहे ऑर्बिटर ज्यादा ऊंचाई से एक सीमा तक ही साफ-साफ देख सकते हैं। वहीं रोवर के लिए सतह के हर कोने तक जाना मुमकिन नहीं होता। ऐसे में ऐसे रोटरक्राफ्ट की जरूरत होती है जो उड़ कर मुश्किल जगहों पर जा सके और हाई-डेफिनेशन तस्वीरें ले सके। 2 किलो के Ingenuity को नाम भारत की स्टूडेंट वनीजा रुपाणी ने एक प्रतियोगिता के जरिए दिया था।
जब मंगल और सूरज एक-दूसरे से दूर होते हैं तो ठंड की वजह से भाप एक ऊंचाई पर जम जाती है लेकिन जब दोनों करीब होते हैं तो यह भी सर्कुलेट करते हुए दूर तक जाती है। गर्मी के मौसम में पानी की भाप दूर तक जाती है जिससे ग्रह पर से पानी कम होता है। ऊपरी वायुमंडल पानी से पूरी तरह नम हो जाता है और यहां समझा जा सकता है कि क्यों पानी के बाहर निकलने की गति इस मौसम में तेज हो जाती है।
दूसरी स्टडी में पाया गया है कि मौसम के अलावा धूल का भी इस पर असर होता है। आठ साल के डेटा में मंगल पर आए धूल के तूफानों को स्टडी किया गया और पाया गया कि पानी उसके वायुमंडल में तेजी से ऊपर जाता है। जब ऐसे तूफान आए तो पानी 80 किमी ऊपर तक मिला। वैज्ञानिकों ने पाया है कि हर एक अरब साल पर मंगल से दो मीटर गहरी पानी की सतह खत्म हो जाती है।
हालांकि, पिछले 4 अरब साल में मंगल का पानी कैसे खत्म हुआ, इस पर और रिसर्च की जानी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि सारा पानी अंतरिक्ष में नहीं चला गया है। ऐसे में हो सकता है कि यह या तो अंडरग्राउंड हो या पहले ज्यादा तेजी से अंतरिक्ष में चला गया है।