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उत्तर कोरिया: ‘सबसे बड़े दुश्मन’ अमेरिका को किम जोंग उन की धमकी, ‘और शक्तिशाली परमाणु हथियार बनाएंगे’


अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कार्यकाल खत्म होने जा रहा है और इससे ठीक पहले उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन ने चेतावनी दे डाली है। उन्होंने कहा है कि वह अपने परमाणु हथियारों को बढ़ाने जा रहे हैं और पहले से बेहतर हथियारों की प्रणाली विकसित कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि अमेरिका के साथ संबंध इस बात पर निर्भर करेंगे कि क्या वह अपनी नीति को बदलेगा या नहीं। माना जा रहा है कि किम ने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन पर दबाव बनाने के मकसद से यह चेतावनी जारी की है।
अडवांस्ड हथियार बनाने को कहा : किम ने सत्ताधारी वर्कर्स पार्टी कांग्रेस के दौरान अपने अधिकारियों से कई हथियारों को ले जाने में सक्षम मिसाइलें, पानी के नीचे लॉन्च होने वाली न्यूक्लियर मिसाइलें, जासूसी सैटलाइटंस और परमाणु क्षमता वाली पनडुब्बियां बनाने को कहा है। उन्होंने कहा कि उत्तर कोरिया को अपने हमले की सटीकता बढ़ानी होगी और 15 हजार किलोमीटर तक मारक क्षमता विकसित करनी होगी। माना जा रहा है कि यह दूरी अमेरिका की ओर इशारा है। इसके अलावा लंबी दूरी की मिसाइलों पर छोटे और हल्के परमाणु हथियार ले जाने की तकनीक विकसित करने को कहा गया है।
अमेरिका को बताया खतरा : कोरियन सेंट्रल न्यूज एजेंसी ने किम के हवाले से कहा है कि उत्तर कोरिया तब तक परमाणु हथियार इस्तेमाल नहीं करेगा जब तक पहले उसके खिलाफ हथियार इस्तेमाल करने की कोशिश न की जाए। हालांकि, उन्होंने साफ कहा कि अमेरिकी हमले के खतरे को देखते हुए देश की सैन्य और परमाणु क्षमता को मजबूत करना जरूरी है। किम ने इस दौरान अमेरिका के किसी कदम का जिक्र नहीं किया जबकि पहले दक्षिण कोरिया के साथ उसके सैन्य अभ्यास, अमेरिकी सर्विलांस एयरक्राफ्ट और दक्षिण कोरिया में अमेरिकी सेना की मौजूदगी को उसके खिलाफ कार्रवाई मानता रहा है।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच रिश्तों में उतार चढ़ाव आते रहे हैं। हालांकि, ट्रंप ऐसे पहले राष्ट्रपति बने हैं जिन्होंने उत्तर कोरिया के किसी राष्ट्राध्यक्ष के साथ मुलाकात की है। चार साल के कार्यकाल में ट्रंप की किम जोंग उन के साथ कम से कम तीन शिखर वार्ता हो चुकी है। कहा जाता है कि इस दौरान वाशिंगटन और प्योंगयांग के बीच कम के कम दर्जनों चिट्ठियों का आधान-प्रदान भी हुआ है। वहीं, बाइडेन ने कहा है कि वे किम जोंग के साथ बिना किसी ठोस समझौते की गारंटी के नहीं मिलेंगे। उन्होंने उत्तर कोरिया पर नए प्रतिबंध लगाने का भई ऐलान किया है।
2016 के चुनाव में रूस की कथित मध्यस्थता के मामले में लंबी जांच हुई, लेकिन ट्रंप के अड़ियल रूख के कारण उसका कोई हल नहीं निकला। ट्रंप ने मूलत रूस के खिलाफ बने नाटो को कमजोर किया है। उन्होंने जर्मनी से अपनी सेना को वापस बुला लिया। जबकि अमेरिका ने जर्मनी समेत कई देशों के सुरक्षा का वादा किया हुआ है। हथियार नियंत्रण को लेकर भी ट्रंप ने रूस के साथ कई समझौतों को तोड़ा है जिससे रूस आधुनिक हथियारों का फिर से निर्माण कर रहा है। वहीं, आशा जताई जा रही है कि अगर बाइडेन राष्ट्रपति बने तो वे रूस के खिलाफ कई कठोर और सधे हुए कदम उठाएंगे।
