
ग्वादर के रास्ते भारत को घेरने का ख्वाब पाल रहे चीन को पाकिस्तान की कंगाली की चिंता सताने लगी है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सपनों के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के अंतर्गत बनने वाले चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) का निर्माण कार्य कई महीनों से फंड की कमी के कारण रुका हुआ है। पहले से ही इस प्रोजक्ट में अरबों डॉलर लगा चुके ड्रैगन की चिंताएं इसकी सुरक्षा और बढ़ती लागत ने और बढ़ा दी है। कोरोना वायरस के कारण इस परियोजना का बचा-खुचा काम भी बंद पड़ा हुआ है।
साल-दर-साल ऐसे घटी चीनी कर्जे की रकम : एशिया टाइम्स ने अमेरिका के बोस्टन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स के हवाले से जानकारी दी है कि चीन ने इन दिनों पाकिस्तान को फंडिंग काफी कम कर दी है। 2016 में चीन की सरकारी चाइना डेवलपमेंट बैंक और एक्सपोर्ट इंपोर्ट बैंक ऑफ चाइना ने पाकिस्तान को 75 बिलियन डॉलर का कर्ज दिया था। 2019 में यह रकम घटकर 4 बिलियन डॉलर पर आ गई थी। बड़ी बात यह है कि इस साल यानी 2020 में चीन ने पाकिस्तान को केवल 3 बिलियन डॉलर का ही कर्ज दिया है।
चीन को पाकिस्तान के डूबने का डर : रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने अपनी फंडिंग को काफी सोच समझकर बंद करने का फैसला किया है। चीन ने सीपीईसी में पाकिस्तान की तरफ से कई स्ट्रक्चरल कमजोरियां पाई हैं। इसके अलावा पाकिस्तान में मौजूद अपारदर्शिता और भ्रष्टाचार ने चीन की चिंता को और बढ़ा दिया है। हाल में ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने जी-20 के देशों से कर्ज में रियायत की अपील की थी। इस कारण चीन को अपनी रकम डूबने का डर सताने लगा है।
तकनीकी रूप से भी पाक को कर्ज नहीं दे सकता चीन : जी-20 देशों से कर्ज राहत के तहत, पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के प्रारूप के मुताबिक पूर्व की मंजूरी के अलावा, ऊंची दरों पर वाणिज्यिक कर्ज नहीं ले सकता। इस नियम से चीन भी बंधा हुआ है। यही कारण है कि चीन चाहकर भी पाकिस्तान को बड़ी मात्रा में वाणिज्यिक कर्ज नहीं दे सकता। अगर चीन रियायती कर देता है तो उसे इस राशि पर ब्याज बहुत कम या नहीं ही मिलेगा। ऐसे में ड्रैगन ऐसा कोई रिस्क लेना नहीं चाहता है।
7 साल में 122 में से केवल 32 परियोजनाएं ही हुईं पूरी : सात सात पहले 2013 में घोषित हुई चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर की 122 परियोजनाओं में से अभी तक केवल 32 को ही पूरा किया जा सका है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि चीन के वैश्विक ऋण देने की रणनीति में बदलाव और पाकिस्तान में विशाल बुनियादी ढांचे को बनाने की पहल से पीछे हटने का प्रमुख कारण अमेरिका के साथ जारी व्यापार युद्ध भी है।
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