
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि, ‘प्रसादे सर्वदुखाना हानिरस्यो प्रजायते। प्रसन्नचेतसो हयाशु बुद्धि पर्थ वतिष्ठते।।’ यानी खुश रहने मात्र से बुद्धि स्थिर हो जाती है। मन का विचलना रुक जाता है। एकाग्रता बढ़ती है। इसलिए अर्जुन चिंता छोड़ो प्रसन्नता से रहो।
इसी तरह जब युधिष्ठिर से जब एक बार यक्ष ने पूछा था कि, ‘जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्या है? तो युधिष्ठिर ने कहा था कि निरोगी काया। स्वस्थ रहने के लिए तन का स्वस्थ रहना जरूरी नहीं, मन का स्वस्थ रहना भी उतना ही जरूरी है। और मन की खुराक है सकारात्मक हंसी।’
गंभीरता का विलोम है हंसी
‘हंसी गंभीरता का विलोम है तो मूर्खता का पर्याय। जैन धर्म की शुरूआत ही तो हंसी से हुई है।’ कहते हैं बुद्ध कभी नहीं हंसे, यह बात सच नहीं लगती, लेकिन भगवान बुद्ध का एक शिष्य था ‘होतेई’। वह अपनी हंसी के लिए प्रसिद्ध था।
उनकी हंसी के कारण ही उनका नाम लाफिंग बुद्धा पड़ गया यानी एक हंसता हुआ बुद्ध। उसने अपने शिष्यों को ध्यान, प्रार्थना नहीं सिखाई, केवल हंसना सिखाया। अकारण हंसना सिखाया और हंसी से ही ध्यान की एक विशेष विधि विकसित की।
खुद पर हंसिए
यह बात बहुत दिलचस्प है कि बेबात हंसी हमें जिंदगी के माधुर्य की अनुभूति कराती है और हमारे भीतर सहज हंसी फूट पड़ती है। कहा जाता है, ‘जिस इंसान के अंदर आत्मविश्वास होता है वही खुद पर हंस सकता है।
जो लोग किताबें पढ़ते हैं वह इस बात को जरूर जानते होंगे कि विलियम शेक्सपीयर के नाटकों में एक जोकर होता है। वह हंसकर सच बोल देता है, दूसरे को थोड़ा चुभता जरूर है लेकिन हंसकर ही सही वो सच बोल देता है।’ कहने का आशय यह है कि हंसिए और हंसाइए। और खुशियां फैलाइए।
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