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स्वीडन ने दो साल से कम उम्र के बच्चों के स्क्रीन देखने पर लगाया बैन, क्या भारत में भी होगा ऐसा? जानें क्या है नुकसान


स्वीडन भी उन देशों में शामिल हो गया है, जिन्होंने बच्चों के स्क्रीन टाइम को रोकने के लिए कदम उठाए हैं। स्वीडन की सरकार ने कहा है कि दो साल से कम उम्र के बच्चों को टीवी और मोबाइल समेत किसी भी स्क्रीन के इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।
स्टॉकहोम/नई दिल्ली : यूरोपीय मुल्क स्वीडन ने 2 साल के बच्चों पर स्क्रीन टाइम पूरी तरह बैन कर दिया, क्योंकि इसका बुरा असर बच्चों पर पड़ रहा था। कई रिसर्च में यह बात पता चली कि ज्यादा स्क्रीन के इस्तेमाल से बच्चों और टीनएजर्स में स्लीप डिसऑर्डर, एंजायटी, डिप्रेशन, यहां तक कि ऑटिजम भी हो रहा है। फिजिकल ऐक्टिविटी में भी लगातार कमी आ रही है, जो सेहत के लिए सही नहीं। स्वीडन सरकार ने अडवाइजरी में कहा है कि बच्चों को टीवी और मोबाइल फोन समेत किसी भी स्क्रीन के इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।
अमेरिका, आयरलैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस जैसे देश इससे पहले ही बच्चों के लिए अडवाइजरी जारी कर चुके हैं। फ्रांस में तो दो नहीं, बल्कि तीन साल से कम उम्र के बच्चों के लिए स्क्रीन पूरी तरह बैन करने की बात कही है। यह मुल्क तो जाग गए। हमारे मुल्क के बच्चों के लिए यह बात कितनी जरूरी है, इसको लेकर भारतीय आई स्पेशलिस्ट और सायकायट्रिस्ट से बात की। वह भी स्वीडन सरकार की तरह ही अपने देश में भी इस तरह की पहल को जरूरी बता रहे हैं।
अडवाइजरी के मुताबिक कितने घंटे देखें स्क्रीन
2 से 5 साल तक के बच्चे : दिन में अधिकतम एक घंटा
6 से 12 साल तक के बच्चे : दिन में अधिकतम 2 घंटा
टीनएजर्स : दिन में अधिकतम 3 घंटा
आंखें हैं कीमती, रखें उनपर नज़र
लंबे समय तक स्क्रीन देखने से आंखों पर डिजिटल तनाव, ड्राई आई डिजीज यानी सूखी आंखें, मायोपिया यानी निकट दृष्टि दोष की समस्या हो सकती है। चीन और कोरिया जैसे देश में तो 50% बच्चों में मायोपिया हो रहा है। वहीं एम्स की पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजी की एचओडी डॉक्टर शेफाली गुलाटी ने बताया कि अधिक स्क्रीन टाइम से ऑटिजम स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) का खतरा है। 2022 में जापान में हुई एक स्टडी में देखा गया कि एक घंटे से भी कम स्क्रीन टाइम से तीन साल की उम्र में ASD का खतरा 38 पर्सेंट जोखिम से जुड़ा था, जबकि दो घंटे से अधिक स्क्रीन टाइम के साथ यह जोखिम तीन गुना अधिक हो गया था। यानी जितना अधिक स्क्रीन टाइम, उतना अधिक ऑटिज्म का खतरा।