पूर्व राष्ट्रपति और देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत-रत्न से नवाजे गए प्रणब मुखर्जी का सोमवार को 84 साल की उम्र में निधन हो गया। उनके बेटे अभिजीत मुखर्जी ने ट्वीट कर यह जानकारी दी। कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद उन्हें 10 अगस्त को दिल्ली में आर्मी रिसर्च ऐंड रेफरल हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। उनके दिमाग में बने खून के थक्के को हटाने के लिए उनकी ब्रेन सर्जरी की गई थी, जिसके बाद से ही वह वेंटिलेटर पर थे।
जुलाई 2012 से जुलाई 2017 तक रहे देश के 13वें राष्ट्रपति
कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में शुमार रहे प्रणब मुखर्जी को पिछले साल ही मोदी सरकार ने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से विभूषित किया था। जुलाई 2012 से जुलाई 2017 तक देश के 13वें राष्ट्रपति रहे। कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे मुखर्जी 2018 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय नागपुर में उसके एक कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता हिस्सा लिया था। इससे कांग्रेस असहज भी हुई थी।
1969 में कांग्रेस के जरिए रखा सियासत में कदम
1 दिसंबर 1935 को पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के मिराती गांव में जन्मे प्रणब मुखर्जी ने 1969 में कांग्रेस के जरिए सियासत की दुनिया में कदम रखा। उसी साल वह राज्यसभा के लिए चुने गए। उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के भरोसेमंद सहयोगियों में गिना जाता था। उसके अलावा वह 1975, 1981, 1993 और 1999 में राज्य सभा के लिए चुने गए। इसके अलावा वह 2004 और 2009 में पश्चिम बंगाल की जंगीपुर सीट से 2 बार लोकसभा के लिए भी चुने गए। वह 23 सालों तक कांग्रेस वर्किंग कमिटी के सदस्य भी रहे।
1973 में पहली बार केंद्र में बने मंत्री
सियासी पारी शुरू करने के 14 साल बाद 1973 में वह पहली बार केंद्र सरकार में मंत्री बने। तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार में उन्हें इंडस्ट्रियल डिवेलपमेंट मंत्रालय में डेप्युटी मिनिस्टर बनाया गया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1982 से 1984 तक वह केंद्रीय वित्त मंत्री रहे। उन्हीं के वित्त मंत्री रहते हुए डॉक्टर मनमोहन सिंह को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का गवर्नर बनाया गया।
देश के 13वें राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी का जन्म 11 दिसंबर 1935 को हुआ। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में जन्म से लेकर प्रणब मुखर्जी ने देश के प्रथम नागरिक यानी राष्ट्रपति पद तक का सफर तय किया। ‘प्रणब दा’ के नाम से मशहूर इस शख्सियत को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 84 साल के प्रणब दा देश के वित्त मंत्री, विदेश मंत्री और राष्ट्रपति पद पर काबिज रहे उनकी गितनी पढ़े-लिखे और साफ छवि के नेताओं में होती रही। यही कारण रहा कि जिंदगी भर कांग्रेस पार्टी का नेता रहने के बावजूद उन्हें भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने भारत रत्न से सम्मानित किया।
प्रणब मुखर्जी के पिता किंकर मुखर्जी भी देश के स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल रहे। प्रणब मुखर्जी ने सूरी विद्यासागर कॉलेज से पढ़ाई के बाद पॉलिटिकल साइंस और इतिहास में एमए किया। इसके अलावा उन्होंने एलएलबी की भी डिग्री हासिल की। इसके बाद वह पढ़ाने लगे। हालांकि उन्होंने कुछ समय बाद अपना करियर राजनीति चुना। पहले ही दौर में इंदिरा गांधी पर अपनी छाप छोड़ी। बैंकों के राष्ट्रीयकरण में भूमिका निभाई।
प्रणब मुखर्जी 1969 में इंदिरा गांधी की मदद से कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य चुने गए। जल्द ही वह इंदिरा गांधी के बेहद खास हो गए और 1973 में कांग्रेस सरकार के मंत्री भी बन गए।
