जब ब्रिटेन का यूरोपीयन यूनियन से संबंध विच्छेद हो रहा था उस समय वहां के कई युवा नागरिक मन मसोस के रह गए कि उन्होंने (ईयू) में बने रहने की मुहिम का समर्थन क्यों नहीं किया। वे बड़े उदासीन हो गए थे कि वे कहां थे। जनमत संग्रह के दिन सोशल मीडिया पर एक ग्राफिक वायरल हुआ जिसमें उन लोगों को दिखाया गया जो ईयू के साथ रहने के पक्ष में थे। इस बारे में युवा अमरीकी सहानुभूति रख सकते हैं कि पिछले वर्ष उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप के नस्लवाद और हिलेरी क्लिंटन के मध्यमार्ग के साथ मैत्रीपूर्ण सहयोग का भाव रखने को भी खारिज कर दिया था। सिर्फ यह देखने के लिए कि राष्ट्रपति के पद की दौड़ में अंतिम बचे उम्मीदवारों का क्या रुख है?
लेकिन युवा अमरीकी नागरिकों के इरादों से होने वाले खतरों को देखते हुए उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया। जबकि इन वोटरों को कमतर नहीं आंकना चाहिए क्योंकि ये राष्ट्रपति के चुनाव के परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं। कुछ ऐसी ही शंका बर्नी सैंडर्स बारे में जताई गई थी। उनकी अपील के बाद बड़ी संख्या में युवा वोटरों ने अपना वोट उन्हें दिया था। इनमें अफ्रीकी, अमरीकी, लैटिन अमरीकी युवा ही नहीं और महिलाएं भी शामिल थीं। उतना ही बड़ी उम्र के वोटर भी उनकी ओर आकर्षित थे। सैडर्स जब भी युवा वोटरों को संबोधित करते वह यही कहते कि हमारा भविष्य बड़ा भयानक है। इसका कारण वो फैसले हैं, जो हमारे पूर्वजों ने लिए थे।
कहा जाता रहा है कि खराब आर्थिक व्यवस्था के कारण अमरीका को कई भयानक परिणाम देखने पड़े हैं। अमरीका के युवा बड़ी दयनीय जॉब मार्केट में आ गए जहां आर्थिक विकास गतिहीन है और वह कर्ज में दबी हुई है। ऐसे में उनके लिए अपना घर खरीदने का सपना पूरा होने की उम्मीदें बहुत कम हैं। एक और खास बात यहां देखी जा रही हैं कि बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का धंधा तेजी से फैलता जा रहा है। निजीकरण का जोर बढ़ रहा है। कई संस्थानों ने लूट मचा रखी है। पहले की पीढ़ी मौज लूट रही हे और वैश्विक पर्यावरण को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया जा रहा है। ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया।
इन विषम परिस्थितियों का प्रतिरोध शुरू हो चुका है। कई ब्रिटिश युवाओं ने अपने देश के ईयू में बने रहने का समर्थन किया था जबकि कई ने जनमत संग्रह में अपने वोट का इस्तेमाल नहीं किया। उन्हें इसी बात अफसोस है। यह हैरान करने वाली बात नहीं है। वर्ष 2014 में एडिनबर्ग में स्कोटिश जनमत संग्रह के दौरान हां के समर्थन में सकारात्मक दृष्टिकोण देखा गया। इन लोगों का मानना था कि स्वतंत्र स्कॉटलैंड में बेहतर समाज की रचना हो सकती है, लेकिन उनकी भावनाओं और विचारों को चुनाव में कभी नहीं समझा व सुना गया।
इस बीच अमरीका में हिलेरी क्लिंटन इस बात पर अनिश्चित हो रही थीं कि युवा वोटरों को उत्साहित करें या बड़ी उम्र के लोगों की बुरी प्रवृत्ति को शांत करें। एक ओर बहुसंस्कृति और पूंजीवाद था और दूसरी ओर बिना वजह डरे हुए लोग थे। इन दोनों के बीच बहुत बड़ी दरार थी। लोगों का समर्थन पाने के लिए, उन्हें अपनी बातों से बांधने के लिए हिेलेरी ने खुलेतौर पर स्वास्थ्य विशेषकर प्रजनन और आर्थिक स्वतंत्रता पर जोर दिया। उन्होंने ट्यूशन का तिरस्कार किया, कॉलेज में मुफ्त शिक्षा और तेजी से फैलने वाले इस्लाम फोबिया पर जोर दिया। इसके लिए शब्द परिभाषित किया रेडिकल इस्लाम यानि उग्र सुधारवादी।
किलंटन के लिए यह बड़ी परीक्षा थी कि वह समझतीं थीं कि क्या नई पीढ़ी उन्हीं का चुनाव करेगी। यदि वह बड़ी उम्र के वोटरों को गुस्सा दिलाने वाली को बात न करके अपना खेल सुरक्षित तरीके से खेलती हैं, इसके लिए उन्हें युवा वोटरों को निरुत्साही करके छोड़ने का जोखिम उठाना होगा, जिन्हें पहले ही ट्रंप ने नफरत करने वाला बना दिया है। यह जरूर है कि साफ सुथरे रिकॉर्ड वाली और विकासशील नीतियों को बनाने वाली एलिजाबेथ वारेन को उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर हिलेरी ने संकेत दिया कि वह युवाओं की मांगों को ध्यान से सुनती हैं। यह युवा पीढ़ी नव उदारतावाद के पक्ष में है।
युवा पीढ़ी कुत्ते की तरह कटखनी को नामंजूर और विविधता से भरी हुई अर्थव्यवस्था का स्वागत करती है। जबकि कई टुकड़ों में बंटे हुए उम्रदराज और बुद्धिमान लोग इसके विरोधी थे। यदि हमारे नेता बात सुनने के लिए सहर्ष तैयार हो जाएं तो यह नई पीढ़ी जो हालात हैं उनमें सामंजस्य को स्थापित कर सकती है। इनसे बनने वाला समाज संयुक्त और साफ सुथरा होगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो शेष बचे अभियान की गलतियों को दोहराया गया तो इससे महा विपदा ही आएगी।