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पैरेंट्स के साथ सोने पर तेज होता है शिशु का दिमाग


पूरी रात बच्‍चे को कैसे सुलाएं और पैरेंट्स कब पहले की तरह सो पाएंगे। ये सभी सवाल आपको एक ही दिशा में ले जाते हैं और वो है कि क्‍या एक साथ सोना सही है और इससे शिशु को क्‍या लाभ मिलता है।

शिशु को दिन की तरह से रात में भूख लगना और रोना आता है। इस समय शिशु को पैरेंट्स के नजदीक रहने और दुलार की जरूरत होती है। उन्‍हें हर समय अपनी मां या पिता के स्‍पर्श का इंतजार रहता है।

आइए जानते हैं शिशु को साथ सुलाने के क्‍या फायदे होते हैं।

शिशु की जरूरतें हो रही हैं पूरी
शिशु रोकर ही अपनी बात बताता है। उसे भूख लगी हो या कोई प्रॉब्‍लम हो, वो रोकर की अपनी तकलीफ और जरूरत बताता है। अगर आप बच्‍चे को रात में रोता हुआ छोड़ देंगे तो हो सकता है कि वो रोकर अपनी जरूरत का संकेत देना बंद कर दे और आपको उसकी जरूरत का पता ही नहीं चल पाए।

शिशु का दिमाग तेज करना चाहती हैं तो उसे रोज खिलाएं ये चीजें

दिमाग के लिए ब्रोकली को भी सुपरफूड कहा जाता है। इसमें डीएचए होता है जो कि न्‍यूरॉन्‍स को जोड़ने में मदद करता है। ब्रोकली में कैंसर से लड़ने वाले गुण होते हैं। इसके अलावा एवोकाडो भी दिमाग के लिए बहुत बढ़िया होता है।

इसमें अनसैचुरेटेड फैट प्रचुरता में होता है जिससे मस्तिष्क में रक्‍त प्रवाह बढ़ता है। इसमें ओलिक एसिड भी होता है जो माइलिन को सुरक्षा देता है। माइलिन सूचना को प्रति घंटे 200 मील की रफ्तार से पहुंचाने में मदद करती है।

सैल्‍मन, ट्यूना और मैकरेल फिश में ओमेगा 3 फैटी एसिड होते हैं जो कि मस्तिष्‍क के ऊतकों को बिल्डिंग ब्‍लॉक देता है। ओमेगा 3 फैटी एसिड शिशु के मस्तिष्‍क के कार्यों और विकास को बढ़ावा देता है। रोज मछली खाने से बच्‍चों की मानसिक क्षमता बेहतर होती है।

मछली के अलावा अंडे में ओमेगा 3 फैटी एसिड, जिंक, ल्‍यूटिन और कोलिन होता है। ये ध्‍यान लगाने की क्षमता को बढ़ाते हैं। कोलिन एसिटाइकोलिकन बनाने में मदद करता है जिससे याददाश्‍त में सुधार आता है।

साबुत अनाज मस्तिष्‍क को लगातार एनर्जी देता है जिससे शिशु की ध्‍यान लगाने की क्षमता बढ़ती है। इसमें फोलेट भी होता है जिससे दिमाग सही तरह से काम कर पाता है।

अध्‍ययन में बताया गया है कि जो बच्‍चे नाश्‍ते में ओट्स खाते हैं उनकी याददाश्‍त अच्‍छी रहती है। ओट्स में विटामिन ई, जिंक और बी कॉम्‍प्‍लेक्‍स विटामिन होता है। इसमें उच्‍च मात्रा में फाइबर होता है जिससे दिमाग को निरंतर एनर्जी मिलती रहती है।

अखरोट, बादाम और मूंगफली दिमाग के लिए बेहतरीन होती हैं। इनमें विटामिन ई की उच्‍च मात्रा होता है जो याददाश्‍त को कमजोर होने से बचाता है। नट्स में जिंक भी होता है जिससे दिमाग का विकास और याददाश्‍त तेज होती है।

नट्स के अलावा बैरीज भी दिमाग की क्षमता को बढ़ाते हैं। बैरीज में विटामिन सी की प्रचुरता बच्‍चों की याददाश्‍त में सुधार लाती है।

पॉजिटिव वाइब्‍स आती हैं
जब रोते हुए बच्‍चे को उठाकर आप उसे गले लगाते हैं या प्‍यार करते हैं, तो उसे अच्‍छा महसूस होता है। शिशु को यह पता होता है कि जब वो रोएगा तो कोई उसकी देखभाल के लिए मौजूद है, उसे दूध पीने को मिलेगा और डायपर बदली जाएगी। शिशु को दुनिया एक सुरक्षित जगह लगने लगती है। रात में बच्‍चे को अकेला सुलाने पर ऐसा कुछ नहीं हो पाता है। ऐसे में बच्‍चे को लगता है कि उसे ही एडजस्‍ट करना होगा।

