
पूर्वी लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर भारत-चीन की सेनाओं के पीछे हटने की प्रक्रिया चल रही है। फिर से इस तरह का तनाव न हो, इसलिए भारत डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद एलएसी को लेकर नक्शों का आदान-प्रदान चाहता है। भारत की योजना है कि एक बार जब दोनों देशों के सैनिक पुराने पट्रोलिंग पोस्ट्स यानी मई से पहले वाली स्थिति में पहुंच जाए तब दोनों देश वेस्टर्न सेक्टर को लेकर अपने-अपने नक्शों को एक दूसरे के साथ साझा करें।
सरकारी अधिकारियों ने बताया कि इससे दोनों देशों द्वारा अपना होने का दावा किए जाने वाले इलाकों और उन पर वास्तविक नियंत्रण को लेकर तस्वीर साफ हो सकेगी। इससे बॉर्डर मैनेजमेंट और पट्रोलिंग प्रोटोकॉल्स आसान होंगी। दरअसल, LAC कोई वास्तविक लाइन नहीं है, इस वजह से पट्रोलिंग के वक्त दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने आते रहते हैं।
चीन की पत्थरबाज सेना से ऐसे निपटेगा भारत
कश्मीर की तरह, जब चाइना बॉर्डर पर भी पत्थरबाजी हुई तो सरकार ने इससे निपटने का तरीका भी कश्मीर वाला ही निकाला है। जी हां, चीनी सेना की पत्थरबाजी से निपटने के लिए लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर तैनात जवानों को अब सुरक्षात्मक शरीर कवच यानी फुल बॉडी प्रोटेक्टर दिए जाएंगे। ये ठीक वैसे होंगे जैसे जवान कश्मीर घाटी में पत्थरबाजी से बचने के लिए पहनते हैं।
चीन अब तक वेस्टर्न सेक्टर में नक्शों को एक दूसरे से साझा करने से इनकार करता आया है। हालांकि, सेन्ट्रल सेक्टर के नक्शों को दोनों देशों ने एक दूसरे से साझा किया है। दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव घटाने को लेकर अब तक 22 दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन अब तक पेइचिंग ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि नक्शों को एक्सचेंज कर एलएसी की स्थिति स्पष्ट की जाए।
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दोनों देशों के बीच सीमा विवाद इतना जटिल है कि उसके जल्द हल होने की बात अभी दूर की कौड़ी है। हालांकि, गलवान में हुए खूनी संघर्ष को भारत इस बात का पर्याप्त कारण मान रहा है कि कम से कम इस सेक्टर में एलएसी को लेकर अब स्पष्टता होनी ही चाहिए। दूसरी तरफ, नक्शों के एक्सचेंज को लेकर चीन की आनाकानी इस संदेह को बढ़ाता है कि पेइचिंग नहीं चाहता कि एलएसी को लेकर इस सेक्टर में भ्रम दूर हों ताकि वह जमीन पर यथास्थिति को बदलने की स्थिति में रहे।
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