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डूरंड लाइन पर तालिबान ने नहीं खाया इस्लामिक ‘चारा’, एक इंच जमीन पर भी समझौता नहीं, पाकिस्तान का दांव कैसे पड़ा उल्टा?


सीमा पर तनाव की वजह से तोरखम क्रॉसिंग, जो एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग है, बाधित हो गई है और खाड़ी क्षेत्र में चिंता का माहौल है। सऊदी अरब और कतर ने संयम बरतने की अपील की है और “क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने” के लिए बातचीत का आह्वान किया है।
काबुल: पाकिस्तान पिछले 30-35 सालों से तालिबान को पाल रहा था। पाकिस्तान की सोच थी कि तालिबान के जरिए वो अफगानिस्तान पर शासन करेंगे। अफगानिस्तान, पाकिस्तान के पांचवां राज्य की तरह रहेगा और वहां से वो दक्षिण एशिया की राजनीति को कंट्रोल करेंगे। पाकिस्तान की कोशिश ये भी थी कि तालिबान शासन के आने के बाद डूरंड लाइन, जिसे पाकिस्तान-अफगानिस्तान के बीच सीमा रेखा माना जाता है, उसपर भी तालिबान समझौता कर लेगा। लेकिन कुछ भी पाकिस्तान के मन के मुताबिक नहीं हुआ। तालिबान ने ना सिर्फ पाकिस्तान के इशारे पर शासन करने से इनकार कर दिया, बल्कि डूरंड लाइन पर अफगानिस्तान के पुरानी सरकारों की स्थिति को भी बरकरार रखा। अफगानिस्तान, डूरंड लाइन को नहीं मानता है, जिसे ब्रिटेन ने उस वक्त खींचा था, जब पाकिस्तान भी भारत का ही हिस्सा था।
पिछले हफ्ते काबुल पर पाकिस्तान के एयरस्ट्राइक के बाद तालिबान ने शनिवार रात डूरंड लाइन के दूसरी तरफ पाकिस्तान के कम से कम 8 सैन्य चौकियों पर भीषण हमले किए। जिसमें पाकिस्तानी सेना के कम से कम 58 जवान मारे गये और दर्जनों घायल हुए हैं। दोनों देशों के बीच हालात काफी तनावपूर्ण हैं और 2600 किलोमीटर की डूरंड लाइन पर दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने हैं। पाकिस्तान ने तालिबान को धमकी दी है कि अगला हमला काफी खतरनाक होगा। जबकि तालिबान ने कहा है कि पाकिस्तान कुछ भी करेगा तो उसे भीषण अंजाम का सामना करना पड़ेगा।