भारत और तालिबानी सरकार के बीच रिश्ते मजबूत होते जा रहे हैं। पहली बार भारतीय विदेश सचिव ने तालिबानी विदेश मंत्री से दुबई में मुलाकात की है। भारत और तालिबान के बीच बढ़ती दोस्ती की अमेरिकी एक्सपर्ट जहां तारीफ कर रहे हैं, वहीं पाकिस्तानी अपने ही रणनीतिकारों पर लाल हैं।
भारत और अफगान तालिबान के बीच रिश्तों को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है। भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने बुधवार को दुबई में अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार में विदेश मंत्री मावलावी अमीर खान मुत्ताकी से मुलाकात की है। यह इतने बड़े स्तर पर किसी भारतीय अधिकारी की पहली बैठक थी। भारतीय विदेश सचिव और अफगान विदेश मंत्री के बीच यह मुलाकात ऐसे समय पर हो रही है जब पाकिस्तान और तालिबानी सेना के बीच युद्ध जैसे हालात हैं। वहीं पाकिस्तान बांग्लादेश में शेख हसीना के जाने के बाद अपने पैर पसार रहा है। भारत के इस कदम की जहां अमेरिकी एक्सपर्ट तारीफ कर रहे हैं, वहीं पाकिस्तानी विश्लेषक अपनी सरकार को फटकार लगा रहे हैं।
पाकिस्तान मामलों के चर्चित अमेरिकी एक्सपर्ट माइकल कुगलमैन ने एक्स पर लिखा, ‘यह कोई कह सकता है कि तालिबान के साथ भारत की दोस्ती अफगानिस्तान में पाकिस्तान को रोकने के लिए है। लेकिन यह इस तरह से सामान्य है कि भारत की तालिबान से दोस्ती एक व्यवहारिक कदम है जिससे भारत और अच्छे तरीके से यह सुनिश्चित कर सकेगा कि अफगान जमीन का आतंकियों को शरण देने के लिए नहीं हो जो भारत के लिए खतरा हैं। इससे भारत के उस प्रयास को आसानी होगी जिसके तहत वह ईरान के चाबहार और अफगानिस्तान के रास्ते मध्य एशियाई देशों के साथ संपर्क स्थापित करना चाहता है।’
‘पाकिस्तान की उल्टी गिनती शुरू’ – माइकल कुगलमैन ने कहा, ‘इससे भारत अफगानिस्तान के अंदर प्रोजेक्ट चला सकेगा जिसमें सहायता, शरणार्थी, राहत शामिल है जो इस देश में उसका प्रभाव बढ़ाएंगे और अच्छी छवि को कायम रखेंगे। वहीं पाकिस्तान के लिए अफगानिस्तान में उल्टी गिनती शुरू हो गई है। लंबे समय तक पाकिस्तान के इशारे पर चलने वाले तालिबान ने उसे अब छोड़ दिया है और पाकिस्तान विरोधी आतंकियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। इससे पाकिस्तान का प्रभाव अफगानिस्तान में कम हो गया है, वहीं भारत के लिए फायदा हो गया है। लेकिन भारत और तालिबान की दोस्ती को केवल पाकिसतान के चश्मे से नहीं देखना चाहिए।’
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