हाल के दिनों में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप चीन पर कुछ ज्यादा ही आक्रामक हैं। वह चीनी वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ा रहे हैं। जबकि उसके सभी दुश्मन देशों को हथियार और खुफिया सूचना भी उपलब्ध करवा रहे हैं। फिर भी चीनी अधिकारियों ने कहा कि संतुलन के कारण उनका नेतृत्व ट्रंप को ही राष्ट्रपति के रूप में देखना चाहता है। अमेरिका फर्स्ट नीतियों का पालन करने के चक्कर में ट्रंप ने अपने देश को कई महत्वपूर्ण संस्थाओं से अलग कर लिया है। जिससे बनी खाली जगह को चीन ने भरा है। चाहें वह व्यापार हो या जलवायु परिवर्तन या फिर विश्व स्वास्थ्य संगठन। जहां-जहां अमेरिका कमजोर पड़ा है वहां-वहां चीन मजबूत हुआ है। ऐसे में बाइडेन के आने से चीन को नुकसान उठाना पड़ सकता है। बाइडेन के बारे में कहा जाता है कि वे चीन पर दबाव बनाने के लिए अधिक समन्वित अंतरराष्ट्रीय मोर्चा बनाने की कोशिश करेंगे।
ट्रंप ने 2017 में अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए सऊदी अरब को चुना था। ट्रंप के नेतृत्व में वॉशिंगटन और रियाद के रिश्ते तेजी से मजबूत हुए। खासकर जब ट्रंप ने ईरान के ऊपर नए प्रतिबंधों का ऐलान किया तो इससे सऊदी अरब को काफी फायदा पहुंचा। जमाल खशोगी की हत्या के मामले में जब अमेरिकी संसद ने मोहम्मद बिन सलमान के ऊपर प्रतिबंध लगाने की संतुस्ति की तो उसे ट्रंप ने वीटो कर दिया। वहीं, बाइडेन के आने से ईरान के साथ अमेरिका नई डील कर सकता है। इससे सबसे ज्यादा नुकसान सऊदी अरब को ही होगा। बाइडेन मानवाधिकार के मुद्दे पर भी मुखर रहे हैं। ऐसे में अगर मोहम्मद बिन सलमान के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी।
कहा जाता है कि यदि कोई राजनीतिक संरक्षण के लिए ट्रंप पर मोहम्मद बिन सलमान से ज्यादा निर्भर करता है तो वह तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन हैं। नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (NATO) के सहयोगी होने के बाद भी तुर्की ने रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदा है। ऐसे में यूएस कांग्रेस ने तुर्की पर प्रतिबंध लगाए जाने की वकालत की थी, लेकिन ट्रंप ने इसे लागू करने से मना कर दिया था। अपने व्यक्तिगत संबंधों से ही उन्होंने ट्रंप को सीरिया के कुर्द क्षेत्रों से अमेरिकी सैनिकों को वापस लेने के लिए मनाया था ताकि तुर्की उन क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण कर सके। ट्रंप ने सीरिया में इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई में पेंटागन या अमेरिकी सहयोगियों से सलाह किए बिना ही यह निर्णय लिया था। जबकि इसमें ब्रिटेन, फ्रांस और कुर्द लड़ाके भी शामिल थे।
अमेरिका है सबसे बड़ा दुश्मन : किम ने अमेरिका को अपना सबसे बड़ा दुश्मन बताते हुए कहा है कि देश का ध्यान अमेरिका को जवाब देने पर होना चाहिए जो उसकी क्रांति में सबसे बड़ी रुकावट है। उन्होंने कहा कि कोरिया में शांति और संपन्नता तभी आएगी जब अमेरिकी सैन्य खतरे के खिलाफ रक्षा बढ़ाई जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि अमेरिका में सरकार किसकी है, कोरिया के खिलाफ उसका रुख बदलेगा नहीं।