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पाकिस्तानी सेना के जनरल का ‘कबूलनामा’, चीन को CPEC की चिंता, बलूच आंदोलन को खत्म करने के लिए बहा रहा पैसे

पाकिस्तान की राजनीति से लेकर आम लोगों की जिंदगी पर चीन ने किस तरह नियंत्रण हासिल कर रखा है, यह पाकिस्तानी सेना के एक जनरल के ताजा बयान से साफ हो गया है। इस अधिकारी ने यह कहकर तहलका मचा दिया है कि बलूचिस्तान की आजादी के आंदोलन को दबाने में चीन की भूमिका है। उन्होंने कहा है कि पेइचिंग ने उन्हें बलूचों का संघर्ष खत्म करने के लिए 6 महीने का वक्त दिया है।
‘सबसे बड़ा दुश्मन ईरान’ :बांग्लादेशी अखबार द डेली सन ने पाकिस्तानी सेना के मेजर जनरल अयमान बिलाल के हवाले से लिखा है कि उन्हें बलूच आंदोलन को खत्म करने के लिए क्षेत्र में तैनात किया गया है। बिलाल ने ईरान को पाकिस्तान का सबसे बड़ा दुश्मन बताया है और चेतावनी दी है कि पाक सेना ईरान के अंदर जाकर ऐक्शन लेगी।
अखबार के मुताबिक बिलाल ने कहा है, ‘चीन ने मुझे सैलरी और बड़ी रकम दी है और आधिकारिक रूप से मुझे क्षेत्रीय हितों के लिए यहां तैनात किया है ताकि मैं चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के खिलाफ ईरान की साजिश को खत्म कर सकूं।’
गरीब बलूचिस्तान का शोषण : पाकिस्तान ने बलूचिस्तान में कई विकासकार्य शुरू किए हैं लेकिन अभी भी यह देश का सबसे कम आबादी वाला सबसे गरीब कोना है। बागी संगठन यहां दशकों से अलगाववादी उग्रवाद की लड़ाई लड़ रहे हैं। उनकी शिकायत है कि केंद्र सरकार और अमीर पंजाब प्रांत उनके संसादनों का दोहन करता है। इस्लामाबाद ने 2005 में उग्रवाद के खिलाफ सैन्य ऑपरेशन छेड़ दिया था।
नेपाल सेक्शन पर स्थिति का जायजा लेने का काम जारी है। ये अधिकारी सर्वे कर रहे हैं और डिजाइन तैयार कर रह हैं। वहीं, दूसरी ओर स्थानीय लोग इस प्रॉजेक्ट को ‘कागतको रेल’ (पेपर रेल) और ‘सपनको रेल’ (सपनों की रेल) कह रहे हैं। अभी तक नेपाल व्यापार और ट्रांजिट रूट्स के लिए भारत पर निर्भर था। नेपाल का इकलौता रेल लिंक 35 किमी का ट्रैक है जिसे भारत ने बनाया है। ऐसे में चीन ने वादा किया है कि वह उसे वैकल्पिक रास्ते देगा ताकि भारत पर निर्भरता कम हो।
इसे लेकर देश के अंदर अलग-अलग तरह के विचार भी हैं। कुछ एक्सपर्ट्स इसे नेपाल के लिए अच्छा मौका देख रहे हैं जिससे वह चीन और भारत के बीच में ट्रांजिट हब बन सकेगा। वहीं, दूसरे एक्सपर्ट्स का मानना है कि नेपाल को चीन से मिलने वाले कर्ज को लेकर सावधान रहना चाहिए। छोटी अर्थव्यवस्था होने के चलते नेपाल में इस बात पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या ये कर्ज वापस किए जा सकेंगे?
चीन ने नेपाल से कनेक्टिविटी का वादा तो किया है लेकिन जिस रास्ते पर यह रेलवे प्रॉजेक्ट बनाया जाना है, वह इतना ऊबड़-खाबड़ है कि यह अपने आप में एक चुनौती है। चीन ने 2018 में एक टेक्निकल स्टडी में कई रुकावटों का जिक्र किया था। किरियॉन्ग के पास पाइकू झील जाने वाली उत्तरी और दक्षिणी ढलानों पर रैंप का निर्माण जरूरी हो गया। इसके बिना काठमांडू सेक्शन को ट्रैक से जोड़ा जाना मुश्किल था क्योंकि हिमालय के दोनों ओर ऊंचाई में काफी फर्क है।
चीन के दखल से आक्रोश : वहीं, 2015 में चीन ने CPEC का ऐलान किया था जिसका एक हिस्सा बलूचिस्तान भी है। यह बलूचिस्तान में ग्वादर पोर्ट को चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ेगा। इसके तहत सड़कों, रेल और तेल की पाइपलाइन का काम भी किया जाएगा जिससे चीन को मध्य पूर्व से जोड़ा जा सके। बलूचिस्तान के राजनीतिक और मिलिटेंट अलगाववादी चीन के दखल के खिलाफ हैं। उनके आक्रामक रवैये और हमलों के कारण इस प्रॉजेक्ट को नुकसान हो रहा है। यहां तक कि चीन के अधिकारियों और मजदूरों पर भी हमले किए गए हैं।
‘चीन, पाक के लिए अहम CPEC’ : बिलाल का कहना है कि चीन और पाकिस्तान के लिए CPEC की सफलता और बलूच आंदोलन का खत्म होना बेहद जरूरी है। उनका कहना है कि इसके लिए उनके पास खूब पैसे हैं। ईरान को बलूचिस्तान में और अशांति फैलाने और CPEC के खिलाफ साजिश का मौका नहीं दिया जा सकता। CPEC के जरिए चीन पाकिस्तान के साथ-साथ मध्य और दक्षिण एशिया में अपना दबदाब कायम कर अमेरिका और भारत के सामने चुनौती पेश करना चाहता है।