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बांग्लादेश के चटगांव को यूं ही नहीं हो रही भारत में मिलाने की बात, चिकेन नेक पर चीन का दबाव होगा खत्म, आज मिल रहे मोदी-यूनुस


भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के बारे में बांग्लादेश के मोहम्मद यूनुस की भड़काऊ टिप्पणी ने हंगामा मचाया हुआ है। इसका असर ये हुआ कि पूर्वोत्तर भारत के एक प्रमुख नेता ने बांग्लादेश को तोड़ने की बात कर दी। इसमें चटगांव का खास जिक्र था। इन सबके बीच पीएम मोदी और मोहम्मद यूनुस मिलने वाले हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बिम्सटेक सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में हैं। शुक्रवार 4 अप्रैल को पीएम मोदी की मुलाकात बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस से हो सकती है। ये मुलाकात ऐसे समय में होने जा रही है, जब भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के बारे में मोहम्मद यूनुस की भड़काऊ टिप्पणी ने हंगामा मचाया हुआ है। बांग्लादेश में पिछले साल शेख हसीना के पतन के बाद आई नई यूनुस सरकार अब अपने निकटतम पड़ोसी को बांग्लादेश से दूर रखने के लिए चीन से मदद तलाश रहा है। यही वजह है कि यूनुस ने पूर्वोत्तर राज्यों को लैंड लॉक्ड क्षेत्र तो कहा ही, इसके साथ चीन को भारत के चिकेन नेक (सिलीगुड़ी कॉरिडोर) के पास पहुंचने का ऑफर भी दे डाला।
बांग्लादेश उपमहाद्वीप में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और भारत दूसरा सबसे बड़ा निर्यात साझेदार है, जो बांग्लादेश को कुल निर्यात का 12 प्रतिशत है। लेकिन बांग्लादेश की नई यूनुस सरकार यथास्थिति बदलने पर आमादा है। हालांकि, यह सरकार चुनी हुई नहीं है और केवल चुनाव होने और निर्वाचित सरकार के स्थापित होने तक सत्ता में है। बांग्लादेश अब चीन की ओर देख रहा है। स्वास्थ्य सेवा एक और क्षेत्र है, जहां ढाका अब चीन को लाना चाहता है।
चीन की तरफ देख रहा बांग्लादेश – बांग्लादेश इनवेस्टमेंट डेवलपमेंट अथॉरिटी (BIDA) के चेयरमैन आशिक चौधरी के अनुसार, बांग्लादेश से स्वास्थ्य सेवा के लिए परिवहन की आवाजाही, जो आमतौर पर भारत और थाईलैंड की ओर होती है, अब चीन हमें वह सहायता और समर्थन प्रदान करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने चीन से निवेश प्राप्त करने पर जोर दिया और कहा कि हमारा लक्ष्य बांग्लादेश को विनिर्माण केंद्र में बदलना है। बांग्लादेश दुनिया की फैक्ट्री के रूप में उभरेगा।
पूर्वोत्तर तक चीन को पहुंच देना चाहते हैं यूनुस – चीन को यह ऑफर केवल बांग्लादेश के लिए नहीं है। आशिक चौधरी कहते हैं कि ‘चीन केवल बांग्लादेश के स्थानीय बाजार को छूने के लिए न आए। हम उनसे स्थानीय बाजारों, सात बहनों (पूर्वोत्तर भारत), नेपाल और भूटान को सेवाएं देने के लिए कह रहे हैं।’ एनडीटीवी की रिपोर्ट में चौधरी के हवाले से कहा गया है कि बांग्लादेश कई बंदरगाहों पर आगे बढ़ रहा है। वे चटगांव में बे टर्मिनल के बारे में सोच रहे हैं। बंदरगाह कनेक्टिविटी के जरिए बांग्लादेश खुद को विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करना चाहता है। इसके लिए बांग्लादेश चीन को ऑफर दे रहा है
चटगांव भारत के लिए क्यों है अहम? – भारत के लिए यह चुनौती हो सकती है। इस क्षेत्र में चीन की उपस्थिति चिकेन नेक को और भी कमजोर बना सकती है। चटगांव एक बंदरगाह है, जिसे भारत बांग्लादेश के साथ रणनीतिक रूप से देख रहा है। भारत ने त्रिपुरा को चटगांव बंदरगाह से जोड़ने के लिए पहले ही बुनियादी ढांचा विकसित कर लिया है। चटगांव बंदरगाह पूर्वोत्तर क्षेत्र, विशेष रूप से दक्षिणी असम, त्रिपुरा, मणिपुर और मिज़ोरम के लिए कम दूरी के कारण अधिक व्यवहार्य विकल्प है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर की तुलना में चटगांव बंदरगाह को अगरतला से जोड़ने वाले मार्ग किफायती हैं।
कोलकाता से सिलीगुड़ी कॉरिडोर के माध्यम से अगरतला तक सड़क मार्ग से दूरी लगभग 1570 किलोमीटर है, जिसके लिए 8-10 दिनों का परिवहन समय और लगभग 7000 रुपये प्रति टन परिवहन लागत लगती है। वहीं, कोलकाता से चटगांव बंदरगाह की समुद्री दूरी 650 किलोमीटर और चटगांव से अगरतला की दूरी लगभग 250 किलोमीटर है। एशियाई विकास बैंक के पेपर के अनुसार, ट्रांसशिपमेंट विकल्प से 8 से 20 प्रतिशत प्रतिटन की बचत हो सकती है।
बांग्लादेश को तोड़ने की बात क्यों कर रहे पूर्वोत्तर के नेता? – भारत के लिए यही खतरा है, जिसके कारण पूर्वोत्तर के नेता बांग्लादेश को तोड़ने और चटगांव को भारत में मिलाने की बात कर रहे हैं। त्रिपुरा की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी टिपरा मोथा के संस्थापक प्रद्योत माणिक्य ने तो इसकी सीधी अपील कर डाली। उन्होंने एक्स पर लिखा, ‘इंजीनियरिंग के नए और चुनौतीपूर्ण विचारों पर अरबों डॉलर खर्च करने के बजाय हम बांग्लादेश को तोड़कर समुद्र तक अपनी पहुंच बना सकते हैं। चटगांव के पहाड़ी इलाकों में हमेशा से ही स्थानीय जनजातियां निवास करती रही हैं, जो 1947 से ही भारत का हिस्सा बनना चाहती थीं। बांग्लादेश में लाखों की संख्या में त्रिपुरी, गारो, खासी और चकमा लोग अपनी पारंपरिक भूमि पर भयानक परिस्थितियों में रहते हैं। इसका उपयोग हमारे राष्ट्रीय हित और उनकी भलाई के लिए किया जाना चाहिए।’