
6 हजार साल में ठंडी हुई पृथ्वी को उबलने में लगे सिर्फ 150 साल6000 साल से भी ज्यादा वक्त के लिए ठंडी रही हमारी पृथ्वी को ग्लोबल वॉर्मिंग ने सिर्फ 150 में उबाल कर रख दिया है। अगर ग्लोबल वॉर्मिंग का स्तर इतना नहीं होता तो ऐसे हालात कम से कम सवा लाख साल तक पैदा नहीं होते। अमेरिका की नॉर्दर्न ऐरिजोना यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने Ice Cores, झीलों के तले में जमा सेडिमेंट्स और बेहद पुराने समय के जीवों पर आधारित डेटा से तापमान कैलकुट किया है जिसके बाद यह चिंताजनक खोज की गई।
6000 साल से भी ज्यादा वक्त के लिए ठंडी रही हमारी पृथ्वी को ग्लोबल वॉर्मिंग ने सिर्फ 150 में उबाल कर रख दिया है। अगर ग्लोबल वॉर्मिंग का स्तर इतना नहीं होता तो ऐसे हालात कम से कम सवा लाख साल तक पैदा नहीं होते। अमेरिका की नॉर्दर्न ऐरिजोना यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने Ice Cores, झीलों के तले में जमा सेडिमेंट्स और बेहद पुराने समय के जीवों पर आधारित डेटा से तापमान कैलकुट किया है जिसके बाद यह चिंताजनक खोज की गई। करीब 4500 ईसा पूर्व में स्टोन एज यानी पाषाण युग के अंत के करीब तापमान हर 1000 पर 0.1 डिग्री सेल्सियस के रेट से कम हो रहा था और 1300 ईसवीं में लिटिल आइस का समय शुरू हो गया। हालांकि 19वीं सदी के बीच में तापमान तेजी से बढ़ने लगा। Fossil Fuels यानी जीवाश्म ईंधनों के जलने पर टनों ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होने लगा जो अटमॉस्फियर में ही कैद हो गईं और तापमान एक डिग्री सेल्सियस के रेट से बढ़ने लगा।
1 डिग्री सेल्सियस के रेट से बढ़ा तापमान
करीब 4500 ईसा पूर्व में Stone Age यानी पाषाण युग के अंत के करीब तापमान हर 1000 पर 0.1 डिग्री सेल्सियस के रेट से कम हो रहा था और 1300 ईसवीं में लिटिल आइस का समय शुरू हो गया। हालांकि 19वीं सदी के बीच में तापमान तेजी से बढ़ने लगा। Fossil Fuels यानी जीवाश्म ईंधनों के जलने पर टनों ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होने लगा जो वायुमंडल में ही कैद हो गईं और तापमान एक डिग्री सेल्सियस के रेट से बढ़ने लगा। माना जाता हा कि जब आखिरी बार तापमान इतना बढ़ा था तब समुद्र स्तर आज की तुलना में 20 फीट ज्यादा ऊंचा था जो आज के शहरों को तरह जलमग्न करने के लिए काफी है।
औद्योगिक क्रांति के बाद आई तेजी
ऐरिजोना यूनिवर्सिटी के रिसर्च में तापमान को स्टडी करने वाले प्रफेसर माइकल अर्ब का कहना है कि पहले पृथ्वी का ठंडा होने उसके सूरज के चक्कर लगाने पर निर्भर करता था। Northern Hemisphere में गर्मी के वक्त में कम सूरज की रोशनी की कमी से लिटिल आइस एज पैदा हुई थी लेकिन औद्योगिक क्रांति के बाद से तापमान तेजी से बढ़ने लगा और वैज्ञानिकों को डर है कि अभी ये ऐसे ही बढ़ता रहेगा।
679 जगहों से लिए गए 1319 रेकॉर्ड्स
इस स्टडी में पिछले 12 हजार सालों के तापमान को मैप किया गया। दुनियाभर की 679 जगहों से 1319 डेटा रेकॉर्ड्स के आधार पर मिले नतीजों की मदद से ये डेटाबेस तैयार किया गया है। वैज्ञानिकों ने ग्लेशियल कोर्स , झीलों के तलों में पाए जाने वाले सेडिमेंट्स और मरीन सेडिमेंट्स की मदद से तापमानों की रीकंस्ट्रक्ट किया। उन्होंने गुफाओं, समुद्र के नीचे के मूंगों और कीड़ों के लार्वा जीवाश्म डिपॉजिट्स को भी स्टडी किया जिससे उस वक्त के तापमान का पता चल सके।
…तो लगाया जा सकता है क्लाइमेट चेंज का अनुमान
स्टडी के को-ऑदर असोसिएट प्रफेसर निकलस मके का कहना है कि पिछले 10 साल आने वाले वक्त की तुलना में ज्यादा ठंडे रहे हैं और तापमान औद्योगिक क्रांति से पहले के मुकाबले एक डिग्री ज्यादा होने की पूरी संभावना है। आने वाले वक्त में इंसानों की वजह से ग्रीनहाउसों गैसों के उत्सर्जन, प्राकृतिक घटनाओं और क्लामेट सिस्टम में बदलाव पर निर्भर होगा कि तापमान कहां पहुंचता है। अगर अभी से प्राकृतिक घटनाओं और इंसानी जिम्मेदारी पर नजर रखी जाए तो भविष्य में क्लाइमेट चेंज का अनुमान लगाया भी जा सकता है।
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