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बैठे-बैठे पैर हिलाने की आदत ले सकती है जान, ऐसे लोगों में होता है सुसाइड का खतरा, जानें कैसे?


ये रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम नर्वस सिस्टम से जुड़ी बीमारी है। स्टडीज से पता चला है कि पैर हिलाने से शरीर में डोपामाइन हॉर्मोन रिलीज होता है, जिसकी वजह से व्यक्ति को पैर हिलाना अच्छा लगता है। शुरू में पैर हिलाने की इच्छा अंदर से होती है, लेकिन बाद में कई लोगों की यह आदत बन जाती है।
इसे कहते हैं न्यूरोसेंसरी डिसऑर्डर – ये एक डिसऑर्डर है। इस बारे में मेट्रो हॉस्पिटल में फिजिशियन यतीश अग्रवाल बताते हैं, यह इच्छा मरीज में आमतौर पर शाम या रात के समय ज्यादा होती है, जब आप बैठे या लेटे होते हैं। इसे विलिस-एकबॉम डिजीज के रूप में भी जाना जाता है, जो किसी भी उम्र में शुरू हो सकता है और आमतौर पर आपकी उम्र बढ़ने के साथ बदतर होता जाता है। यह क्रोनिक न्यूरोसेंसरी डिसऑर्डर है, जिसमें हिलने-डुलने की तीव्र इच्छा होती है। यह नींद में खलल डाल सकता है और ज्यादा बढ़ने पर रुटीन के काम करने में भी दिक्कत आने लगती है।
हम क्यों हिलाते हैं पैर? मेंटल हेल्थ काउंसलर अजित भटनागर बताते हैं, यह दिक्कत आमतौर पर तब आती है, जब आप लंबे समय तक लेटे या बैठे रहते हैं। मसलन, कार, हवाई जहाज या मूवी थियेटर में। आमतौर पर रात को यह दिक्कत बढ़ती है, जिसमें पेंशेट का पैर फड़कने लगता है, खुजली होने लगती है, रेंगने या धड़कने जैसी चीजें महसूस होती हैं। इसमें नींद में ही व्यक्ति पैर हिलाने लगता है और कुछ लोग तो लातें ही मारने लगते हैं।
इसके मरीज जब हमसे सलाह लेने आते हैं, तो बताते हैं कि रात को उनके मसल्स में ऐंठन होती है या वे सुन्न पड़ जाती हैं। डाॅक्टर कहते हैं कि जब भी ऐसा महसूस हो, तो तुरंत पैरों को आगे पीछे कर लें, इधर उधर हिलाएं, तो आप दिक्कत को बढ़ने से रोक सकते हैं। अगर समस्या बढ़ रही हो, तो डॉक्टर को दिखाना जरूरी है क्योंकि समस्या बढ़ने पर आपकी दिक्कतें बढ़ सकती हैं।
तब दिमाग नहीं होगा एक्टिव – इसमें पैर हिलाते हुए व्यक्ति को आनंद की अनुभूति होती है। इसे एक तरह की डीप स्लीप है। इसमें आप दिखते तो एक्टिव हैं, आंख भी खुली होती है, लेकिन आपका दिमाग एक्टिव नहीं होता। कई जगह इसे स्लीप डिसऑर्डर भी कहा जाता है, क्योंकि कंप्लीट नींद न होने पर शरीर थक जाता है और थकान की वजह से पैर हिलाने की आदत भी लग सकती है। वहीं इस आदत के साथ कई और समस्याएं भी सामने आ सकती हैं।
नींद आने में परेशानी, सोने के दौरान नस का चढ़ जाना, बैठने में परेशानी होना और देर तक एक जगह खड़े न रह पाना के साथ अब आत्महत्या का खतरा बढ़ने जैसी गंभीर समस्या भी जुड़ गई है। एक स्टडी में सामने आया है कि जिन लोगों को यह बीमारी होती है उनके आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुंचाने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
सिंड्रोम होने की ये हैं वजह – स्टडीज के मुताबिक, रेस्टलेस सिंड्रोम होने की खास वजह खाने में आयरन की मात्रा का कम होना है। दूसरा, शराब, स्मोकिंग और बहुत अधिक कैफीन लेना है। कुछ दवाएं भी रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम होने की वजह बनती हैं। किडनी रोग, एनीमिया, मधुमेह, गठिया और पार्किसंस रोग के दौरान चल रहा ट्रीटमेंट भी कई बार इस सिंड्रोम के होने की खास वजह बनता है।
कैसे किया जाता है ट्रीटमेंट? – अगर आपके लक्षण किसी अन्य स्थिति, जैसे मधुमेह या एनीमिया के कारण होते हैं, तो पहला कदम उस स्थिति का इलाज करना है। यदि आपका डॉक्टर कोई कारण नहीं ढूंढ पाता है, तो कुछ चीजें हैं जिन्हें आप लक्षणों को कम करने और अपनी नींद में सुधार करने के लिए प्रयास कर सकते हैं। रिसर्च के मुताबिक, गर्म स्नान, हीट पैक, आइस पैक, पैरों की मालिश, कैफीन और शराब का सेवन कम करना, नियमित व्यायाम आपको इस दिक्कत से बाहर लाने में मदद करेगा।
गर्भवती महिला भी आ सकती है चपेट में – अगर आप गर्भवती हैं, तो आपको बेचैन पैर सिंड्रोम का अनुभव होने की अधिक संभावना है, खासकर आपकी तीसरी तिमाही के दौरान। डॉक्टरों को यह नहीं पता कि इसका क्या कारण है, लेकिन यह आयरन के निम्न स्तर से संबंधित हो सकता है और यह आमतौर पर बच्चे के जन्म के बाद दूर हो जाता है। कई बार गर्भवती महिलाओं को टांगों में सनसनाहट महसूस होती है लेकिन उन्हें पता नहीं होता कि ऐसा क्यों हो रहा है या इसे क्या कहते हैं।
जरनल ऑफ मिडवाइफ्री एंड वुमेंस हेल्थ में प्रकाशिक एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 26 पर्सेंट गर्भवती महिलाएं रेस्टलेस लेग सिंड्रोम (आरएलएस) का शिकार होती हैं। इस प्रॉब्लम में टांगों के अंदर सनसनाहट महसूस होती है और पैर को हिलाने का मन करता है। इसकी वजह से सोने में भी दिक्कत आ सकती है। कुछ स्टडी में इसके होने की वजह डोपामाइन असंतुलन, मिनरल की कमी या हार्मोनल बदलावों को माना गया है।
डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।