दिल के रोग से पीड़ित गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था में 40 सप्ताह के बाद बच्चे को जन्म नहीं देना चाहिए। इससे मां के साथ-साथ शिशु को भी नुकसान हो सकता है। यूरोपीय सोसायटी ऑफ कार्डियोलॉजी (ई.एस.सी) द्वारा जारी नए दिशा-निर्देशों के अनुसार पूर्व-गर्भावस्था जोखिम मूल्यांकन और परामर्श के अलावा 20-30 सप्ताह में नार्मल या सिजेरियन डिलीवरी की योजना तैयार की जानी चाहिए।
नीदरलैंड के टरडैम के इरास्मस विश्वविद्यालय के प्रो.जोलीन रूस-हेसलिन ने कहा,’गर्भावस्था हृदय रोगी महिलाओं के लिए एक जोखिम भरी अवधि है क्योंकि यह दिल की अतिरिक्त तनाव डालती है।’ उन्होंने बताया कि 40 हफ्तों के बाद गर्भ में पल रहे बच्चे की कोई अतिरिक्त लाभ नहीं होता पर नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं।
दिल के रोग से मौत का खतरा
पश्चिमी देशों में गर्भावती महिलाओं के मरने का मुख्य कारण हृदय रोग है क्योंकि उनमें उनकी हमउम्र महिलाओं की तुलना में मृत्यु या दिल की विफलता का 100 गुना अधिक जोखिम होता है। अनुमानित 18-30 प्रतिशत संतानों में जटिलताएं होती हैं और 4 प्रतिशत नवजात शिशु मर जाते हैं।