
कोरोना वायरस की महामारी फैलने को लेकर चीन पर आरोप लगते रहे हैं। ब्रिटेन में हुए जी-7 समिट (G-7 Summit) के दौरान भी सदस्य देशों ने वायरस की उत्पत्ति का पता लगाने के लिए नई स्टडी की मांग की। इसमें चीन की भूमिका को लेकर पहले भी जांच की गई थी और विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम चीन भेजी गई थी लेकिन उसे पूरा डेटा नहीं दिया गया था। समिट में चीन पर लगे मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों पर भी बयान जारी किया गया।
वायरस लीक की जांच हो : जी-7 देशों ने अपने बयान में मांग की है कि WHO एक्सपर्ट्स से कोविड-19 की उत्पत्ति का पता लगाने के लिए साइंस पर आधारित पारदर्शी जांच समय से कराए। वहीं, ब्रिटेन के विदेश मंत्री डॉमिनिक राब ने कहा है कि महामारी के वुहान लैब से लीक वायरस से फैलने की आशंका को लेकर अधिकारियों के ‘तुलनात्मक नोट’ और अधिक जांच की मांग करते हैं।
WHO चीफ ने भी माना : इससे पहले WHO के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अदनोम गेब्रेयसस ने शनिवार को कहा था कि कॉर्नवाल में आयोजित जी-7 सम्मेलन के दौरान स्वास्थ्य मामलों और महामारी के स्रोत का पता लगाने को लेकर आयोजित औपचारिक सत्र में इस आशंका को उठाया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि वायरस की उत्पत्ति की स्टडी का पहला चरण निर्णायक नहीं था और वहां पर चार सिद्धांत थे लेकिन उनपर अबतक कोई निष्कर्ष नहीं निकला है। इसलिए हमारा मानना है कि सभी चारों सिद्धांत खुले होने चाहिए और हमें दूसरे चरण की ओर बढ़ना चाहिए ताकि वायरस के ओरिजन का पता चल सके।
अप्रैल 2012 में चीन के युन्नान प्रांत में तांबे की एक खदान में तीन मजदूरों को सफाई के लिए भेजा गया। इस खदान का इस्तेमाल नहीं होता था और यहां चमगादड़ों ने अपना घर बसा रखा था। इस अंधेरी खदान में हवा तक नहीं थी और घंटों ये मजदूर यहां सफाई करते रहे। दो हफ्ते बाद तीनों को निमोनिया जैसी बीमारी हो गई। इसके बाद तीन और मजदूरों को भेजा गया लेकिन उन्हें भी तेज बुखार, खांसी और सांस में दिक्कत होने लगी। सभी को कनमिंग मेडिकल स्कूल इलाज के लिए भेजा गया जहां उन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ा। कुछ ही महीनों में 3 की मौत हो गई।
पीड़ितों के ब्लड सैंपल वुहान वायरॉलजी लैब भेजे गए। यहां ‘बैट वुमन’ के नाम से मशहूर डॉ. शी झेंगली ने इनका अनैलेसिस किया। उनकी जांच में पाया गया कि इन लोगों की मौत फंगल इन्फेक्शन के कारण हुई थी। अब वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के बाद एक बार फिर ये वाकया और लैब दोनों चर्चा में हैं और यहीं से वायरस लीक होने के आरोपों को बल मिला है। खासकर तब जब अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इंटेलिजेंस अधिकारियों को आदेश दिया है कि वायरस की उत्पत्ति के बारे में सच पता करने के लिए कोशिशें तेज की जाएं और 90 दिन में रिपोर्ट दी जाए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन आरोपों की जांच के लिए जनवरी में एक टीम चीन भेजी थी लेकिन चीन ने उसे शुरू से लेकर आखिर तक सुपरवाइज किया और ऑरिजिनल डेटा भी नहीं दिया। टीम ने वापस आकर लैब लीक की थिअरी को काफी मुश्किल बताया। अब एक बार फिर मांग हो रही है कि जांच दोबारा कराई जाए। ब्रिटेन की सरकार के अडवाइजर और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में क्लिनिकल माइक्रोबायॉलजी के प्रफेसर रवि गुप्ता ने भी द टेलिग्राफ से कहा है कि लैब लीक थिअरी की तह तक नहीं पहुंचा गया है।
रिपोर्ट्स में बताया गया है कि युन्नान की खदान में मजदूरों के बीमार पड़ने के बाद चीन के वायरॉलजिस्ट्स की चार टीमों ने वहां से सैंपल लिए और उन्हें 9 वायरस मिले जिन्हें वुहान लैब भेजा गया। इनमें से एक RaTG13 था जो SARS-CoV-2 से 96.2% मिलता-जुलता था। इसके और कोविड-19 फैलाने वाले कोरोना वायरस के बीच में सिर्फ 15 म्यूटेशन का गैप था।
हॉन्ग-कॉन्ग, शिनजियांग पर चीन को घेरा : रविवार को जारी किए गए बयान में बंधुआ मजदूरी के खिलाफ चिंता जाहिर की गई। इसमें कहा गया कि चीन को शिनजियांग में मानवाधिकारों का सम्मान करना चाहिए, हॉन्ग-कॉन्ग को ज्यादा स्वायत्ता देनी चाहिए और दक्षिण चीन सागर में सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने से बचना चाहिए। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने चीन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और फ्रांस के राष्ट्रपति इम्मैन्युअल मैक्रों ने कुछ हद तक उनका समर्थन भी किया।
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