
नेपाल राजनीति में हलचल: पार्टी तोड़ें या इस्तीफा दें, ओली के सामने क्या-क्या विकल्पनेपाल की राजनीति में गुरुवार का दिन बेहद गहमागहमी वाला और अटकलों भरा रहा। हर पल के साथ यह राज गहराता जा रहा था कि आखिर देश की कम्युनिस्ट पार्टी और उसकी सरकार का हश्र दिन के अंत तक क्या होगा। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और NCP के को-चेयर पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ के बीच बनी खाई कभी गहराती दिखी तो कभी लगा कि पट भी सकती है। हालांकि, दिन बीतने के बाद भी अभी तक यह साफ नहीं है कि नेपाल की राजनीति में उठा तूफान शांत हो गया है या और भयावह रूप लेने वाला है। पार्टी की स्टैंडिंग कमिटी की मीटिंग शनिवार तक के लिए स्थगित हो गई है। अब नजरें पीएम ओली पर हैं जिनके पास अपनी कुर्सी और सम्मान बचाने के लिए गुरुवार के दिनभर के घटनाक्रम के आधार पर कुछ ही विकल्प दिखाई दे रहे हैं।
क्या इस्तीफा देंगे ओली?
सुबह 11 बजे पीएम ओली राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी से मिलने उनके आधिकारिक आवास महाराजगंज पर पहुंचे और यहां बजट सत्र रद्द करने के बारे में बात की। ओली ने कैबिनेट की एक मीटिंग बुलाई जिसमें उन्होंने बजट सत्र को रद्द किए जाने की मांग की। उन्होंने इसके पीछे काठमांडू में फैले कोरोना वायरस को वजह बताया। उन्होंने यह भी कहा कि MCC और नागरिकता बिल को छोड़कर कोई और बड़ा अजेंडा नहीं है जिस पर चर्चा की जरूरत हो। कैबिनेट ने यह बात मान ली और संसद का सत्र रद्द कर दिया गया। राष्ट्रपति ने इस बात का ऐलान कर दिया लेकिन दहल समर्थक स्पीकर अग्नि सपकोटा को इस बारे में जानकारी ही नहीं थी। ऐसे में यह माना गया कि शायद ओली इतनी आसानी से इस्तीफा नहीं देंगे।
पार्टी तोड़ देंगे PM?
बताया जा रहा है कि जब दहल को शक हुआ कि ओली अध्यादेश लाकर NCP के विभाजन की तैयारी कर रहे हैं तो वह राष्ट्रपति भंडारी से मिलने करीब दोपहर 3 बजे उनके आवास पहुंचे। दरअसल, बुधवार को एक नई UML पार्टी रजिस्टर की गई है जिसे ओली से जोड़कर देखा जा रहा है। बालूवतार में NCP की स्टैंडिंग कमिटी के सदस्य वहां होने वाली मीटिंग का इंतजार करते रहे लेकिन पीएम ओली नहीं पहुंचे। इसके बाद ओली और उनके समर्थक एक आखिरी बार पुष्प कमल दहल से मिले। अभी तक यह बात साफ नहीं है कि दहल और ओली के बीच क्या बात हुई और क्या उन्होंने आपस में समझौता कर लिया है। संभावना है कि ओली ने दहल को इस्तीफे की मांग जारी रखने पर NCP में विभाजन की चेतावनी दी हो।
अगर पार्टी विभाजित हुई तो…
अभी पार्टी को विभाजित करने के लिए 40% सांसदों और 40% पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्यों का समर्थन जरूरी होता है लेकिन अगर ओली अध्यादेश ले आए तो दोनों में से सिर्फ एक की ही जरूरत रह जाएगी। पार्टी के विभाजित होने के साथ ही संसद में अगर समर्थन की जरूरत होती है और दूसरे दलों में गठबंधन की सहमति नहीं बन पाती है तो कम से कम मध्यावधि चुनाव का मौका ओली के पास बना रहेगा।
तो होगा समझौता?
प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के समर्थक गुरुवार को पार्टी के एग्जिक्युटिव चेयर पुष्प कमल दहल के निवास पर पहुंचे थे। इनमें पूर्व-स्पीकर सुभाष नेमबांग, रक्षामंत्री इश्वोर पोखरेल, विदेश मंत्री प्रदीप ग्यवली, प्रांत 5 के मुख्यमंत्री शंकर पोखरेल, सलाहकार बिश्नु रिम और गंदाकी प्रांत के मुख्यमंत्री पृथ्वी सुब्बा गुरुंग शामिल थे। ये लोग दहल और ओली के बीच सुलह कराने पहुंचे थे ताकि पार्टी और सरकार पर आया संकट टाला जा सके। माना जा रहा था कि शायद दोनों कद्दावर नेताओं के बीच बात बन भी सकती है।
अगर इस्तीफा दिया तो…
माधव कुमार वाला धड़ा गुरुवार को उनके निवास पर बैठक कर स्टैंडिंग कमिटी की होने वाली बैठक को लेकर रणनीति तैयार कर रहा था। मीटिंग में मौजूद लोगों ने माना कि ओली से पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे की मांग को जारी रखी। ऐसे में अभी तक यह माना गया है कि ओली के विरोधी भी झुकने को तैयार नहीं हैं। माना जा रहा है कि अगर दहल प्रधानमंत्री पद लेते हैं तो ओली पार्टी अध्यक्ष का पद मांग सकते हैं। दरअसल, मार्च में ओली ने सहमति जताई थी कि वह पार्टी के कार्य छोड़ देंगे और दहल कार्यकारी अध्यक्ष बन जाएंगे लेकिन ओली ने सरकार और पार्टी दोनों की कमान संभाले रखी। फिर धीरे-धीरे सरकार की आलोचना के साथ पिछले हफ्ते दहल ने इस्तीफे की मांग कर डाली।
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