सुरक्षा का एहसास
साथ सोने पर शिशु को सुरक्षा का एहसास होता है। आजकल पैरेंट्स अपने बच्‍चे को आत्‍मनिर्भर बनाना चाहते हैं जिसके लिए बच्‍चे को स्‍लीप ट्रेनिंग या अकेले सुलाया जाता है। हालांकि, नवजात शिशु के साथ ऐसा करना बिल्‍कुल भी सही नहीं है। शिशु को आत्‍मनिर्भर बनाने का यह सही तरीका नहीं है। अगर आप बच्‍चे को अपने साथ सुलांएंगे तो इससे उसमें सुरक्षा की भावना आएगी और वो अपने आप ही आत्‍मनिर्भर बनने लगेगा।

क्‍या सच में शिशु को जन्‍म घुट्टी पिलाना सही है, जानिए विज्ञान और आयुर्वेद की राय

शिशु को दी जाने वाली जन्‍म घुट्टी में अश्‍वगंधा, अतिविष, मुरुडशेंग, बाल हिरडा, जायफल, हल्‍दी की जड़, सौंठ, खारीक, बादाम, जेष्‍ठमध, डिकेमाली, वेखंड और काकड शिंगी से घुट्टी बनाई जाती है।

जन्‍म घुट्टी को बाल घुट्टी भी कहते हैं और ये एक पारंपरिक भारतीय आयुर्वेदिक काढ़ा है जिसे मां के दूध या पानी में दवा मिलाकर तैयार किया जाता है। जन्‍म घुट्टी में जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है जिनमें औषधीय गुण पाए जाते हैं। कुछ पैरेंट्सबच्‍चे के जन्‍म के पहले दिन से ही घुट्टी पिलाना शुरू कर देते हैं।

माना जाता है कि इससे इम्‍यूनिटी बढ़ती है और दांत आने, दस्‍त, कब्‍ज और कोलिक पेन जैसी समस्‍याओं से राहत मिलती है।

सभी जड़ी-बूटियों को साफ पानी से अच्‍छी तरह से धो लें। 20 से 30 मिली ब्रेस्‍ट मिल्‍क लें। आप चाहें तो फॉर्मूला मिल्‍क भी ले सकती हैं।

स्‍लेट पर एक बूंद दूध डालें और फिर एक-एक करके सभी जड़ी बूटियों को इस पर दो से तीन बार घिसें।

एक जड़ी बूटी को घिसने के बाद उसके पेस्‍ट को उंगली से उठाकर चम्‍मच में लें। जब सारी जड़ी बूटियों को घिस लें तो उस पेस्‍ट को ब्रेस्‍ट मिल्‍क या पानी में मिलाकर शिशु को दें।

अगर आपके बच्‍चे में कोलिक के संकेत दिख रहे हैं और वो लगातार रोता रहता है तो उसे चुप करवाने के लिए घुट्टी पिला सकते हैं।

दांत आने पर मसूड़ों में सूजन और दर्द या वैक्‍सीन लगने पर दर्द को कम करने के लिए भी जन्‍म घुट्टी दे सकते हैं। इसके अलावा जन्‍म घुट्टी पेट फूलने और पाचन में सुधार करने में भी मदद करती है।

विश्व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (WHO) की मानें तो नवजात शिशु को छह महीने का होने तक मां के दूध या फॉर्मूला मिल्‍क के अलावा और कुछ नहीं देना चाहिए। डॉक्‍टर भी नवजात शिशु को घुट्टी पिलाने से मना करते हैं। बाजार में मिलने वाली घुट्टी में भी प्रिजर्वेटिव्‍स होते हैं जो कि शिशु के लिए नुकसानदायक हो सकते हैं।

इस आयुर्वेदिक औषधि को लेकर विज्ञान और आयुर्वेद के बीच एकमत नहीं है। फिलहाल विज्ञान की मानें तो एक साल से कम उम्र के बच्‍चे को कच्‍चा शहद नहीं देना चाहिए। इसकी वजह से शिशु में बोटुलिस्‍म हो सकता है जो कि एक घातक लेकिन दुर्लभ बीमारी है। यह बीमारी एक साल से कम उम्र के बच्‍चों को शहद के कारण होती है।

बेहतर होगा कि आप किसी भी प्राचीन नुस्‍खे का प्रयोग छह महीने या एक साल से कम उम्र के बच्‍चे पर न करें और जन्‍म घुट्टी देने से पहले भी डॉक्‍टर से परामर्श कर लें।

सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम
बच्‍चे को अलग सुलाने पर अक्‍सर सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम का खतरा रहता है। वहीं, पैरेंट्स के साथ सोने पर इसकी संभावना बहुत कम हो जाती है। साथ सोने पर शिशु ठीक तरह से सांस ले पाता है और उसका शरीर का तापमान भी संतुलित रहता है। मां या पिता के गले लगकर सोने से जहां शिशु को इमोशनल सपोर्ट मिलता है, वहीं ऑक्‍सीजन का लेवल भी बढ़ जाता है। इससे बच्‍चे की इम्‍यूनिटी भी बढ़ती है और दिमाग का विकास भी बेहतर होता है। अध्‍ययनों में भी यह बात सामने आई है कि जहां शिशु अपने पैरेंट्स के साथ सोते हैं, वहां सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम के मामले कम होते हैं।