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ऐसे हुई थी धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती की मृत्यु, शुरू हुआ फिर कलियुग


महाभारत महाकाव्य हिंदू धर्म का एक प्रमुख ग्रंथ हैं। 18 दिन तक चलने वाले इस महायुद्ध में करोड़ों योद्धाओं ने धर्म और अधर्म के नाम पर युद्ध में भाग लिया और अपनी जान गंवा दी। महाभारत के ज्यादातर पात्रों का कोई ना कोई रहस्य रहा है, जिनके विषय में बहुत ही कम लोग जानते हैं। दरअसल, महाभारत की कहानी युद्ध के बाद समाप्त नहीं होती है। असल में महाभारत के बाद भी कई ऐसी कहानियां हैं, जिनका जिक्र आपको कम ही सुनने को मिलता है। कुरुक्षेत्र के युद्ध में कौरवों का संहार हो गया और पांडवों की मृत्यु उनके महाप्रस्थान के दौरान हुई थी। भीष्म पितामाह ने मृत्यु शैया पर अपना दम तोड़ा दिया था, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुंती, धृतराष्ट्र और गांधारी की मृत्यु कैसे हुई और उसके बाद कलयुग की शुरुआत हुई….
केवल बचा था एक कौरव : महाभारत के दौरान धृतराष्ट्र ने अपने 99 बेटों को खो दिया था। लेकिन उनका एक बेटा युयुत्सु जो पांडवों की ओर से युद्ध लड़ा रहा था इसलिए वही एकमात्र कौरव था जो जीवित रह गया था। युयुत्सु एक दासी से जन्मा था। इस युद्ध में पांडवों ने भी अभिमन्यु और अजन्मी संतान समेत कई महायोद्धाओं को भी खो दिया था।
राजपाट छोड़कर चले जाते हैं वन : युद्ध में पांडवों की जीत हुई और उनको हस्तिनापुर का राजपाट मिला। महाभारत के युद्ध के 15 साल बाद धृतराष्ट्र, गांधारी, संजय और कुंती शाही रहन-सहन को छोड़कर तपस्या करने और पापों से मुक्ति के लिए वन में चले जाते हैं। संजय धृतराष्ट्र के साथ रहते हैं इसलिए वह भी तीनों के साथ चले जाते हैं। वहां वह एक आश्रम का निर्माण करते हैं और भगवान की भक्ति और तपस्या में लगे रहते हैं।
वन में लग जाती है आग : वन में रहने के करीब तीन साल बाद एक दिन धृतराष्ट्र गंगा स्नान करने के लिए जाते हैं और उनके जाते ही जंगल में आग लग जाती है। आग को देखकर कुंती, संजय और गांधारी भयभीत हो जाते हैं और वे कुटिया को छोड़कर धृतराष्ट्र को देखने आते हैं कि उनको तो कोई खतरा नहीं है।
इस तरह पंचतत्व में शरीर हुआ विलीन : संजय सभी को वन छोड़कर जाने के लिए कहते हैं लेकिन धृतराष्ट्र उनसे कहते हैं कि यह वह समय है, जब हम सभी को अपने पापों से मुक्ति पाकर मोक्ष की प्राप्ति होगी। धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती वहीं वन में रुक जाते हैं और अपने प्राणों को त्यागने का संकल्प करते हैं। सभी अपने मन को एकाग्र करके समाधि में लीन हो जाते हैं और इसी अवस्था में देह का त्याग कर देते हैं और जंगल की आग में उनका शरीर जलकर पंचतत्व में विलीन हो गया।
इसके बाद शुरू होता है कलयुग : वहीं संजय वन को छोड़कर हिमालय की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। वहां एक सन्यासी की तरह अपना जीवन व्यतीत करते हैं। करीब एक साथ नारद मुनि पांडव पुत्रों को उनके परिजनों की मृत्यु का दुखद समाचार सुनाते हैं और सभी लोग वही चले जाते हैं, जहां धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती की मृत्यु होती है। वहां जाकर वह धार्मिक संस्कार पूरे करते हैं। कुछ साल बाद पांडव अपने कार्यों को पूरा करके स्वर्ग चले जाते हैं और भगवान कृष्ण अपने बैकुंठ धाम को चले जाते हैं। तभी से कलयुग का आरंभ होता है।