
वास्तुशास्त्र में बहुत सी चीज़ें के बारे में उल्लेख किया है जिनका महारे जीवन में अधिक महत्व है तथा ये चीज़ें किसी न किसी तरह से हमारे जीवन को प्रभावित करती है। मगर आपको पता है कि समस्त ग्रहों के स्वामी कहे जाने वाले सूर्य देवता का भी अहम रोल है। जी हां, आपको जानकर शायद हैरानी हो मगर वास्तु शास्त्र में ऐसे कई तथ्य पढ़ने-सुनने को मिलते हैं जिनसे ये स्पष्ट होता है कि सूर्य देव वास्तु की दृष्टि से भी मानव जीवन को प्रभावित करते हैं। आइए जानते हैं इससे जुड़े कुछ खास तथ्य-
अगर बात हिंदू धर्म के शास्त्रों की करें तो संपूर्ण सृष्टि का आधार सूर्य से ही है। इसकी ऊर्जा के बिना पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं है। तो वहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रह पूर्व दिशा के स्वामी माने जाते हैं। इनके शुभ प्रभाव के चलते जातक को धन-संपत्ति,ऐश्वर्य, स्वास्थ्य और तेजस्व प्रदान होता है। इसको वास्तु से जोड़कर देखा जाए तो अगर घर की पूर्व दिशा स्वस्थ्य और दोषमुक्त रहे तो उस भवन का स्वामी और उसमें रहे वाले सदस्य महत्वकांक्षी,सत्वगुणों से युक्त और उनके चेहरे पर तेज़ आता है।
जिस घर में सूर्य से संबंधी पूर्व दिशा में पर्याप्त रोशनी हो, कहने का भाव हो अगर ये दिशा वास्तु दोष से रहित हो तो घर के मुखिया को अपने जीवन में खूब मान-सम्मान मिलता है। क्योंकि सूर्य अपार शक्ति और तेज के देवता माने जाते हैं। सुबह के समय पूर्व दिशा से मिलने वाली किरणें अनंत गुणधर्म वाली ऊर्जा से युक्त होती हैं। यही कारण है कि वास्तु विज्ञान में पूर्व व उत्तर की दिशाओं को अत्याधिक महत्व दिया गया है। बता दें सूर्य से मिलने वाली सकारात्मक ऊर्जा का मुख्य द्वार पूर्व दिशा ही माना जाता है। तो वहीं कहा ये भी जाता है कि उत्तर एवं ईशान से ब्रह्मांडीय ऊर्जा भी भवन में प्रवेश करती हैं। ये दोनों ऊर्जाएं मिलकर ही घर के अंदर एक खास ऊर्जामंडल बनाती हैं जो वहां रहने वाले सदस्यों को सकारात्मक परिणाम देती हैं।
वास्तु शास्त्र की मानें तो मध्य रात्रि से तड़के 3 बजे तक सूर्य पृथ्वी के उत्तरी भाग में होता है। इस समय को अत्यंत गोपनीय माना जाता है। कहा जाता है यह दिशा व शुभ समय कीमती वस्तुओं या जेवरात आदि को संभाल कर रखने के लिए श्रेष्ठ होता है।
इसके अलावा सूर्योदय से पहले रात्रि 3 से सुबह 6 बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त होता है। इस समय सूर्य पृथ्वी के उत्तर-पूर्वी भाग में होता है। यह समय चिंतन-मनन व अध्ययन के लिए बेहतर होता है।
प्रातः 6 से 9 बजे तक सूर्य पृथ्वी के पूर्वी हिस्से में रहता है, इस समय सूर्य की पर्याप्त रोशनी घर में आनी चाहिए
9 से दोपहर 12 बजे तक सूर्य पृथ्वी के दक्षिण-पूर्व में होता है, जो भोजन पकाने के लिए उत्तम माना जाता है। वास्तु विशेेषज्ञों के अनुसार रसोई घर व स्नानघर (बाथरूम) गीले होते हैं। इसलिए यहां भी सूर्य की पर्याप्त रोशनी आनी अनिवार्य मानी जाती है।
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दोपहर 12 से 3 बजे तक आराम का समय होता है। सूर्य अब दक्षिण में होता है, अत: इस दिशा में आराम कक्ष होना चाहिए।
दोपहर 3 से शाम 6 बजे तक अध्ययन और कार्य का समय होता है और सूर्य दक्षिण-पश्चिम भाग में होता है। यह दिशा अध्ययन कक्ष या पुस्तकालय के लिए उत्तम है।
शाम 6 से रात 9 तक का समय खाने, बैठने और पढ़ने का होता है। घर का ये हिस्सा भोजन व बैठक के लिए शुभ होता है।
शाम 9 से मध्य रात्रि के समय सूर्य घर के उत्तर-पश्चिम में होता है। यह स्थान शयन कक्ष,पालतू जानवरों को रखने के लिए भी ठीक माना जाता है।
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