पहली बार इंदिरा गांधी ने प्रणब मुखर्जी को 1982 में वित्त मंत्री बनाया। 1982 से 1984 के बीच कामयाब वित्तमंत्री के तौर पर पहचान बनी। इंदिरा गांधी के विश्वस्त साथी बने। हालांकि इंदिरा की निधन के बाद पार्टी से मनमुटाव के चलते प्रणब कांग्रेस से अलग हो गए और अपनी अलग पार्टी बनाई।
इंदिरा गांधी के निधन के वक्त प्रणब मुखर्जी और राजीव गांधी दोनों बंगाल दौरे पर थे। खबर सुनकर दोनों आनन-फानन में दिल्ली लौटे। कहा जाता है कि उस वक्त राजीव ने प्रणब से पूछा कि अब कौन? इस पर प्रणब का जवाब था- पार्टी का सबसे वरिष्ठ मंत्री। हालांकि पार्टी के कई नेताओं और राजीव के करीबियों को उनका यह सुझाव रास नहीं आया।
हालांकि, आखिर में राजीव गांधी प्रधानमंत्री बन गए और इंदिरा गांधी की कैबिनेट में नंबर-2 रहे प्रणब मुखर्जी को मंत्री नहीं बनाया गया। दुखी होकर प्रणब कांग्रेस से अलग हो गए और राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली। कई साल तक वह अलग ही रहे। आखिरकार राजीव गांधी से समझौते के बाद 1989 में उन्होंने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया।
पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में साल 1991 प्रणब मुखर्जी योजना आयोग के मुखिया बने। 1995 में राव ने प्रणब मुखर्जी को देश का विदेश मंत्री नियुक्त किया। राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के बुरे दिनों में प्रणब मुखर्जी सोनिया गांधी के भी करीबी हो गए और 1998 में सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनवाने में उनका भी योगदान रहा।
2004 के लोकसभा चुनाव में वबह पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए। विदेशी मूल से होने के आरोपों से घिरी सोनिया गांधी ने ऐलान कर दिया कि वह प्रधानमंत्री नहीं बनेंगी। इसके बाद उन्होंने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना, प्रणब मुखर्जी के हाथ से दूसरा मौका भी निकल गया।
2012 में इस्तीफे से पहले मनमोहन सिंह की सरकार में उनकी हैसियत नंबर- 2 के नेता की थी। 2012 में कांग्रेस ने उन्हें राष्ट्रपति चुनाव में उतारा और वह आसानी से पीए संगमा को चुनाव में हराकर देश के 13वें राष्ट्रपति बन गए।
2017 में प्रणब मुखर्जी ने बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन नहीं भरा। जून 2018 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक कार्यक्रम को संबोधित करने को लेकर भी प्रणब मुखर्जी जबरदस्त चर्चा में रहे। साल 2019 में बीजेपी सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया।
1986 में बनाई अलग पार्टी, 3 साल बाद कांग्रेस में वापसी
हालांकि, 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद मुखर्जी खुद को कांग्रेस में अलग-थलग महसूस करने लगे और 1986 में राजीव गांधी से मतभेदों के बाद उन्होंने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस नाम की एक नई पार्टी बनाई। 3 साल बाद उनकी फिर से कांग्रेस में वापसी हुई और उनकी पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया।
1991 में योजना आयोग के उपाध्यक्ष बने
1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद मुखर्जी प्रधानमंत्री पद के मजबूत दावेदारों में शुमार थे मगर कुछ साल पहले कांग्रेस से अलग राह पकड़ना शायद उनके खिलाफ गया। 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया। उसके बाद 1993 से 1995 तक वह वाणिज्य मंत्री रहे। 1995 से 1996 तक वह नरसिंह राव सरकार में भारत के विदेश मंत्री रहे।
प्रधानमंत्री पद के मजबूत दावेदारों में रहे थे प्रणब
प्रणब मुखर्जी की गिनती गांधी परिवार के करीबियों और भरोसेमंद नेताओं में होती थी। सोनिया गांधी को राजनीति में लाने के लिए मनाने वालों में प्रणब मुखर्जी को भी माना जाता है। 2004 में जब सोनिया ने पीएम बनने से इनकार किया और मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए आगे बढ़ाया तो इस फैसले ने राजनीतिक पंडितों को हैरान किया था। तब प्रणब मुखर्जी पीएम पद के सशक्त दावेदार थे। मनमोहन सरकार में 2004 से 2006 तक वह रक्षा मंत्री, 2006 से 2009 तक वह विदेश मंत्री और 2009 से 2012 तक वित्त मंत्री रहे। 2012 में वह देश के 13वें राष्ट्रपति बने और जुलाई 2017 तक इस पद पर रहे।