विदेशों में खालिस्तान को लेकर करवाए जा रहे जनमत संग्रह को लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। भारत के पंजाब राज्य से अलग होकर एक स्वतंत्र राष्ट्र के लिए समर्थन की मांग को लेकर कट्टरपंथी सिख अलगाववादी समूह सिख फॉर जस्टिस (SFJ) द्वारा बुलाए गए जनमत संग्रह को एक “तमाशा” करार दिया गया है और सिखों के साथ खेला जा रहा डर्टी गेम बताया। सबसे महत्वपूर्ण जानकारी यही निकल कर आई है कि सिख फॉर जस्टिस जनमत संग्रह के नाम पर सिर्फ खुद को वित्तीय रूप से मजबूत करने का धंधा शुरू कर चुका है। ये दावे उन लोगों द्वारा किए गए हैं, जिन्होंने ब्रिटिश कोलंबिया के सरे में खालिस्तान जनमत संग्रह में मतदान किया था। इन दावों में सच्चाई सिखों द्वारा इस प्रक्रिया में भागीदारी की कमी से स्पष्ट है जिसने एसएफजे को 11 सितंबर को प्रारंभिक मतदान के बाद 29 अक्टूबर को दोबारा मतदान के लिए मजबूर किया।
जनमत संग्रह आयोजकों ने अभी तक मतदान संख्या जारी नहीं की है, जाहिरा तौर पर इस तथ्य को छिपाने के लिए कि तथाकथित खालिस्तानी कार्यकर्ताओं को समुदाय द्वारा फटकार लगाई गई है, जिनके अधिकारों की रक्षा का वह दावा करता है। द नेशनल टेलीग्राफ (टीएनटी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, खालिस्तान जनमत संग्रह में मतदान प्रक्रियाएं, माहौल और मतदाता सुरक्षा लोकतांत्रिक के अलावा कुछ भी नहीं थी। सूत्रों का कहना है कि जिस व्यक्ति से बात की, उसने जनमत संग्रह का आयोजन करने वाले कट्टरपंथी सिख अलगाववादी समूह सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) द्वारा प्रतिशोध का हवाला देते हुए गुमनामी का अनुरोध किया।खुफिया सूत्रों का कहना है कि सिख फॉर जस्टिस और तमाम अन्य खालिस्तान समर्थकों की ओर से जो जनमत संग्रह की बात की जा रही है, दरअसल वह पूरी तरीके से छलावा और दिखावा है। क्योंकि सिख फॉर जस्टिस और खालिस्तान समर्थक तर्क यही देते हैं कि अब तक सिर्फ ब्रिटिश कोलंबिया के सरे इलाके में ही डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों ने जनमत संग्रह में भाग लिया है। जबकि हकीकत यह है कि ब्रिटिश कोलंबिया के सरे इलाके में सिखों की कुल आबादी ही डेढ़ लाख के करीब है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर सरे की कुल आबादी के बराबर की संख्या ने इस जनमत संग्रह में हिस्सा ले लिया है, तो बार-बार एक इलाके में ही जनमत संग्रह की आवश्यकता क्यों पड़ रही है। खुफिया एजेंसियों को मिली जानकारी के मुताबिक दरअसल खालिस्तान समर्थकों की ओर से किए जाने वाले इस जनमत संग्रह में न तो सफलता मिल पा रही है और न ही लोग इसमें हिस्सा ले रहे हैं।इसके अलावा केंद्रीय खुफिया एजेंसी को मिली जानकारी के मुताबिक जनमत संग्रह में हिस्सा लेने वाले या रूटीन में गुरुद्वारा जाने वालों से जनमत संग्रह के नाम पर जमकर धनवाही उगाही भी आतंकी संगठनों और खालिस्तानी समर्थकों की ओर से की जा रही है। जनमत संग्रह वाले दिन पहुंचने वाले लोगों से न्यूनतम पांच डॉलर सिख फॉर जस्टिस समेत खालिस्तान समर्थन करने वाली संस्थाओं को जबरदस्ती देने के लिए दबाव डाला जाता है। इस तरह की शिकायतें कई लोगों ने कनाडा के अलग-अलग गुरुद्वारों और वहां के अन्य जिम्मेदारों से भी की हैं।
खुफिया एजेंसी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि दरअसल इस पूरे जनमत संग्रह के नाम पर पैसा इकट्ठा कर और भारत के खिलाफ माहौल बनाने की तैयारी को अमली जामा पहनाया जाता है। इसके अलावा जो पैसा आता है, उसे भारत के खिलाफ आगे की रणनीति बनाने के लिए आतंकी संगठन उसका इस्तेमाल करते हैं।खुफिया एजेंसियों को मिली जानकारी के मुताबिक खालिस्तान के नाम पर किए जाने वाले जनमत संग्रह के दौरान उन भटके हुए सिख युवाओं को इसमें शामिल किया जाता है जो उनके अपने नेटवर्क के माध्यम से भारत से कनाडा पहुंचे हैं। इनमें से बहुतों की संख्या गुरुद्वारे में काम करने वाले कारिंदों के तौर पर चिह्नित की गई है। सूत्रों के मुताबिक इन्हीं लोगों की ओर से अलग-अलग नाम बदलकर एक फेक जनमत संग्रह की कहानी तैयार की जा रही है। हालांकि खुफिया एजेंजियों के जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस जनमत संग्रह के होने और न होने से भारत के ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन जिस तरीके की गतिविधियों से कनाडा की जमीन पर भारत के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है, उसे लेकर वह हमेशा सतर्क ही रहते हैं।