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आज से आरंभ हो रहा है तुलसी विवाह का मांगलिक पर्व, जानें विधि


हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को पवित्र माना गया है। कहा जाता है जिस घर में तुलसी का पौधा लगा होता है उस घर में हमेशा बरकत होती है और वह घर दुख, दरिद्रता और कलह से परे होता है। धर्म ग्रंथों में तुलसी को हरिप्रिया और आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार तुलसी को संजीवनी बूटी भी कहा गया है, क्योंकि तुलसी के पौधे में अनेकों औषधीय गुण होते हैं। तुलसी के औषधीय गुण तो हैं ही, साथ ही तुलसी दैवीय शक्ति के रूप में घर-घर पूजी जाती हैं।
भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। वैसे तो तुलसी विवाह के लिए कार्तिक, शुक्ल पक्ष, नवमी की तिथि ठीक होती है। परंतु कुछ लोग एकादशी से पूर्णिमा तक तुलसी पूजन कर पांचवें दिन तुलसी विवाह करते हैं।

इस दिन को देवप्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस मांगलिक पर्व के सुअवसर पर शाम के समय तुलसी चौरा के पास गन्ने का भव्य मंडप बनाकर उसमें साक्षात नारायण स्वरूप शालिग्राम की मूर्ति रखते हैं और फिर विधि-विधानपूर्वक उनके विवाह को सम्पन्न कराते हैं।
कैसे मनाया जाता है तुलसी विवाह
तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है- तुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान। मंडप, वरपूजा, कन्यादान, हवन और फिर प्रीतिभोज सब कुछ पारम्परिक हिंदू रीति-रिवाजों के साथ निभाया जाता है। इस विवाह में शालिग्राम वर और तुलसी कन्या की भूमिका में होती हैं। तुलसी विवाह में सोलह शृंगार के सभी सामान चढ़ाने के लिए रखे जाते हैं। इस दिन तुलसी पौधे को लाल चुनरी ओढ़ाई जाती है। तुलसी विवाह के पश्चात प्रीतिभोज का आयोजन किया जाता है।

कार्तिक मास में स्नान करने वाली स्त्रियां भी कार्तिक तक शुल्क एकादशी को शालिग्राम और तुलसी का विवाह रचाती हैं और गीत तथा भजन गाती हैं।