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पेरिस जलवायु समझौता: अमरीका को पीएम मोदी का जवाब, कहा- हम बने रहेंगे पर्यावरण के हितैषी


सेंट पीटर्सबर्ग। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को पेरिस जलवायु समझौते से अमरीका को बाहर निकलने का ऐलान कर दिया है। वहीं ट्रंप के इस फैसले से ग्लोबल वार्मिंग को कम करने और पर्यावरण संरक्षण की कोशिश को झटका लगा है। इस समझौते से बाहर निकलने का ऐलान करते हुए ट्रंप ने कहा कि इस फैसले से अमरीकी कामगारों के हितों की रक्षा होगी।
तो वहीं पीएम नरेद्र मोदी ने बिना अमरीका का नाम लिए बगैर जवाब दे दिया। उन्होंने व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात के इंटरनेशनल इकोनॉमिक फोरम 2017 करते हुए कहा कि भारत पर्यावरण का हितैषी है और इसके लिए हमेशा से काम करता रहेगा।
उनका कहना कि भारत एक सांस्कृतिक विरासत वाला देश है। हम पिछले 5 हजार सालों से अपनी नदियों को संरक्षित करते आ रहे हैं। पीएम ने कहा कि हम जर्मनी में पहले ही कह चुका हैं कि पेरिस ऑर नो पेरिस, हम पर्यावरण को संरक्षित करने की दिशा में काम करते रहेंगे।
चुनावी वादे के अनुरुप ट्रंप के इस फैसले से जहां उनके समर्थकों ने सराहना की तो वहीं विपक्षियों ने उनकी कड़ी निंदा की है। पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और जीन क्लाउडे यूरोपियन यूनियन के अध्यक्ष ने इस फैसले को गलत करार दिया। तो वहीं पर्यावरणविदों के मुताबिक, ट्रंप के इस फैसले से भारत में नदियों के प्रवाह, पर्यावरण समेत कई चीजों पर इसका गहरा असर पड़ सकता है।
जबकि पेरिस जलवायु समझौते से अलग होने के अमरीका के फैसले पर बराक ओबामा ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि ट्रंप प्रशासन के इस गलत फैसले के कारण अमरीका की भावी पीढ़ियों को भविष्य में खतरा झेलना पड़ सकता है। ट्रंप ने पेरिस जलवायु समझौता तोड़ते हुए इसके लिए भारत और चीन प्रदूषण फैलाने के लिए जिम्मेदार बताया है।
इस फैसले के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटरेस अमरीका की आलोचना करते हुए करते हुए कहा कि इस फैसले से उन्हें निशाना हुई है। लेकिन अमरीका इसपर जो भी फैसला ले, हम जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अपनी लड़ाई को जारी रखेंगे। गौरतलब है कि एंटोनियो गुटरेस ने अमरीका से जलवायु परिवर्तन समझौते को नहीं तोड़ने की अपील भी की थी।
गौरतलब है कि अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने साल 2015 में जलवायु परिवर्तन समझौते पर हस्ताक्षर किए थे,तो वहीं पेरिस जलवायु समझौते पर भारत समेत दुनिया के 195 देशों ने हस्ताक्षर किए थे। जिसका मकसद वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन को कम करना है।
इस समझौते के तहत कई बिन्दु थे। जैसे कि वैश्विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस नीचे रखा जाएगा। हर पांच साल में गैस उत्सर्जन में कटौती को लेकर समीक्षा की जाएगी। साथ ही विकासशील देशों को जलवायु वित्तीय सहायता के तौर पर हर साल 100 अरब डॉलर दिए जाएंगे।