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गिरने-टकराने से दिमाग में लगी चोट तो छिन सकती है याददाश्त, धीमा काम करेगा ब्रेन, डॉक्टर ने बताया क्या है उपाय?

हर साल 22 जुलाई को वर्ल्ड ब्रेन डे मनाया जाता है। क्योंकि हर साल लाखों लोग इसकी वजह से जान गंवा देते हैं और कई सारे अपनी क्षमताएं खो देते हैं। इस आर्टिकल में एक्सपर्ट ने दिमाग में चोट लगने के बाद खोई क्षमता को पाने का तरीका बताया है।
एक देश तभी ताकतवर बनता है, जब उसके नागरिक एकदम स्वस्थ और फ्लैक्सिबल हों। भारत में ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी (TBI) के मामले तेजी से बढ़ने की वजह से यह एक पब्लिक हेल्थ चैलेंज बनता जा रही है। इससे डेथ रेट और डिसैबिलिटी भी बढ़ती जा रही है। वर्ल्ड बैंक की 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पास दुनिया के केवल 1% वाहन हैं, लेकिन सड़क हादसों में मरने वालों का प्रतिशत वैश्विक मौतों का लगभग 10% है। जो कि काफी चिंताजनक है।
मुंबई स्थित अथर्व एबिलिटी के सीनियर जनरल मैनेजर एंड सेंटर हेड डॉक्टर गौरीश केंकरे ने बताया कई ब्रेन इंजरी सड़क दुर्घटनाओं से होती हैं, लेकिन घर में गिरना और खेलों से जुड़ी चोटें भी इसके मुख्य कारण हैं। दिमाग की चोट से उबरना सिर्फ जिंदा रहने तक काफी नहीं है। आगे चलकर जीवन की क्वालिटी को असल में रिहैबिलिटेशन तय करता है। यह एक प्लांड, मल्टी स्टेज प्रोसेस है, जो मरीजों को को फिर से काम करने, आत्मनिर्भर बनने और जीवन में उद्देश्य पाने में मदद करती है।
कई मरीजों में इंद्रियों में बदलाव देखने को मिलते हैं। जैसे सुनने, देखने या छूने की क्षमता में कमी आना। कुछ मामलों में मरीज शरीर के कुछ अंगों को महसूस करना ही बंद कर देते हैं, जिसे ‘नेग्लेक्ट’ कहा जाता है।
​याददाश्त में कमी, भ्रम, फोकस करने में दिक्कत या फैसला लेने की क्षमता में कमी आना जैसे मानसिक लक्षण दिखना आम हैं, जो रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करते हैं।
सोशल और इमोशनल बदलाव भी गंभीर होते हैं। बहुत से लोग दूसरों से जुड़ने या सामाजिक संकेत समझने में परेशानी महसूस करते हैं, जिससे अकेलापन महसूस होता है। जिन लोगों को पहले कोई मानसिक समस्या नहीं थी, उन्हें भी मूड में बदलाव, चिंता या डिप्रेशन हो सकता है।
हालांकि लक्षण हर मरीज में अलग हो सकते हैं और कुछ देर के लिए भी हो सकते हैं। लेकिन इन्हें पहचानकर वक्त पर इलाज लेना जरूरी है।​
मस्तिष्क खुद को कैसे ठीक करता है? – मस्तिष्क के पास खुद को ठीक करने की अद्भुत ताकत होती है, जिसे न्यूरोप्लास्टिसिटी कहा जाता है। लगातार टारगेटेड थेरेपी के जरिए मरीज फिर से खोई हुई क्षमताएं पा सकता है या ऑप्शनल तरीके अपनाकर रोजाना के काम कर सकता है।
फिजिकल, ऑक्यूपेशनल, स्पीच-लैंग्वेज और कॉग्निटिव थेरेपी न्यूरोप्लास्टिसिटी को बढ़ावा देती हैं। ये न केवल शारीरिक और मानसिक क्षमताओं को फिर से नॉर्मल करती हैं, बल्कि आत्म-सम्मान, आत्मविश्वास को भी वापिस पाने में मदद करती हैं।
रिहैबिलिटेशन की जरूरत – ​ब्रेन इंजरी के बाद की जिंदगी में रिहैबिलिटेशन एक बुनियाद की तरह होता है। यह एक पर्सनल और टाइमलाइन प्रोसेस होता है, जो आमतौर पर तीन स्टेज में होता है।
प्रारंभिक चरण (अस्पताल में आधारित) – अंतिम चरण (घर या समुदाय आधारित देखभाल)
रिहैबिलिटेशन का प्रकार और इंटेंसिटी मरीज की स्थिति और टारगेट पर निर्भर करती है।​
काम करती है पूरी टीम – इस पूरे सफर में डॉक्टर, थेरेपिस्ट और मनोवैज्ञानिकों की एक टीम शामिल होती है, जो व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रिकवरी में मदद करती है। परिवारों को भी ट्रेंड किया जाता है ताकि वे क्लिनिक से बाहर भी बेहतर देखभाल कर सकें।