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राजनीति में ‘राजयोग’: अनपढ़ होते हुए भी लालबत्ती का सुख भोगते हैं ऐसे जातक

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ग्रह चाल आपका पथ तय करती है और कर्मों के द्वारा आप गति तय करते हैं और आपके कर्म आगे बढ़ कर भाग्य का निर्माण करते हैं। सप्तम भाव को कुंडली में राजनीति के रूप में भी देखा जाता है। पंचम भाव को जनता एवं मतदाताओं का भाव माना जाता है। राजनीति का कारक ग्रह कुंडली में उत्तम होने पर आकस्मिक लाभ राजयोग और राजनीति में सफलता प्रदान करती है।

राजयोग का तात्पर्य ऐसे राजयोग से है जिसमें ऐश्वर्य, दबदबा, प्रतिभा, सम्पत्ति और हुकूमत की प्रतिभा का समावेश हो। इसका अर्थ सम्राट बन जाना नहीं है। प्रत्येक सम्राट प्रतिभा से युक्त नहीं होता और सामान्य व्यक्ति भी अपने क्षेत्र में साम्राज्य की तरह हुकूमत करता है और ऐश्वर्य भोगता है। राजनीति में सफलता के निम्र योग बनते हैं :

1. लग्र में कन्या राशि में सूर्य-बुध हो, तुला में शुक्र और मेष में मंगल हो तो राजयोग बनता है। ऐसा जातक अनपढ़ होते हुए भी लालबत्ती का सुख भोगता है।

2. यदि भाग्येश राज्य स्थान में हो और राज्येश भाग्य स्थान में हो अथवा भाग्येश-राज्येश की युती केंद्र स्थान में हो तो राजनीति में सफलता अवश्य मिलती है।

3. जातक का मीन लग्र हो या लग्र में चंद्रमा, मकर में मंगल, सिंह में सूर्य और कुंभ में शनि स्थित हो, तो ऐसे जातक के उच्च शासन अधिकारी के प्रबल योग बनते हैं।

4. जब लग्रेश और जन्म राशि दोनों केंद्र में स्थित हों तथा शुभ ग्रह और मित्र से दुष्ट हों, शत्रु और पाप ग्रहों की दृष्टि न हो, नौवें स्थान में चंद्रमा स्थित हो, तो राजयोग होता है। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति विधायक या सांसद बनता है।

5. चतुर्थेश, नवमेश चतुर्थ स्थान में हो, मित्र शुभ ग्रह से युक्त हों, वह मनुष्य बड़ा अफसर जिलाधीश (आई.ए.एस.) स्तर का व्यक्ति होता है। यदि चतुर्थेश लग्र में मित्र बृहस्पति से दृष्ट हो तो वह प्रांत में बड़ा अधिकारी, अफसर बनता है।

6. जिस कुंडली में तीन या चार ग्रह अपने उच्च या मूल त्रिकोण में बने हों तो उसके प्रताप से व्यक्ति मंत्री या राज्यपाल (गवर्नर) होता है। जिन जातकों के पांच या छ: ग्रह उच्च या मूल त्रिकोण में हों तो वे गरीब परिवार में जन्म लेकर भी अधिकार (सत्ता)प्राप्त करते हैं।

7. पाप ग्रह उच्च स्थान में हों अथवा ये ही ग्रह मूल त्रिकोण में हों, तो उसके प्रभाव से व्यक्ति शासन के द्वारा सम्मानित किया जाता है।

8. कन्या का राहू दशम में हो, तुला के उच्च का शनि लाभ स्थान में यदि भाग्येश से दृष्ट हो तो मनुष्य सौभाग्यशाली होता है तथा ऐसे व्यक्ति के तीन प्रकार के स्थायी आय (इंकम) के साधन होते हैं तथा ऐसा जातक अपने जन्म स्थान से बाहर चमकता है।

जिन लोगों की कुंडली में ये शुभ योग नहीं हैं और वे कुयोगों के कारण दुखी और परेशान हैं, तो उन्हें अपने वर्तमान जीवन में शुभ सत्कर्मरत रहना चाहिए जिससे उनका वर्तमान तथा आने वाला जीवन सुख-सौभाग्ययुक्त रहे तथा मरणोपरांत पुनर्जन्म होने पर राजयोग लेकर पैदा हों।

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