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टीनएज में माँ बनने पर रहता है चिड़चिड़ापन और तनाव, कम वजनी पैदा होते हैं बच्चे

 


यदि आप किशोरावस्था अर्थात् 19 से 21 साल के मध्य माँ बनती हैं तो सावधानी बरतें। इस उम्र में प्रेग्नेंसी के दौरान थोड़ी सी भी लापरवाही माँ और बच्चे दोनों के लिए नुकसानदायक हो सकती है। भारत में अनुमानत: गर्भवती होने वाली महिलाओं में से एक चौथाई महिलाओं की उम्र यही है। इतनी कम उम्र में माँ बनने के लिए वो मानसिक तौर पर तैयार नहीं होती हैं। ना ही उन्हें यह जानकारी होती है कि बच्चे की देखभाल कैसी होगी। यही वजह है, वो मानसिक स्तर पर तैयार नहीं होने के कारण इस जिम्मेदारी को संभाल नहीं पाती हैं। ऐसे में वे डिप्रेशन (अवसाद) से ग्रसित हो जाती हैं।
रहता है ज्यादा चिड़चिड़ापन और तनाव : कम उम्र में माँ बनने के लिए शरीर तैयार नहीं होता है। महिला भी मानसिक तौर पर तैयार नहीं होती है। फिजियोलॉजिकल बच्चे का वजन कम होता है। वो मैच्योर नहीं हो पाता है। इस वजह से भी वो अक्सर तनाव में रहती हैं। इससे उनमें चिड़चिड़ाहट रहती है, जिसका असर बच्चे पर पड़ता है।
नहीं रख पाती हैं खुद का ख्याल : यही नहीं, गर्भावस्था के दौरान उन्हें क्या खाना चाहिए, क्या नहीं। खुद को किस तरह से स्वस्थ रखना चाहिए। इस बारे में वे जागरूक नहीं होती हैं। ज्यादातर 19 से 21 वर्ष के मध्य माँ बनने वाली महिलाएँ पतली-दुबली कम वजन वाली होती हैं। जिसके चलते उनमें खून की कमी रहती है। इससे उनमें आयरन की कमी होने से वे कमजोर हो जाती हैं। इस समय में यदि माँ का वजन कम रहता है तो बच्चा भी कम वजनी पैदा होता है। वे परिपक्व (मैच्योर) नहीं होने के कारण बच्चे को संभालने में सक्षम नहीं होती हैं। बच्चा कम वजनी होने पर उसका विकास नहीं हो पाता है। टीनएज में गर्भ धारण करने में उल्टियाँ सामान्य की तुलना में ज्यादा होती हैं। उल्टी के डर से वो ज्यादा नहीं खाती हैं, जिससे वो कमजोर रहती हैं। ज्यादा नहीं खा पाने के कारण वे तनावग्रस्त रहती हैं।
खतरनाक होता है अबॉर्शन करवाना : कम उम्र में प्रेग्नेंट होने के बाद अबॉर्शन करवाना भी नुकसानदायक हो सकता है। अबॉर्शन के दौरान यूट्रस में इंफैक्शन की रिस्क बढ़ जाती है। एक विशेष तरह का सिंड्रोम हो जाता है, जिससे उनके यूट्रस में झिल्लियाँ बन जाती हैं। इससे उन्हें आगे माँ बनने में परेशानी होती है।
इन्हीं परेशानियों के चलते गाइनीकोलॉजिस्ट डॉक्टरों का कहना होता है कि कोशिश करके स्त्रियों को 21 वर्ष के बाद माँ बनना चाहिए। जिससे उनके शरीर में इन विकार को जगह नहीं मिले।