
आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच 27 सितंबर को शुरू हुई लड़ाई अब भी जारी है। इस बीच आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिनियन ने दावा किया है कि अजरबैजान सीरिया के भाड़े के सैनिकों के सहारे जंग लड़ रहा है। उन्होंने कहा कि इस बात के ठोस सबूत हैं कि अजरबैजान के लिए तुर्की बड़ी संख्या में सीरिया के भाड़े के सैनिकों को भर्ती कर रहा है।
आर्मीनिया ने पकड़ा सीरियाई नागरिक : नगोर्नो-काराबाख की आर्मीनिया समर्थित सेना ने हाल में ही एक सीरिया के नागरिक को पकड़ा है। जिसके बाद आर्मीनिया के रक्षा मंत्रालय ने एक वीडियो जारी किया जिसमें पकड़ा गया सीरियाई व्यक्ति कथित तौर पर युद्ध में पैसे लेकर शामिल होने की बात स्वीकारता दिख रहा है। हालांकि, आर्मीनिया के इस दावे की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो सकी है।
अजरबैजान के लिए सीरियाई आतंकियों को भर्ती कर रहा तुर्की! : आर्मीनियाई रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता शुशन स्टेपियन ने इस वीडियो को जारी किया है। पहले भी आर्मीनिया के रक्षा मंत्रालय ने तुर्की के ऊपर सीरियाई आतंकियों के भर्ती का आरोप लगाया था, लेकिन तुर्की हर बार इन आरोपों से इनकार करता रहा है। तुर्की के राष्ट्रपति ने 14 अक्टूबर को इन आरोपों का जवाब देते हुए कहा था कि सीरियाई लोगों के पास अपने देश में करने के लिए पर्याप्त काम है।
सीरिया कार्ड खेल रहे आर्मीनिया और अजरबैजान : आर्मीनिया और अजरबैजान दोनों ही एक दूसरे के ऊपर सीरिया के लड़ाकों को भर्ती करने के आरोप लगा रहे हैं। शनिवार को नवभारत टाइम्स ऑनलाइन के साथ एक विशेष बातचीत में अजरबैजान के पहले उपराष्ट्रपति के सहायक एल्चिन अमीरबयोव ने दावा किया था कि आर्मीनिया सीरिया के कुर्दिश हथियारबंद संगठन PKK के हजारों आतंकवादियों की मदद ले रहा है। पीकेके को तुर्की ने आतंकवादी संगठन घोषित किया हुआ है। इस युद्ध में तुर्की अजरबैजान के साथ है। इसलिए पीकेके संगठन आर्मीनिया का साथ दे रहा है।
27 सितंबर से जारी है लड़ाई : नगोर्नो-काराबाख इलाके में आर्मीनियाई मूल के लोग बहुसंख्यक हैं, जबकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसे अजरबैजान का हिस्सा मानता है। सोवियत संघ के विघटन के बाद से ही अजरबैजान इस इलाके पर कब्जे का प्रयास कर रहा है लेकिन उसे कभी भी कामयाबी नहीं मिली है। अपुष्ट खबरों के मुताबिक अभी तक अजरबैजान की सेना ने नगोर्नो-काराबाख के बड़े हिस्से पर अपना कब्जा जमा लिया है।
क्या है इस संघर्ष का इतिहास : आर्मेनिया और अजरबैजान 1918 और 1921 के बीच आजाद हुए थे। आजादी के समय भी दोनों देशों में सीमा विवाद के कारण कोई खास मित्रता नहीं थी। पहले विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद इन दोनों देशों में से एक तीसरा हिस्सा Transcaucasian Federation अलग हो गया। जिसे अभी जार्जिया के रूप में जाना जाता है। 1922 में ये तीनों देश सोवियत यूनियन में शामिल हो गए। इस दौरान रूस के महान नेता जोसेफ स्टालिन ने अजरबैजान के एक हिस्से (नागोर्नो-काराबाख) को आर्मेनिया को दे दिया। यह हिस्सा पारंपरिक रूप से अजरबैजान के कब्जे में था लेकिन यहां रहने वाले लोग आर्मेनियाई मूल के थे।
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