
भारतीय कालगणना में विक्रम संवत पांचांग को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। विक्रम संवत पांचाग के अनुसार ही विवाह, नामकरण, गृह प्रवेश इत्यादि शुभ कार्यों के शुभ मुहूर्त तय किए जाते हैं। नव संवत्सर आरंभ का यह माह इसलिए भी विशेष है क्योंकि इसी माह धर्मराज युधिष्ठिर का राज्यभिषेक हुआ था। भगवान विष्णु जी का प्रथम अवतार भी इसी दिन हुआ। नवरात्रों की शुरूआत भी इसी दिन से होगी। चैत्र का आध्यात्मिक स्वरूप इतना उन्नत है कि इसने वैकुंठ में बसने वाले ईश्वर को भी धरती पर उतार दिया।
ब्रह्मा जी ने की थी सृष्टि की रचना : चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ही त्रिदेवों में से एक ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इस तिथि पर कुछ अन्य कार्य भी सम्पन्न हुए जिससे यह दिवस और भी विशेष हो गया।
राशि परिवर्तन भी होगा : इस माह सूर्य, बुध, शुक्र और गुरु के राशि परिवर्तन भी होने जा रहे हैं। विक्रम संवत का आरंभ 57 ई.पूू. में उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर हुआ था। सम्राट विक्रमादित्य के शासन से पहले उज्जैन पर अत्यंत क्रूर प्रवृत्ति के शक राजाओं का शासन था जो अपनी प्रजा को सदैव कष्ट दिया करते थे।
सम्राट विक्रमादित्य को न्यायप्रिय और अपनी प्रजा के हित को ध्यान में रखने वाले शासक के रूप में जाना जाता है। सम्राट विक्रमादित्य ने उज्जैन की प्रजा को शक राजाओं के अत्याचारी शासन से मुक्ति दिलाई और अपनी जनता को भयमुक्त कर दिया। इसके बाद विक्रमादित्य के विजयी होने की स्मृति में विक्रम संवत पांचांग का निर्माण किया गया था।
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