इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता आने वाले वक्त में समुद्र के नीचे समाने का खतरा झेल रहा है। इसके चलते राष्ट्रपति जोको विडोडो ने फैसला किया है कि राजधानी को कहीं और बसाया जाए। यही नहीं, दुनिया में शायद विडोडो अकेले ऐसे नेता हैं जिन्होंने इस दिशा में ठोस काम किया है।
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साल 2030 तक सबसे घनी आबादी वाला शहर होने की कतार में खड़ा जकार्ता 2050 में ऐसे शहर में तब्दील होने की आशंका है, जिसका बड़ा हिस्सा पानी के नीचे होगा। दुनिया के कई बड़े शहर इस खतरे से जूझ रहे हैं लेकिन जकार्ता पर इसका सबसे ज्यादा खतरा है। शायद यही वजह है कि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने शहर को ही शिफ्ट करने का फैसला किया। इसके साथ ही राजधानी के करीब 70 लाख लोगों को बाहर ले जाया जाएगा। यूं तो ऐसा कई शहरों ने यही समाधान निकाला है लेकिन जकार्ता में इसका स्तर सबसे बड़ा है और अभी तक सिर्फ विडोडो ने ही इस पर काम शुरू किया है। विडोडो की कोशिश है कि 2020 के दशक में उत्तरपूर्व की ओर 1250 मील दूर एक शहर बसाया जाए जहां जकार्ता की तरह खतरे न हों। इस पर GEN के लिए स्टीव लीवाइन ने अपनी रिपोर्ट में रोशनी डाली है।
आपदाओं का घर- इंडोनेशिया
इंडोनेशिया Ring of Fire पर आता है। यह एक ऐसा सीज्मिक जोन है जो कैलिफोर्निया के सैन ऐंड्रियस फॉल्ट और वॉशिंगटन स्टेट के माउट सेंट हेलेन्स के बीच आता है। इस रिंग के पश्चिम में Alpide Belt है। यहां रिंग के बाद सबसे ज्यादा सीज्मिक ऐक्टिविटी होती है। रिंग और आल्पाइड के क्षेत्र में करीब 11,700 साल में आइस एज के बाद से 95% भूकंप आए हैं। यही नहीं, सबसे बड़े 25 में 22 ज्वालामुखी भी यहीं आए हैं। इस सदी के 6 सबसे बड़े भूकंप में से 4 यहां आए हैं। जिन 10 भूकंप में सबसे ज्यादा जानें दुनियाभर में गई हैं, उनमें से 3 इंडोनेशिया ने झेले हैं। दूसरा कोई देश ऐसा नहीं है जो इस लिस्ट में दो बार आया हो।
इसलिए पैदा हुए हालात
जकार्ता में ऐसे हालात के लिए सिर्फ क्लाइमेट चेंज कारण नहीं है। शहरीकरण के साथ टेक्टॉनिक प्लेट्स के मूवमेंट की वजह से जकार्ता पानी के नीचे जा रहा है। इसके ऊपर क्लाइमेट चेंज की वजह से असर और ज्यादा गहराता है- इसे subsidence कहते हैं। दरअसल, 1970 के बाद बेतहाशा शहरीकरण के चलते आज ऐसे हालात पैदा हुए हैं कि सब कुछ करीब 13 फीट तक धंस चुका है। नए होटल, घर और ऊंची इमारतें खड़ी गईं जिनमें म्युनिसिपल जल सेवा नहीं थी। इसलिए सबसे अपने कुएं खोदे और जमीन के नीचे के जलस्रोतों का इस्तेमाल तेज हो गया। इससे जमीन नीचे धंसने लगी। बाकी बचा अंडरग्राउंड पानी संक्रमित है और अब लोगों को टैंकर से पानी लेना पड़ता है।
सबसे भयानक बाढ़ की त्रासदी
जकार्ता के प्लूइत जिले में हीरी ऐंड्रियस ने अपने साथियों के साथ मिलकर यह पता लगाया था कि 1997-98 के बीच में प्लूइट दो इंच धंस गया था। अगले साल उन्होंने पाया कि यह इलाका 2.3 इंच और नीचे चला गया था जबकि 2000 में 2.1 इंच नीचे। यानी तीन साल में आधे फुट से ज्यादा नीचे जमीन धंस चुकी थी। इसके बाद 2007 में जब जकार्ता को करीब 300 साल में सबसे भयावह बाढ़ का सामना करना पड़ा तब समझ आया कि हालात कितने बिगड़ चुके हैं। इनमें 80 लोगों की मौत हो गई थी।
दीवार से पानी रोकने की कोशिश
इसके बाद 3 फुट की एक दीवार बनाई गई ताकि पानी को कम किया जा सके। यह 2010 में और फिर 2014 में भी टूटी तो इसे और ऊंचा और मजबूत बनाया गया। सरकार ने ऐसी कंपनियों को बंद कर दिया जो ज्यादा पानी का इस्तेमाल करती थीं। आखिरकार ऐंड्रयस और उनके साथियों ने अधिकारियों को सुझाव दिया, जकार्ता की आबादी को कहीं और बसाने का। हालांकि, यह सुझाव सिर्फ स्थिति की गंभीरता को समझाने के लिए दिया गया था लेकिन करीब 10 साल बाद इंडोनेशिया के राष्ट्रपति बने विडोडो ने इस पर विचार शुरू कर दिया।
यहां बसेगी नई राजधानी
विडोडो के प्लान के मुताबिक दुनिया के तीसरे सबसे बड़े टापू Borneo में इंडोनेशिया की नई राजधानी बसाई जाएगी। यहां करीब 70 लाख लोगों को बसाया जाएगा जिनमें 14 लाख मंत्री, सिविल सर्वेंट्स और उनके परिवार होंगे। जोकोवी इसे स्मार्ट सिटी बताते हैं जिसके पहले चरण के निर्माण में 34 अरब डॉलर का खर्च आएगा। अनुमान लगाया गया है कि 2024 तक पहली इमारतों का निर्माण खत्म कर दिया जाएगा। हालांकि, इस पर कोरोना वायरस का असर भी पड़ेगा ही। खास बात यह है कि नई राजधानी में पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए बोटानिकल गार्डन, जू नैशनल पार्क ही नहीं क्लीन इंडस्ट्री, इलेक्ट्रिक गाड़ियां और अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाएगा। हालांकि, सबसे अहम बात यह है कि जिन बातों का ध्यान जकार्ता को बसाते हुए नहीं रखा गया- जलापूर्ति और सैनिटेशन सिस्टम, उन्हें बनाया जाएगा।
सामने है बड़ी चुनौती
जोकोवी के सामने एक बड़ी चुनौती लोगों को मनाने की भी रहेगी। देश की राजधानी को छोड़कर किसी ऐसी जगह जाना जहां अभी सिर्फ जंगल हैं और पूरी तरह विकसित होने में वक्त लगेगा, इसके लिए लोगों को तैयार करना अपने आप में बड़ी चुनौती है। लोग फिलहाल यह तो मान रहे हैं कि यह फैसला सही है और इसका समर्थन किया जाना चाहिए लेकिन खुद जकार्ता छोड़ने को तैयार नहीं हैं।