
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के इमरान खान सरकार बनाने और प्रधानमंत्री बनने के करीब हैं। उनकी पार्टी 113 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। 1992 का क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतने के चार साल बाद इमरान ने राजनीति में एंट्री ली थी। इसके बाद 1997 में उन्होंने पहला आम चुनाव लड़ा। 21 साल पहले हुए इस चुनाव में उनकी पार्टी सात सीटों पर लड़ी, लेकिन सभी जगह जमानत जब्त हो गई। इमरान खुद को सुपरस्टार मानते थे, लेकिन इस चुनाव ने उनकी गलतफहमियों को दूर कर दिया। इस चुनाव में इमरान पर सेना का समर्थन मिलने का आरोप लगा।
2018 के चुनाव में इमरान खान पांच सीटों से खड़े हुए थे। इनमें एनए-35 (बन्नू), एनए-53 (इस्लामाबाद-2), एनए-95 (मियांवाली-1), एनए-131 (लाहौर-9), एनए-243 (कराची ईस्ट-2) सीटें शामिल हैं। इमरान ने चार सीटों पर बढ़त बना रखी है, लेकिन एनए-53 (इस्लामाबाद-2) सीट पर पिछड़ रहे हैं।
2002 में खुला था खाता: 2002 का चुनाव भी इमरान खान के लिए काफी खास नहीं रहा। इसमें इमरान को तो मियांवाली सीट पर जीत मिल गई थी, लेकिन उनकी पार्टी के सभी उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा था। 2008 के आम चुनाव का इमरान ने बायकॉट किया था। उनका आरोप था कि चुनाव में अनियमितता बरती जा रही है।
2013 में पीटीआई दूसरी बड़ी पार्टी बनी: इस चुनाव में इमरान खान ने चार सीटों से चुनाव लड़ा। तीन सीटों पर उन्हें जीत मिली थी, लेकिन लाहौर में हार का सामना करना पड़ा। उस दौरान पाकिस्तानी अवाम में इमरान को लेकर काफी लहर थी। पंजाब में उनके जलसों में भीड़ देखते ही बनती थी। एक चुनावी सभा के दौरान वह लिफ्ट से गिरकर चोटिल हो गए। उन्होंने अस्पताल के बिस्तर से ही लोगों को संबोधित किया। चोटिल होने के बाद सहानुभूति की लहर का इमरान की पार्टी मिला था, लेकिन उतना नहीं, जितनी उम्मीद की जा रही थी।
तानाशाह जिया उल उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाना चाहते थे : 1987 में इमरान खान ने क्रिकेट से संन्यास का मन बना लिया था। उस वक्त के सैन्य तानाशाह और राष्ट्रपति जिया उल हक ने नेशनल टेलीविजन पर इमरान से संन्यास की घोषणा वापस लेने की गुजारिश की थी। 1998 में तो जनरल ने इमरान को कैबिनेट मंत्री बनने का प्रस्ताव भी दे दिया था। इमरान ने खेल जारी रखा और बाद में 1992 में टीम को वर्ल्ड कप जिताया। इमरान ने खुद अपनी बायोग्राफी में लिखा कि जब भी पाकिस्तान मैच जीतता था तो जनरल जिया उल हक उन्हें फाेन कर बधाई देते थे।
तालिबान को बढ़ावा देने वाले आईएसअाई चीफ इमरान को राजनीति में लाए : लेफ्टिनेंट जनरल हामिद गुल आईएसआई चीफ थे। वे एक समय पाकिस्तान के सबसे ताकतवर शख्स थे। तालिबान को बढ़ावा देने का आरोप उन्हीं पर लगता था। गुल ने ही इमरान को क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया और राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी बनाने का सुझाव दिया।
मुशर्रफ के हिमायती रहे इमरान : 1999 में सेनाध्यक्ष जनरल परवेज मुशर्रफ ने तख्तापलट किया और नवाज शरीफ की सरकार को बर्खास्त कर दिया। उस वक्त पाकिस्तान के लगभग सियासी दल मुशर्रफ के खिलाफ थे, लेकिन इकलौते इमरान उनके पक्ष में खड़े थे। उन्होंने सैन्य तख्तापलट को पाकिस्तान के लिए अच्छा बताया था। आतंकियों से बातचीत चाहते हैं इमरान : इमरान की पार्टी के तालिबानी विचारधारा वाले कट्टरपंथी समी-उल-हक से अच्छे रिश्ते हैं। वे हमेशा से आतंकियों के साथ बातचीत के पक्षधर रहे हैं। इसके लिए पाकिस्तान में उनकी आलोचना भी होती रही है। अल कायदा से जुड़े आतंकी संगठन हरकत उल मुजाहिदीन ने चुनाव से पहले इमरान को समर्थन दिया था। इमरान की पार्टी के उम्मीदवारों के साथ इस संगठन के आतंकियों ने तस्वीरें भी खिंचवाई थीं।
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