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सत्ता के लिए आपस में लड़ते रहे ओली-प्रचंड, और कोरोना का गढ़ बन गया नेपाल


नेपाल में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और पुष्प कमल दहल प्रचंड के बीच लगभग तीन महीनों तक चले तनाव का खामियाजा वहां की आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। जिस समय इन दोनों नेताओं की देश को सबसे ज्यादा जरुरत थी उस दौरान ये आपस में खींचतान और राजनीति करने में व्यस्त थे। सत्ता की लापरवाही और निरंकुश प्रशासन के कारण नेपाल कोरोना का गढ़ बनता जा रहा है। ताजा आंकड़ों के अनुसार, नेपाल में संक्रमितों की कुल संख्या 54169 तक पहुंच गई है, जबकि 345 लोगों की मौत हो चुकी है।
ओली-प्रचंड में समझौते की भेट चढ़े आम लोग
सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी ने पिछले शुक्रवार को ऐलान किया था कि ओली और प्रचंड में समझौता हो गया है। इसी के साथ कम्युनिस्ट पार्टी तो विभाजन से बच गई। दोनों नेताओं में आपसी सहमति बनने में लगभग 7 सप्ताह से अधिक का समय लगा, लेकिन इस दौरान देश में कोरोना का ग्राफ तेजी से ऊपर चढ़ा।

कोरोना पर 80 दिनों नहीं हुई कोई चर्चा
सत्तारूढ़ पार्टी के स्थायी समिति के सदस्य और पूर्व मंत्री गणेश साह ने कहा 24 जून को स्थायी समिति की बैठक में कोरोना के मुद्दे को शामिल किया गया था। लेकिन, 80 दिन बाद भी इस मुद्दे पर चर्चा नहीं हो पाई है। उन्होंने कहा कि दोनों नेताओं ने इस मुद्दे को लेकर गंभीरता की कमी को दिखाया है। इस दौरान उनका ध्यान व्यक्तिगत हितों पर ज्यादा रहा है।
पार्टी में गुटबाजी का शासन पर पड़ा असर
पार्टी के अंदर जारी गुटबाजी का नेपाल की शासन व्यवस्था पर भी व्यापक असर पड़ा है। चूंकि, प्रचंड समर्थित गुट लगातार पीएम केपी शर्मा ओली के प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष से इस्तीफे की मांग कर रहा था, इसलिए उन्होंने ज्यादातर समय अपनी स्थिति को मजबूत करने में लगाया। इस कारण शासन का कोरोना वायरस के संक्रमण पर रोक लगाने के अभियान पर ध्यान नहीं गया।

नेपाल में मचे सियासी घमासान को लेकर पीएम ओली सीधे तौर पर भारत पर आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने कुछ दिन पहले ही एक कार्यक्रम में भारत के ऊपर अपनी सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाया था। वहीं, खुफिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नेपाली पीएम देश में चीन की राजदूत हाओ यांकी के इशारे पर भारत विरोधी सभी कदम उठा रहे हैं।

सूत्रों का कहना है कि नेपाल के नक्शे को नए सिरे से परिभाषित करने के लिए चीनी राजदूत ने प्रधानमंत्री ओली को प्रेरित करने का काम किया है। खुफिया सूत्रों ने कहा कि हिमालयी गणराज्य नेपाल में युवा चीनी राजदूत होउ यानकी नेपाल की सीमा को फिर से परिभाषित किए जाने के लिए कॉमरेड ओली के कदम के पीछे एक प्रेरणादायक कारक रही हैं। यानी नेपाल जो भारत के कालापानी और लिपुलेख को अपने नक्शे में दर्शा रहा है, उसके पीछे चीनी राजदूत की ही कूटनीति और दिमाग काम कर रहा है।
पाकिस्तान में 3 साल तक काम कर चुकीं होउ का ओली के कार्यालय और निवास में अक्‍सर आना-जाना लगा रहता है। इसके अलावा नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी का वह प्रतिनिधिमंडल, जो राजनीतिक मानचित्र को बदलने के लिए संविधान संशोधन विधेयक का मसौदा तैयार करने में सहायता कर रहा था, वह चीनी राजदूत के संपर्क में था। चीन के विदेश नीति के रणनीतिकारों के इशारे पर काम कर रही युवा चीनी राजदूत को नेपाल में सबसे शक्तिशाली विदेशी राजनयिकों में से एक माना जाता है।

एक खुफिया रिपोर्ट में कहा गया है, पाकिस्तान में सेवा करने के अलावा, वह चीन के विदेश मंत्रालय में एशियाई मामलों के विभाग में एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाल रही थीं। यही नहीं बताया जा रहा है कि चीनी राजदूत कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के आंतरिक मतभेदों को दूर करने में भी लगी हुई हैं। नेपाल में जारी इस शह और मात के खेल में किसकी जीत होगी, यह देखना अब बेहद दिलचस्‍प होगा।

ओली ने पिछले दिनों भारत की ओर इशारा करते हुए दावा किया था कि काठमांडू के एक होटल में उन्हें हटाने के लिए बैठकें की जा रही है और इसमें एक दूतावास भी सक्रिय है। उन्होंने दावा किया कि कालापानी और लिपुलेख को नेपाली नक्शे में दिखाने वाले संविधान संशोधन के बाद से उनके खिलाफ साजिशें रची जा रही हैं। ओली ने आरोप लगाया कि उन्हें पद से हटाने के लिए खुली दौड़ हो रही है।

बिना किसी सबूत के भारत पर इतने गंभीर आरोप लगाने के बाद अब ओली खुद ही अपनी पार्टी में घिर गए हैं। प्रचंड ने कहा कि भारत ने नहीं बल्कि उन्‍होंने ओली के इस्‍तीफे की मांग की है। प्रचंड ने कहा कि ओली न केवल प्रधानमंत्री के पद से बल्कि पार्टी अध्‍यक्ष के पद से भी इस्‍तीफा दें।

नेपाली कम्‍युनिस्‍ट पार्टी में यह भी चर्चा है कि ओली अपने खिलाफ बन रहे मोर्चाबंदी को तोड़ने के लिए पार्टी के अंदर ही टूट करा सकते हैं। पार्टी के अंदर चल रही इस कलह से बेफिक्र केपी शर्मा ओली भारत के खिलाफ जहर उगलने में लगे हुए हैं। ओली के इस भारत विरोध और अतिआत्‍मव‍िश्‍वास के पीछे एक बड़ी वजह है। दरअसल, भारतीय खुफिया एजेंसियों का अनुमान है कि नेपाली पीएम देश में चीन की राजदूत हाओ यांकी के इशारे पर ये सभी कदम उठा रहे हैं।

प्रचंड को पार्टी तो ओली को सत्ता पर पूरा अधिकार
जिन बातों पर सहमति बनी है उसमें प्रचंड पूरे अधिकारों के साथ पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष रहेंगे तथा पार्टी मामलों को देखेंगे, वहीं ओली सरकार के मामलों पर ध्यान देंगे। सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी पार्टी अपने दिशा निर्देशों के आधार पर चलेगी। हालांकि सरकार को राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर फैसला लेते समय पार्टी के भीतर परामर्श करने की जरूरत होगी। पार्टी भी सरकार के रोजाना के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा।